धारा 377: समलैंगिकता अपराध है या नहीं? सुप्रीम कोर्ट आज सुनाएगा सबसे बड़ा फैसला
BY Jan Shakti Bureau6 Sep 2018 5:51 AM GMT
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Jan Shakti Bureau6 Sep 2018 11:25 AM GMT
नई दिल्ली: समलैंगिकता पर देश में एक बार फिर से नए सिरे से बहस शुरू हो गई है। समलैंगिकता को अपराध मानने वाली आइपीसी की धारा 377 की वैधानिकता पर सुप्रीम कोर्ट गुरुवार (6 सितंबर) को सबसे बड़ा फैसला सुनाएगा। मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच जजों की संविधान पीठ यह तय करेगी कि दो बालिगों में सहमति से बनाए गए संबंध अपराध है या नहीं। बता दें कि आईपीसी की धारा-377 के तहत समलैंगिकता को अपराध माना गया है। सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल कर कहा गया है कि दो बालिगों के बीच अगर सहमति से समलौंगिक संबंध बनाए जाते हैं तो उसे अपराध की श्रेणी से बाहर किया जाए। मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अगुवाई वाली संवैधानिक बेंच ने 10 जुलाई से मामले की सुनवाई शुरू की थी और 17 जुलाई को सभी पक्षों की बहस सुनकर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।जस्टिस आरएफ नरीमन, एएम खानविलकर, डीवाई चंद्रचूड़ और इंदू मल्होत्र संविधान पीठ के अन्य जज हैं।
बता दें कि अभी धारा 377 में अप्राकृतिक यौनाचार को अपराध माना गया है। इसमें 10 वर्ष तक की कैद और जुर्माने का प्रावधान है। केंद्र सरकार ने सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट से कहा था कि दो वयस्कों के बीच सहमति से अप्राकृतिक यौन संबंधों को अपराध की श्रेणी में लाने के मुद्दे पर, धारा 377 की संवैधानिक वैधता के बारे में फैसला वह उसके न्यायाधीशों के विवेक पर छोड़ता है।
2013 में समलैंगिकता को कोर्ट ने माना था अपराध
सुप्रीम कोर्ट ने 11 दिसंबर 2013 को सुरेश कुमार कौशल बनाम नाज फाउंडेशन मामले में दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले को पलटते हुए समलैंगिकता को अपराध माना था। 2 जुलाई 2009 को दिल्ली हाईकोर्ट ने धारा 377 को अंसवैधानिक करार दिया था। इस मामले में पुनर्विचार याचिका खारिज कर दी थी और फिलहाल पांच जजों के सामने क्यूरेटिव बेंच में मामला लंबित है।
क्या है धारा 377?
आईपीसी की धारा 377 के अनुसार यदि कोई वयस्क स्वेच्छा से किसी पुरुष, महिला या पशु के साथ अप्राकृतिक यौन संबंध स्थापित करता है तो, वह आजीवन कारावास या 10 वर्ष और जुर्माने से भी दंडित हो सकता है। समलैंगिकों को एलजीबीटीक्यू (LGBTQ) भी कहा जाता है, जिसमें- लेस्बियन, गे, बाईसेक्सुअल, ट्रांसजेंडर्स और क्वीर शामिल हैं। धारा 377 अप्राकृतिक यौन संबंधों को गैर-कानूनी बताती है।
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