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Exclusive:योगी के कद से मोदी डर के साये में, हटाने की चल रही है साजिश, किस के इशारे पर खोली गई गोरखपुर दंगे की फाइल? जानिए सच्चाई

Exclusive:योगी के कद से मोदी डर के साये में, हटाने की चल रही है साजिश, किस के इशारे पर खोली गई गोरखपुर दंगे की फाइल? जानिए सच्चाई
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गोरखपुर की गुमनाम गली से निकल कर उत्तर प्रदेश की सत्ता के शिखर पर पहुँचने वाले सीएम योगी आदित्यनाथ इस साल के सबसे चर्चित व्यक्ति रहे है, चर्चा में और तेज़ी से तब आये जब मोदी ने उनको यूपी सीएम के लिए चुना. उसके बाद उत्तर प्रदेश की राजनीति पुरे देश के सर पर चढ़ कर बोलने लगा, सीएम पद का सपथ लेने के बाद एक के बाद एक निर्णय ने योगी को मोदी के आगे लाकर खड़ा कर दिया मीडिया से लेकर सोशल मीडिया पर मोदी नहीं अब योगी के लिए पोस्ट होने लगे थे, टीवी पर मोदी नहीं योगी के लिए टीआरपी बढ़ने लगे थे, सबकुछ सही चल रहा था, सरकार भी सही चल रही थी फिर शुरू हुआ आन्तरिक विरोध, आतंरिक विरोध यूं ही नहीं चला संगठन के कई बड़े नेताओ को दरकनार कर योगी को सीएम बनाना भाजपा यूपी में भूकंप आने जैसा था.


उत्तर प्रदेश की जीत का खुमार तेज़ी से उतर रहा है

मीडिया रिपोर्ट की माने तो जाहिर है यूपी में बीजेपी की जबरदस्त जीत की खुमारी तेज़ी से उतर रही है और हाल अगर ऐसा ही रहा तो 2019 में दिल्ली की गद्दी पर दुबारा बैठने के मोदी के सपने यूपी में ही दम तोड़ देंगे। दरअसल बीजेपी 15 साल के सपा, बसपा के जिस कुशासन के मुद्दे पर सत्ता में लौटी थी उससे ही अब भटकती दिखाई दे रही है। यूपी में गले तक पहुंचे जिस भ्रष्टाचार पर मोदी और शाह ने अपनी हर चुनावी रैली में प्रहार किया था उस भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस के संकल्प को मोदी के ही मंत्री भूलने लगे हैं। सच तो ये है कि बीजेपी के बड़े नेता ये भूल गए कि पांच साल तक अखिलेश सरकार के भ्रष्टाचार को किन लोगों ने बेनकाब किया था।


भुला दिये गये लक्ष्मीकांत वाजपेयी जैसे जमीनी नेता

आप को बता दें कि 'नॉएडा में अरबों रूपए के घोटालों को खोलने वाले बीजेपी नेता लक्ष्मीकांत वाजपेयी भी सत्ता की चकाचौंध में गुम हो गए हैं। स्कूटर से चलने वाले बीजेपी के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मीकांत की छवि ईमानदार नेता वाली थी लेकिन चुनाव हारने के बाद पार्टी ने लक्ष्मीकांत को कार्यकर्ता तक की अहमियत नहीं दी पार्टी के एक पदाधिकारी ने कहा कि यादव राज में भ्रष्टाचार की लड़ाई या तो सुरेश खन्ना ने सदन में लड़ी और या फिर लक्ष्मीकांत ने सडकों पर। खन्ना चुनाव जीत गए इसलिए उनकी वरिष्ठता देखकर उन्हें मंत्री बनाना पड़ा। लेकिन लक्ष्मीकांत को शायद अब बीजेपी का कोई सचिव भी एक गिलास पानी नहीं पूछता है कौन चला रहा है यह कुचक्र? इसके पीछे किन ताकतों का हाथ है? आगे का कहानी और सच्चाई दोनों आपको पता है, कि आखिर क्यों ऐसा हो रहा है. फिलहाल अब बात करते हैं योगी आदित्यनाथ पर गोरखपुर दंगे की केस का. योगी आदित्यनाथ पर 2007 में गोरखपुर में हुए दंगों में भीड़ को उकसाने सहित हत्या और आगजनी के भी आरोप हैं, जिस पर गोरखपुर के परवेज़ परवाज़ ने उनके ख़िलाफ़ रिपोर्ट दर्ज करवाई है और हाईकोर्ट में मामले की सीबीआई जांच की मांग कर रहे हैं.


शाह मोदी को 2019 में अचूक निशाना चाहिए यूपी में

नरेन्द्र मोदी आगामी लोकसभा में किसी मुद्दे पर चूकना नहीं चाहते, मोदी और शाह के अनुरूप उत्तर प्रदेश की जीत का खुमार लोकसभा चुनाव तक बरकरार रखना था, ताकि वोटिंग में इसका फायदा उठाया जा सके. लेकिन जीत की खुमारी इस कदर गिर रही है कि अब चकाचौंध तो दूर इज्जत बचाना भाजपा सरकार के लिए मुस्किल हो गया है, देश भर में आलोचनाओं का दौर शुरू हो गया है. किरकिरी होने लगी है सरकार की विकास से लेकर कानून व्यवस्था तक.


तो क्या इसके पीछे शाह-मोदी का हाथ

ये एक सवाल पुरे जोरो पर है कि एन वक्त पर जिस तरह से अडवानी को ठिकाने लगाने के लिए बाबरी केस को फिर से खोला गया उसी तरह योगी को ठिकाने लगाने के लिए गोरखपुर दंगे को खोला गया है और जनता में ये फैलाया जा रहा है कि यूपी सरकार योगी को इस केस में बचाया जा रहा है जिससे योगी की किरकिरी हो और उनको हटाने की रोड़ा साफ़ हो सके. इससे मोदी के लिए एक पन्त दो काज और सांप भी मर जाये और लाठी भी ना टूटे जैसा होगा. वो इस केस का हवाला देकर उनको हटा भी देंगे और देश में एक मेसेज भी दे देंगे की दंगाइयों को उनकी सरकार में कोई जगह नहीं है और जिसपर आरोप तय हो जाये उनको सरकार में भाजपा नहीं रख सकती.

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