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उत्तर प्रदेश

योगिराज में आज भी दलित महिलाएं सिर पर मैला उठाने को मजबूर

योगिराज में आज भी दलित महिलाएं सिर पर मैला उठाने को मजबूर
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दलितों का जीवन स्तर सुधरने का दवा करने वाली भाजपा शासित उत्तर प्रदेश में दलित महिलाएं आज भी हाथ से मैला ढोने को विवश है. सुप्रीम कोर्ट की सख्त पाबंदी के बावजूद आज भी ये काम उत्तर प्रदेश चल रहा है है. आप को बता दें की कन्नौज जिले के एक गांव में दलित महिलाएं दो जून की रोटी के लिए अपने हाथों से दूसरे के मैले को साफ़ करती हैं.


आश्चर्य की बात यह है कि जिला प्रशासन इस बात से बेखबर है.कन्नौज की तिर्वा तहसील का अगौस गांव सवर्ण बाहुल्य है, लेकिन यहां कुछ दलित परिवार रोजगार का कोई साधन न होने की वजह से इन दलित परिवारों की महिलाएं दूसरों के घरों का मैला साफ़ कर अपना जीवन यापन कर रही हैं. ऐसा नहीं है कि समाज के जागरूक लोगों ने इनकी दुर्दशा की बात जिला प्रशासन तक न पहुंचाई हो, लेकिन इस अमानवीय कुप्रथा को रोकने के लिए आज तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया.


समाज को बांटने वाली इस कुप्रथा को रोकने के लिए अभी तक कोई सामने नहीं आया है. आप की बता दें की इन दलितों के पास रोजी रोटी का कोई साधन न होने से ये मैला ढोने को मजबूर हैं. हाथों से दूसरे घरों का मल उठाकर ये दलित महिलाएं टोकरी में भरकर गांव के बाहर ले जाती हैं.मैला ढोने वाली महिलाओं का रोना है की मैला न ढोयें तो क्या करें, बच्चों का पेट कैसे पालें, उनको कैसे पढाएं, बेटियों की शादी कैसे करें. मज़बूरी में ही ये काम करना पड़ता है.


यहां चौंकाने वाली बात यह है कि अगौस में चल रही मैला ढुलवाने की परंपरा से कन्नौज प्रशासन पूरी तरह अनजान है. जबकि आस-पास के कई गांवों में मशहूर है कि अगौस के दलित प्रशासनिक लापरवाही के चलते आज भी मैला उठाते हैं. इस बात की जानकारी कई बार गांव के कुछ सभ्य लोगों ने अफसरों तक भी पहुंचाई, लेकिन किसी अफसर ने समाज को बांटने वाली इस कुप्रथा को खत्म करने के लिए कोई कदम नहीं उठाया.


अगौस गांव में चल रही इस परम्परा से एक बात तो तय है कि समाज में आज भी दलितों के प्रति सोच पूरी तरह से बदली नहीं. यह सभ्य समाज के मुंह पर एक तमाचा भी है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुले में शौच न करने की अपील करते हैं. प्रदेश के सीएम योगी आदित्यनाथ 2018 तक प्रदेश को खुले में शौच से मुक्त करने की बात करते हैं, लेकिन सिर पर मैला ढोने की परंपरा का आज भी होना यह दर्शाता है कि प्रशासन और अधिकारी इस मुद्दे को लेकर संवेदनशील नहीं हैं.

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