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Film Review मुल्क: ऋषि कपूर और तापसी पन्नू ने बता दिया है 'मुल्क' का सही मतलब

Film Review मुल्क: ऋषि कपूर और तापसी पन्नू ने बता दिया है मुल्क का सही मतलब
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निर्देशक: अनुभव सिन्हा

कलाकार: ऋषि कपूर, तापसी पन्नू, मनोज पाहवा, रजत कपूर, नीना गुप्ता, आशुतोष राणा, प्रतीक बब्बर

सच यही है कि अनुभव सिन्हा की इस फिल्म से मैंने कुछ ज्यादा उम्मीद नहीं की थी और उसकी वजह थी उनकी पिछली फिल्में जिनमें ख़ामियों की भरमार थी चाहे फिल्म का निर्देशन हो या फिर उसका स्क्रीनप्ले. लेकिन मुल्क से मेरी धारणा बदल गई है. मुल्क एक ऐसी फिल्म है जिससे अनुभव सिन्हा ने कई पायदान एक साथ चढ़ लिए है. कहते हैं कि फिल्में समाज का आईना होती हैं और उस हिसाब से मुल्क इस कथनी पर पूरी तरह से फिट बैठती है. देश के मौजूदा हालात पर मुल्क अनुभव सिन्हा की सोच और आवाज है जो आपको सोचने पर विवश करती है. इस्लामोफोबिया से ग्रसित आज की दुनिया पर अनुभव सिन्हा का मुल्क उसको लेकर एक करारा जवाब है. मुल्क देश के सांप्रदायिक माहौल पर एक गहरी चोट करती है जिसका असर काफी देर तक आपके जेहन में रहेगा. मुल्क मौजूदा सरकार पर भी वार करती है और एक बात पूरी तरह से साफ है कि अनुभव सिन्हा को मौजूदा सरकार से ढेर सारी शिकायतें हैं जिसकी भड़ास उनकी कलम से इस फिल्म से निकली है. लेकिन अगर निजी मसलों को छोड़ दें तो मुल्क आज के दौर में एक महत्वपूर्ण फिल्म है जिसको देखना जरूरी हो जाता है.


चरमपंथियों से सहानुभूति के संकट की स्टोरी

फिल्म की कहानी मुराद अली मोहम्मद (ऋषि कपूर) के बारे में है जो बनारस के एक प्रतिष्ठित वकील हैं. उनका संयुक्त परिवार है जिसमे उनके छोटे भाई बिलाल (मनोज पाहवा) उनके साथ रहते हैं. मुराद अली का बेटा लंदन में रहता है जिसका वहां पर बिजनेस है और उसकी शादी हो चुकी है आरती (तापसी पन्नू) से जो हिन्दू है. आरती कुछ दिनों के लिए हिंदुस्तान आती है और अपने ससुराल में ही रहती है. शाहिद (प्रतीक बब्बर) बिलाल का बेटा है जो मुस्लिम चरमपंथियों के बहकावे में आ चुका है. इसी वजह से बनारस से इलाहाबाद जा रही एक बस में विस्फोट हो जाता है और सीसीटीवी कैमरे की फुटेज की मदद से पता चलता है शाहिद भी विस्फोट की साजिश में शामिल था. पुलिस उसके छुपने के ठिकाने का पता निकाल लेती है जहां पर वो एसएसपी दानिश जावेद की गोलियों का शिकार हो जाता है. बाद में जब मोहम्मद परिवार को इसकी जानकारी मिलती है तब वो शाहिद की लाश को लेने से इस बात पर इंकार कर देते हैं कि वैसी तालीम उन्होंने उसे नहीं दी थी और उसने जो कुछ भी किया वो गलत था. इस बीच शाहिद के पिता बिलाल को भी पुलिस साजिश के आरोप में गिरफ्तार कर लेती है. जब मामला अदालत में जाता है तब कुछ वैसे ही आरोप मुराद अली पर भी लगते हैं. मुराद और बिलाल दोनों की वकील आरती बनती है और फिर एक लम्बा दौर अदालती करवाई का चलता है.


