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राष्ट्रपति चुनाव: RSS बना सकता है राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी को उम्मीदवार, राष्ट्रपति भवन में भगवत के लंच के बाद सियासी अटकलें तेज़!

राष्ट्रपति चुनाव: RSS  बना सकता है राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी को उम्मीदवार, राष्ट्रपति भवन में भगवत के लंच के बाद सियासी अटकलें तेज़!
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शुक्रवार को राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने राष्ट्रपति भवन में लंच पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रमुख मोहन भागवत आमंत्रित किया था. हालिया सियासी माहौल में इस मुलाकात के गहरे मायने हैं. इस मुलाक़ात के बाद सियासी हलकों में अटकलों का बाजार गर्म हो गया है, कई मतलब निकाले जा रहे हैं. ऐसा पहली बार हुआ था कि किसी राष्ट्रपति ने संघ प्रमुख को राष्ट्रपति भवन आने का न्यौता दिया. वो भी सिर्फ मुलाकात के लिए नहीं.राष्ट्रपति ने मोहन भागवत को लंच पर बुलाया था. राजधानी दिल्ली में बहुत से लोग इस बात से हैरान हैं. इससे अटकलों का बाजार गर्म हो गया है. लोग कयास लगा रहे हैं कि आखिर इस लंच मीटिंग में दो दिग्गजों के बीच क्या-क्या बातें हुईं? संघ प्रमुख मोहन भागवत की राष्ट्रपति से लंच पर उस दिन मुलाकात हुई, जिस दिन मोदी सरकार के दो सीनियर मंत्री, कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी समेत कई विपक्षी नेताओं से मिले. सोनिया के अलावा राजनाथ और वेंकैया नायडू ने सीपीएम महासचिव सीताराम येचुरी से भी मुलाकात की.मोदी सरकार के दो मंत्रियों का विपक्षी नेताओं से मिलने का मकसद सरकार और विपक्ष के बीच रिश्तों को बेहतर बनाना भी था, और राष्ट्रपति चुनाव के लिए उम्मीदवार को लेकर चर्चा करना भी था.


मोहन भागवत और आरएसएस की नब्ज़ को करीब से जानने सूत्रों का कहना है कि भागवत पहले भी, दो बार राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी से मिल चुके हैं. यानी ये इन नेताओं की पहली मुलाकात नहीं थी. हां, राष्ट्रपति भवन में पहली बार किसी आरएसएस प्रमुख को लंच के लिए न्यौता मिला था.इस सूत्र के मुताबिक, इस मुलाकात के बहुत ज्यादा मायने निकालने की कोशिश नहीं होनी चाहिए. ये दोनों दिग्गजो के बीच लंच पर सौहार्दपूर्ण मुलाकात भर थी. ये मुलाकात पहले हुई होती, तो इसके कई मायने निकाले जा सकते थे. हमारे सूत्र के कहने का मतलब ये कि प्रणब मुखर्जी राष्ट्रपति भवन से विदा होने वाले हैं. वो राष्ट्रपति चुनाव की रेस में भी नहीं हैं. ऐसे में उनकी संघ प्रमुख के साथ लंच मीटिंग से हालात बहुत बदलने वाले नहीं. हालांकि, जानकार मानते हैं कि मोहन भागवत और प्रणब मुखर्जी के लंच पर मिलने से कई नई संभावनाएं बन सकती हैं. इन लोगों का मानना है कि जब तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी राष्ट्रपति पद के लिए उम्मीदवार के नाम का एलान नहीं करते, तब तक किसी संभावना को खारिज नहीं किया जा सकता.


मोदी सरकार के राज में पीएम मोदी और राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के रिश्ते बहुत अच्छे रहे हैं. 2014 के आम चुनाव के दौरान भी मोदी नेता के तौर पर प्रणब मुखर्जी की जमकर तारीफें किया करते थे. मोदी अभी भी राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी का बहुत सम्मान करते हैं. लेकिन, मोदी सरकार के पास जिस तरह का बहुमत और समर्थन है, उसे देखते हुए संघ परिवार को राष्ट्रपति चुनाव को लेकर उनसे बड़ी उम्मीदें हैं. ऐसा माना जा रहा था कि बीजेपी ऐसे शख्स को राष्ट्रपति बनाएगी जो संघ परिवार से गहरा ताल्लुक रखता हो. संघ परिवार का कोई नेता अब तक राष्ट्रपति नहीं हुआ है.तीसरी बात ये कि आरएसएस के प्रमुख को राष्ट्रपति ने लंच पर राष्ट्रपति भवन बुलाया, इसके और भी मायने हैं. इससे जाहिर होता है कि संघ की देश में और राजनीति में स्वीकार्यता बढ़ी है. आज की तारीख में देश की राजनीति और अफसरशाही के बीच संघ का रुतबा कई गुना बढ़ गया है.प्रणब मुखर्जी एक तजुर्बेकार और खांटी कांग्रेसी नेता रहे हैं. वो इंदिरा गांधी से लेकर कई सरकारों में मंत्री रहे थे. उनका कई ऐसी रिपोर्टों से सामना हुआ होगा, जिसमें संघ को कांग्रेस का सबसे बड़ा दुश्मन बताया गया होगा.


इसीलिए प्रणब मुखर्जी का संघ प्रमुख भागवत को निजी लंच पर बुलाना, या उनसे पहले भी मिलना, किसी भी नजरिए से सामान्य बात नहीं. सूत्रों के मुताबिक इस लंच का प्लान करीब एक महीने पहले बना था. लेकिन, इसे बाद के लिए टाल दिया गया था, ताकि लंच के बहाने अटकलों का बाजार न गर्म हो.एक और सियासी तर्क दिया जा रहा है. वो ये कि, आजाद भारत के 70 साल के इतिहास में बीजेपी केवल 9 साल केंद्र की सत्ता में रही है. संघ भी इस दौरान अपना विस्तार करता रहा है.हालांकि पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा था कि वो भी एक स्वयंसेवक हैं. लेकिन उस वक्त संघ को वाजपेयी सरकार पर उतना भरोसा नहीं था, या वाजपेयी सरकार को संघ पर उतना यकीन नहीं था, जितना भरोसा आज संघ और मोदी-अमित शाह की जोड़ी एक-दूसरे पर करते हैं.राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी और संघ प्रमुख भागवत के बीच लंच पर हुई ये मुलाकात निश्चित रूप से संघ के इतिहास में नया पन्ना जोड़ने वाली है.

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