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भारत छोड़ो आंदोलन: जानें, कैसे भारत छोड़ने को मजबूर हुए अंग्रेज

8 अगस्त, 2020 को भारत छोड़ो आंदोलन (Quit India Movement) के 78 वर्ष पूरे हो गए हैं, जिसे अगस्त क्रांति (August Kranti) के नाम से भी जाना जाता है।

भारत छोड़ो आंदोलन: जानें, कैसे भारत छोड़ने को मजबूर हुए अंग्रेज
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8 अगस्त, 2020 को भारत छोड़ो आंदोलन (Quit India Movement) के 78 वर्ष पूरे हो गए हैं, जिसे अगस्त क्रांति (August Kranti) के नाम से भी जाना जाता है।

प्रमुख बिंदु:

भारत छोड़ो आंदोलन से प्रेरणा लेते हुए तथा भारत छोड़ो आंदोलन की भावना को पुनर्जीवित करते हुए प्रधान मंत्री द्वारा महात्मा गांधी के 'करो या मरो' (Do or Die) के नारे के स्थान पर एक नया नारा 'करेंगे और करके रहेंगे' (karenge Aur karake Rahenge) दिया गया जिसका उद्देश्य भारत को वर्ष 2022 तक 'न्यू इंडिया' (New India) बनाने के लक्ष्य को प्राप्त करना है।

आंदोलन के बारे में: 8 अगस्त, 1942 को महात्मा गांधी द्वारा भारत में ब्रिटिश शासन को समाप्त करने के लिये एक स्पष्टीकरण प्रस्तुत किया गया जिसके तहत मुंबई में अखिल भारतीय काँन्ग्रेस समिति (All-India Congress Committee) के सत्र में भारत छोड़ो आंदोलन शुरू करने का आह्वान किया गया ।

गाँधीजी ने ऐतिहासिक ग्वालिया टैंक मैदान में दिये गए अपने भाषण में 'करो या मरो' का नारा दिया, जिसे अब अगस्त क्रांति मैदान (August Kranti Maidan) के नाम से जाना जाता है।

अरुणा आसफ अली को स्वतंत्रता आंदोलन में 'ग्रैंड ओल्ड लेडी' के रूप में जाना गया जिन्हें भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान मुंबई के ग्वालिया टैंक मैदान में भारतीय ध्वज फहराने के लिये जाना जाता है।

'भारत छोड़ो' का नारा यूसुफ मेहरली द्वारा तैयार किया गया था, जो एक समाजवादी एवं ट्रेड यूनियनवादी थे इन्होने मुंबई के मेयर के रूप में भी काम किया था, इनके द्वारा 'साइमन गो बैक' (Simon Go Back) के नारे को भी गढ़ा गया था।

भारत छोड़ो आंदोलन के कारण:

आंदोलन का तात्कालिक कारण क्रिप्स मिशन की समाप्ति/ मिशन के किसी अंतिम निर्णय पर न पहुँचना था।

द्वितीय विश्व युद्ध में भारत का ब्रिटिश को बिना शर्त समर्थन करने की मंशा को भारतीय राष्ट्रीय काँन्ग्रेस द्वारा सही से न समझा जाना।

ब्रिटिश-विरोधी भावना तथा पूर्ण स्वतंत्रता की मांग ने भारतीय जनता के बीच लोकप्रियता हासिल कर ली थी।

अखिल भारतीय किसान सभा, फारवर्ड ब्लाक आदि जैसे काँन्ग्रेस से संबद्ध विभिन्न निकायों के नेतृत्त्व में दो दशक से चल रहे जन आंदोलनों ने इस आंदोलन के लिये पृष्ठभूमि निर्मित कर दी थी।

द्वितीय विश्व युद्ध के परिणामस्वरूप अर्थव्यवस्था की स्थिति काफी खराब हो गई थी।

आंदोलन की मांग:

फासीवाद के खिलाफ द्वितीय विश्व युद्ध में भारतीयों का सहयोग पाने के लिये भारत में ब्रिटिश शासन को तत्काल प्रभाव से समाप्त करने की मांग की गई।

भारत से अंग्रेजों के जाने के बाद एक अंतरिम सरकार बनाने की मांग।

आंदोलन के चरण:

