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मुसलमानों को निशाना बनाने के साथ अब सहनशील हिंदुत्व को टारगेट कर रहा है भगवा टोला!

मुसलमानों को निशाना बनाने के साथ अब सहनशील हिंदुत्व को टारगेट कर रहा है भगवा टोला!
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इस अस्सी वर्षीय आर्यसमाजी पर हमला इसलिए हुआ क्योंकि हिन्दू पुरुषों के एक समूह का मानना था कि स्वामी अग्निवेश द्वारा प्रचारित हिंदुत्व बहुत ही सहनशील और दयालु है। मंगलवार को स्वामी अग्निवेश को ज़मीन पर गिरा हुआ देखना- उनके अस्त- व्यस्त हुए भगवा वस्त्र, न सर पर पगड़ी, न पाँव में जूते – यह दृश्य बहुत ही चौंकानेवाला था। इस खास तस्वीर में आप उनका चेहरा नहीं देख सकते क्योंकि उनका सर फोटोग्राफर की तरफ मुड़ा हुआ है। उनका दायाँ हाथ उठा है और ऐसा लग रहा है जैसे कोई उनकी उम्र का लिहाज करके उनकी मदद कर रहा हो।उनकी जानी पहचानी पगड़ी उनके सर से गायब है और न ही उनके चेहरे पर उनके ट्रेडमार्क चौकोर चश्मे हैं। तस्वीर में यह स्वामी अग्निवेश ही हैं ऐसा गौर से देखने पर ही पता लगता है। उनके बाल सचमुच सफ़ेद हैं।


भगवा बनाम भगवा

अपनी तिरस्कारपूर्ण मुस्कान के लिए घर-घर में जाने जानेवाले स्वामी अग्निवेश के चेहरे की लकीरों में एक डर दिखता है। उनकी भगवा पगड़ी अवश्य ही उनकी ताकत रही होगी। अब वह पगड़ी हमारी निगाहों से कहीं दूर पड़ी है, एक भगवा गमछा पहने इंसान ने उसे नोचकर फेंक दिया है और डर का का माहौल व्याप्त है। यह स्वामी अग्निवेश नहीं हैं। यह एक परित्यक्त वृद्ध है जो नयी पीढ़ी से खुद को अपने हाल पर छोड़ दिए जाने की प्रार्थना कर रहा है। भगवा बनाम भगवा। मेरा हिंदुत्व तुम्हारे हिंदुत्व से बेहतर और महान है। यह मेरा समय है। रास्ता छोड़ो , बुड्ढे , और झारखण्ड से बाहर निकल जाओ। ऐसा लगता है मानो इस तस्वीर में यह युवा अपनी बगल में गिरे वृद्ध को यही कह रहा हो। ऐसा लगता है कि मानो तस्वीर में जवान आदमी उसके बगल में परेशान बूढ़े आदमी को यही बता रहा हो। लेकिन पहले तथ्यों पर बात कर लें। जाने – माने समाज प्रचारक स्वामी अग्निवेश को झारखंड के पाकुड़ जिले के एक आदिवासी समूह ने एक समारोह में भाग लेने के लिए आमंत्रित किया था। टाइम्स ऑफ इंडिया के मुताबिक़ जैसे ही वे अपने होटल से निकले , कथित तौर पर भारतीय जनता युवा मोर्चा (बीजेवाईएम) और अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) से सम्बंधित युवाओं के एक जत्थे ने उनपर "लात मुक्कों की बरसात कर दी और काले झंडे भी दिखाए। " इन लड़कों ने कथित तौर पर कहा कि स्वामी अग्निवेश हिंदुओं को ईसाइयों में बदलने के उद्देश्य से वहां आये थे। अपनी रक्षा में, अग्निवेश ने कहा, "मैं किसी भी तरह की हिंसा के खिलाफ हूं। मैं 80 साल का हूँ और यह पहली बार मेरे साथ ऐसा हुआ। राज्य सरकार को जांच का आदेश देना चाहिए और उन लोगों को गिरफ्तार करना चाहिए जिन्होंने मुझ पर हमला किया।


कर्मकांडों से मुक्ति

मेरा स्वयं का बचपन एक आर्यसमाजी घर में बीता है और मैं स्वामी अग्निवेश और उनके जैसे लोगों से परिचित हूँ। गायत्री मंत्र हमारे जीवन का मूल रहा है। महिलाएं पुरुषों से हर मामले में बराबर हैं और आर्थिक स्वतंत्रता की हक़दार हैं। उन्नीसवीं शताब्दी में आर्य समाज सुधार अभियान की शुरुआत करने वाले सवामी दयानन्द ने वापस वेदों की और जाने की सलाह दी थी। उनका मानना था कि ऐसा करने से हिन्दू धर्म की जड़ों में बसा कर्मकांड थोड़ा कम होगा। मेरे माता पिता दोनों पाकिस्तानी शरणार्थी थे और वे इन छोटी, परिचित प्रथाओं से मज़बूती से जुड़े थे। रविवार को आर्य समाज मंदिर जाना हमारे हफ्ते का एक अभिन्न अंग था। हम सभी भाई बहन हवन में भाग लेने जाते थे। हम जो भजन गाते थे उनमें सिंधु नदी (जिसे शरणार्थी पाकिस्तान छोड़ आये थे ) का ज़िक्र होता था और हमारी प्रार्थना सभा का अंत "जो बोले सो अभय, वैद्य धर्म की जय" के उच्चारण से होता था। हमारे माता पिता एवं उनके मित्र कभी कभी " जो वह पीछे छोड़ आये ", इस विषय में बातचीत किया करते थे। आर्य समाज साफ़ तौर पर मुस्लिम – विरोधी था, इसका पता हमें काफी बाद में लगा। वह समय अपने टूटे टुकड़ों को सहेजने और एक स्वतन्त्र , धर्मनिरपेक्ष भारत के निवासी होने में गौरव लेने का था। वह समय आगे बढ़ने का था मेरे भाई बहन अक्सर मेरी माँ को चिढ़ाया करते , "पोस्टर में स्वामी दयानन्द के गुलाबी होंठों को देखो !" वह पोस्टर मेरी मां के बिस्तर के सिरहाने टंगा हुआ था और मेरी माँ के साथ साथ हमारे जीवन का भी अभिन्न हिस्सा था।


