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BJP के गढ़ में जीत के बाद अब सपा-बसपा की नजर कैराना लोकसभा सीट पर

BJP के गढ़ में जीत के बाद अब सपा-बसपा की नजर कैराना लोकसभा सीट पर
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गोरखपुर और फूलपुर लोकसभा सीट के लिए हुए उपचुनाव में बसपा के समर्थन से बड़ी जीत हासिल करने वाली समाजवादी पार्टी की नजर अब कैराना लोकसभा सीट पर है. कैराना लोकसभा सीट बीजेपी सांसद हुकुम सिंह के निधन के चलते खाली हुई है. बता दें, 2019 लोकसभा चुनाव के लिए सपा और बसपा ने भले ही औपचारिक रूप से गठबंधन न किया हो, लेकिन दोनों के बीच भविष्य में एक साथ चुनावी समर में उतरने का मन बना लिया है. सपा-बसपा के गठजोड़ पर बीजेपी नेताओं के बयान पर अखिलेश यादव ने कहा कि उपचुनाव में मिली जीत से जनता ने नेताओं की भाषा पर लगाम लगा दी है. उन्होंने कहा कि जनता के फैसले से नेताओं की भाषा बदलेगी. फूलपुर में फूल मुरझा गया. घमंड टूटा, उम्मीद है अब भाषा बदलेगी.


कैरान में बसपा को सपा कर सकती है समर्थन

सपा-बसपा के साथ आने का अगला टेस्ट कैरान लोकसभा सीट है. इसी साल फरवरी में बीजेपी सांसद हुकम सिंह के निधन से ये सीट रिक्त हुई है. फुलपुर-गोरखपुर में सपा के पास आने के बाद अब कैराना में माना जा रहा है कि बसपा अपना उम्मीदवार उतार सकती है. ऐसे में बसपा उम्मीदवार को सपा समर्थन कर सकती है. जिस प्रकार फूलपुर और गोरखपुर में बसपा ने सपा उम्मीदवार को समर्थन किया था.


जातीय समीकरण

बीजेपी ने इस जातीय समीकरण को कम आंका और समझती रही कि बसपा का वोट ट्रांसफर नहीं होगा. जबकि पिछले चुनावों के आंकड़े बताते हैं कि बीजेपी को 39 फ़ीसदी ही वोट मिले थे. जबकि बसपा और सपा का वोट प्रतिशत 45 फ़ीसदी के करीब था. आसान सा अंकगणित बीजेपी नहीं समझ सकी. इतना ही नहीं मायावती ने यह भी साबित कर दिया कि उसका कैडर दलित वोट आज भी उनके साथ है और एक आदेश पर वह ट्रांसफर भी हो सकता है. बीजेपी के सामने अब इस जातीय समीकरण को तोड़ने की चुनौती भी होगी.

उपचुनाव में कम वोटिंग

वैसे तो उपचुनावों में वोटिंग प्रतिशत कम ही रहता है. लेकिन गोरखपुर और फूलपुर में इतना कम मतदान होगा बीजेपी ने नहीं सोचा था. बीजेपी के कार्यकर्ता अपने वोटर को मतदान केंद्र तक नहीं ला सके. यहां भी संगठन में कमी नजर आई. राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह जिस मजबूत संगठन को जीत का श्रेय देते रहे हैं, वह भी अति उत्साहित नजर आया. वह मानकर चल रहा था कि उसका वोटर निकलेगा. ऐसा हुआ नहीं. फूलपुर में 37 फीसदी के करीब तो गोरखपुर में करीब 47 फीसदी मतदान ही हुआ.

बसपा इस बार कोई जल्दबाजी के मूड में नहीं है. वो फूंक-फूंककर गठबंधन के लिए कदम बढ़ा रही है. इसीलिए यूपी दोनों सीटों के उपचुनाव में समर्थन देकर टेस्ट किया है. सपा की ओर से सकारात्मक कदम दिख रहे हैं. अखिलेश यादव ने जिस तरह से जीत का श्रेय बसपा को दिया है. इससे मायावती का दिल पसीजा है और उन्होंने पुराने जख्मों पर मरहम लगाकर भविष्य में आगे साथ चलने का रास्ता साफ कर दिया है.

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