आंदोलन के मुख्यत: तीन चरण थे-

प्रथम चरण:

आंदोलन के प्रथम चरण में शहरी विद्रोह, बहिष्कार एवं धरना प्रदर्शन इत्यादि का सहारा लिया गया, जिसे जल्दी ही दबा दिया गया।

पूरे देश में हड़तालें एवं प्रदर्शन किये गए और श्रमिकों द्वारा कारखानों में काम न करके समर्थन किया गया।

गांधीजी को शीघ्र ही पुणे के आगा खान पैलेस में कैद कर लिया गया तथा लगभग सभी नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया।

द्वितीय चरण:

आंदोलन के द्वितीय चरण का मुख्य केंद्र बिंदु ग्रामीण क्षेत्र रहा।

इस चरण की परिणीति किसान आंदोलन, संचार प्रणालियों को नष्ट करना जैसे- रेलवे ट्रैक एवं स्टेशन, टेलीग्राफ तार तथा खंभे, सरकारी भवनों पर हमले इत्यादि के रूप में हुई।

तृतीय या अंतिम चरण:

यह चरण देश के विभिन्न हिस्सों में समानांतर सरकारों के गठन का साक्षी बना जिनमें बलिया, तामलुक, सतारा इत्यादि की समानांतर सरकारें शामिल हैं।

स्वतः स्फूर्त हिंसा घटनाएँ: भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान कुछ स्थानों पर हिंसा देखी गई जो पूर्व नियोजित नहीं थी।

भविष्य के नेता: राम मनोहर लोहिया, जे. पी. नारायण, अरुणा आसफ अली, बीजू पटनायक, सुचेता कृपलानी आदि नेताओं द्वारा भूमिगत गतिविधियाँ की गईं, जो बाद में प्रमुख नेताओं के रूप में सामने आए।

महिला भागीदारी: महिलाओं ने आंदोलन में सक्रिय रूप से कार्य किया। उषा मेहता जैसी महिला नेताओं ने एक भूमिगत रेडियो स्टेशन स्थापित करने में मदद की जिसके कारण आंदोलन के बारे में लोगों में जागृति आई।

आंदोलन को प्राप्त समर्थन:

मुस्लिम लीग, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी एवं हिंदू महासभा द्वारा आंदोलन का समर्थन नहीं किया गया। भारतीय नौकरशाही से भी आंदोलन को समर्थन प्राप्त नहीं हुआ।

मुस्लिम लीग देश के विभाजन से पहले भारत छोड़ो आंदोलन के पक्ष में नहीं थी।

कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा भी ब्रिटिशों का समर्थन किया गया क्योंकि वे सोवियत संघ के साथ संबद्ध थे।

हिंदू महासभा ने भारत छोड़ो आंदोलन का खुलकर विरोध किया इसे आशंका थी कि आंदोलन आंतरिक अव्यवस्था पैदा करेगा तथा युद्ध के दौरान देश की आंतरिक सुरक्षा को खतरे में डाल देगा।

इस बीच, सुभाष चंद्र बोस ने देश के बाहर से भारतीय राष्ट्रीय सेना और आज़ाद हिंद सरकार का गठन किया हालाँकि सी. राजगोपालाचारी पूर्ण स्वतंत्रता के पक्ष में नहीं थे जिसके कारण उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय काँन्ग्रेस से इस्तीफा दे दिया।

परिणाम:

अंग्रेजों द्वारा भारत छोड़ो आंदोलन को हिंसक तरीके से दबाया गया जिसमे लोगों पर गोलियाँ चलाई गई, लाठीचार्ज किया गया तथा गाँवों को जला दिया गया और भारी जुर्माना लगाया गया।

आंदोलन के दौरान 100000 से अधिक लोगों को गिरफ्तार किया गया तथा सरकार द्वारा आंदोलन को कुचलने के लिये हिंसा का सहारा लिया गया ।

अंग्रेजों द्वारा भारतीय राष्ट्रीय काँन्ग्रेस को गैरकानूनी संघ घोषित कर दिया गया।

आंदोलन ने अंग्रेज़ों के साथ राजनीतिक वार्ता की प्रकृति को बदल दिया जिसने अंततः भारत की स्वतंत्रता का मार्ग प्रशस्त किया।

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