आधे अधूरे सुधार

एक आधुनिक स्वामी दयानन्द की ही तरह भगवा वस्त्रों पहनकर गाँवों में भ्रमण करनेवाले स्वामी अग्निवेश एक जानी मानी हस्ती बन चुके थे। लेकिन हम अपने दादा द्वारा दिए भोजों की कहानियां सुनकर बड़े हुए थे जहाँ वे अपने साथ काम करनेवाले सारे सहयोगियों को खिलाते थे , चाहे वे हरिजन हों या दलित। कभी-कभी हमें ऐसा लगता था जैसे स्वामी अग्निवेश इस मामले में बहुत ज़्यादा नहीं कर पाए क्योंकि आर्य समाज में जाति आधारित भेदभाव की मनाही थी। 1980 के दशक के मध्य में मैं स्वामी अग्निवेश के साथ नाथद्वारा गयी थी। मुझे उम्मीद थी कि वे मंदिर के बाहर पुजारियों द्वारा लगाया गया वह घेरा तोड़ने में सफल होंगे जो दलितों को मंदिर प्रांगण से बाहर रखने हेतु बनाया गया था। लेकिन जिला प्रशासन ने धारा 144 लगा दी और स्वामी अग्निवेश ने भी चुपचाप हार मान ली। इसके बावजूद भगवाधारी स्वामी अग्निवेश नित नयी बुलंदियों को छूटे चले गए। उन्होंने बंधुआ मुक्ति मोर्चा की स्थापना की, साथ ही वे यूएन ट्रस्ट फंड ऑन कंटेम्प्ररी फॉर्म्स ऑफ़ स्लेवरी (आखिर बंधुआ मज़दूरी भी एक तरह की दास प्रथा ही तो है ) भी थे। इसके आलावा वे आर्यसमाज की विश्व परिषद् के अध्यक्ष भी रह चुके हैं। इस दौरान, पृष्ठभूमि में कहीं ही सही लेकिन स्वामी अग्निवेश ने अपनी एक सामानांतर यात्रा जारी रखी। उन्होंने अंतर-धर्म सम्मेलनों में भाग तो लिया ही, साथ ही साथ उन्होंने 'बिग बॉस' के घर में भी तीन दिन बिताये। मंगलवार को उनपर हुए इस हमले के साथ ही स्वामी अग्निवेश हमारे वर्तमान जीवन में एक धमाके के साथ दुबारा दाखिल हो चुके हैं। इस अस्सी वर्षीय आर्यसमाजी पर हमला इसलिए हुआ क्योंकि हिन्दू मर्दों के एक समूह का मानना था कि स्वामी अग्निवेश का हिंदुत्व बहुत ही सहनशील और दयालु है।



नफरत का सामान्यीकरण

झारखंड के मुख्यमंत्री रघुबर दास ने अवश्य एक जांच शुरू की है लेकिन यह साफ़ तौर पर स्पष्ट है कि भाजपा ने नफरत के सामान्यीकरण के माध्यम से एक ऐसा माहौल बना दिया है जहाँ देश के सबसे शांतिपूर्ण हिस्सों में नफरत बढ़ रही है। सबसे पहले, वे मुस्लिम मांस व्यापारियों के लिए आए, क्योंकि उन्हें मुसलमानों का झारखण्ड में गोमांस खाना पसंद नहीं आया। यह अलग बात है कि ऐसा कभी कुछ हुआ नहीं था। अब वे हिन्दू आर्य समाजियों पर हमले की मुद्रा में हैं क्योंकि आर्यसमाज द्वारा प्रचारित हिंदुत्व उनके स्वयं की हिंदुत्व की परिभाषा से अलग है। संभव है कि उन्नीसवीं शताब्दी में स्वामी दयानन्द ने महसूस किया हो कि हिन्दू धर्म के अंदर भी भेदभाव भयानक तरीके से प्रचलित है। शायद यही कारण था कि इस गुजराती ने हिन्दू धर्म को सुधारने का बीड़ा उठाया। आज सभी नज़रें एक दूसरे गुजराती, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर टिकी हैं। लोग इस उम्मीद में हैं कि मोदी धर्म के नाम पर फैलाये जा रहे इस भयानक मारकाट के विरोध में बयान देकर इसका अंत करेंगे। यहां तक कि सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा है कि "मोबोक्रेसी" या भीड़तंत्र को सामान्य बनने की अनुमति नहीं दी जा सकती है। लेकिन दिल्ली के दिल में स्थित प्रधान मंत्री के आवास से एक उग्र एवं बेरहम मौन के अलावा कोई प्रतिक्रिया नहीं रही।

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