ऋषि, तापसी और रजत कपूर का शानदार अभिनय

अभिनय के मामले में मुल्क एक ऐसी फिल्म है जिसमें सभी कलाकारों का सटीक अभिनय है. यह कहना थोड़ा मुश्किल होगा कि किस अभिनेता ने दूसरे के मुकाबले में बेहतर अभिनय किया है. ऋषि कपूर को देखकर यही लगता है कि अपनी दूसरी पारी में वो इस बात को लेकर पूरे जोश में हैं कि जितने भी चैलेंजिंग रोल्स हैं उनको सभी कुछ दे दिया जाए. उनका अभिनय शानदार है फिल्म में. घर के मुखिया के रोल में जो सभी को साथ लेकर चलता है और अपनी परेशानियों को कभी जाहिर नहीं करता है, के रोल में ऋषि कपूर का अभिनय उम्दा है. तापसी पन्नू, फिल्म में ऋषि कपूर की बहू के रोल में हैं जो वकील भी है ने दिखा दिया है की आने वाले समय में वो कई अभिनेत्रियों की छुट्टी करने वाली हैं.उनके अभिनय का पैनापन हर फिल्म में बढ़ता ही जा रहा है. मनोज पाहवा, रजत कपूर और नीना गुप्ता पहले से ही मंझे हुए कलाकार हैं. इनके अभिनय को लेकर टीका टिप्पणी नहीं की जा सकती है. अलबत्ता शिकायत है थोड़ी बहुत तो वो प्रतीक बब्बर से ही है जो अपने छोटे रोल में और भी रंग डाल सकते थे. इस फिल्म की स्टार कास्ट की वजह से फिल्म का ओहदा अपने आप में काफी ऊपर बढ़ जाता है.


अनुभव सिन्हा की सबसे कसी हुई फिल्म

अनुभव सिन्हा की मेहनत देखी जा सकती है मुल्क में. अनुभव सिन्हा खुद बनारस के रहने वाले हैं और बनारस की पृष्ठभूमि वाली इस फिल्म की डोर हमेशा उनके हाथ में रहती है. कहानी के साथ उन्होंने किसी भी तरह का समझौता नहीं किया है और फिल्म का पेस पूरी तरह से लोगों को सीट से बांध कर रखेगा. जिस तरह से बनारस का चित्रण उन्होंने अपनी इस फिल्म में किया है वो काबिले तारीफ है यह अलग बात है कि फिल्म की अधिकतर शूटिंग लखनऊ में हुई थी. अगर अनुभव अपनी फिल्म में लोकल भाषा का भी कलेवर डाल देते, तो इसका मजा दोगुना हो सकता था. इसमें कोई शक नहीं कि बीस सालों से फिल्म बना रहे अनुभव के फिल्म करियर की ये सबसे सशक्त फिल्म है.


पूर्वाग्रह समाज के लिए घातक

मुल्क को देखने में इस लिए भी मजा आता है क्योंकि एक लम्बे अरसे के बाद एक ऐसी फिल्म के दर्शन हुए हैं इसमें डायलॉग की बहुतायत है. अगर अंग्रेजी का एक शब्द ले तो यह एक वर्बोस फिल्म है और फिल्म मध्यांतर के बाद इसी रूप में चली जाती है. अदालत में बातें कही जाती हैं और दलीलें दी जाती हैं और इन सबके बाद वकीलों से लेकर आरोपी और जज महोदय सभी अपना अपना पक्ष रखते हैं. इन सभी की खूबसूरती इसी में है कि ये कही से बोर नहीं करती है. मुल्क जनता को आईना दिखाने का काम करेगी और बताएगी कि पूर्वाग्रह समाज के लिए कितनी खतरनाक चीज है और कैसे यह समाज को खोखला कर रही है, जिसका असर देश के सांप्रदायिक माहौल पर पड़ रहा है. अगर आप इस फिल्म में किसी भी तरह का मनोरंजन ढूंढ रहे हैं मसलन नाच गाना या फिर हंसी मज़ाक तो बेहतर होगा कि आप इस फिल्म से दूर रहिए. मुल्क की भाषा में संजीदगी है और आपके बगल में क्या चल रहा है उसी की बात करती है. कोर्ट रूम ड्रामा, देसी लहजा, भारी भरकम डायलॉग और करीब की असलियत आपको पसंद है तो मुल्क के दीदार आप जरूर कीजिए.

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