Batukeshwar Dutt Biography in Hindi | बटुकेश्वर दत्त का जीवन परिचय

Batukeshwar Dutt Biography in Hindi | बटुकेश्वर दत्त 1900 के एक भारतीय क्रांतिकारी और स्वतंत्रता सेनानी थे। बटुकेश्वर दत्त भारत के स्वतंत्रता संग्राम के महान क्रान्तिकारी थे। बटुकेश्वर दत्त को देश ने सबसे पहले 8 अप्रैल 1929 को जाना, जब वे भगत सिंह के साथ केंद्रीय विधान सभा में बम विस्फोट के बाद गिरफ्तार किए गए। उन्होनें आगरा में स्वतंत्रता आंदोलन को संगठित करने में उल्लेखनीय कार्य किया था।

Update: 2020-12-06 12:10 GMT

Batukeshwar Dutt Biography in Hindi | बटुकेश्वर दत्त का जीवन परिचय

  • नाम बटुकेश्वर दत्त
  • जन्म 18 नवंबर, 1910
  • जन्मस्थान ग्राम-औरी, ज़िला-नानी बेदवान
  • पिता गोष्ठ बिहारी दत्त
  • पत्नी अंजली दत्त
  • पुत्री भारती बागची
  • व्यवसाय क्रांतिकारी, पटकथा लेखक
  • पुरस्कार सर्वश्रेष्ठ कहानी के लिए राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार
  • नागरिकता भारतीय

स्वतंत्रता सेनानी बटुकेश्वर दत्त (Batukeshwar Dutt Biography in Hindi)

Batukeshwar Dutt Biography in Hindi | बटुकेश्वर दत्त 1900 के एक भारतीय क्रांतिकारी और स्वतंत्रता सेनानी थे। बटुकेश्वर दत्त भारत के स्वतंत्रता संग्राम के महान क्रान्तिकारी थे। बटुकेश्वर दत्त को देश ने सबसे पहले 8 अप्रैल 1929 को जाना, जब वे भगत सिंह के साथ केंद्रीय विधान सभा में बम विस्फोट के बाद गिरफ्तार किए गए। उन्होनें आगरा में स्वतंत्रता आंदोलन को संगठित करने में उल्लेखनीय कार्य किया था।

प्रारंभिक जीवन (Batukeshwar Dutt Early Life)

बटुकेश्वर का जन्म पश्चिम बंगाल के बुर्द्वान जिले के ओअरी गाँव में 18 नवम्बर 1910 को हुआ था। बटुकेश्वर दत्त जो बी.के. दत्त, बट्टू और मोहन के नाम से भी जाने जाते थे, वे गोष्ठ बिहारी दत्त के बेटे थे।

शिक्षा (Batukeshwar Dutt Education)

हाईस्कूल की पढ़ाई के लिए वो कानपुर आ गए। कानपुर शहर में ही उनकी मुलाकात चंद्रशेखर आजाद से हुई। उन दिनों चंद्रशेखर आजाद झांसी, कानपुर और इलाहाबाद के इलाकों में अपनी क्रांतिकारी गतिविधियां चला रहे थे। 1924 में भगत सिंह भी वहां आए। कानपुर के PPN हाई स्कूल से वे ग्रेजुएट हुए।

बटुकेश्वर ने 1925 में मैट्रिक की परीक्षा पास की और तभी माता व पिता दोनों का देहान्त हो गया। इसी समय वे सरदार भगतसिंह और चन्द्रशेखर आज़ाद के सम्पर्क में आए और क्रान्तिकारी संगठन 'हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसियेशन' के सदस्य बन गए। सुखदेव और राजगुरु के साथ भी उन्होंने विभिन्न स्थानों पर काम किया।

स्वतंत्रता संग्राम में उनका योगदान (Batukeshwar Dutt Contribution in the Freedom Struggle)

8 अप्रैल 1929 को दिल्ली स्थित संसद भवन में भगत सिंह के साथ बम विस्फोट कर ब्रिटिश राज्य की तानाशाही का विरोध किया। बम विस्फोट बिना किसी को नुकसान पहुंचाए सिर्फ पर्चों के माध्यम से अपनी बात को प्रचारित करने के लिए किया गया था। उस दिन भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों को दबाने के लिए ब्रिटिश सरकार की ओर से पब्लिक सेफ्टी बिल और ट्रेड डिस्प्यूट बिल लाया गया था, जो इन लोगों के विरोध के कारण एक वोट से पारित नहीं हो पाया।

देशप्रेम के प्रति उनके जज्बे को देखकर भगत सिंह उनको पहली मुलाकात से ही दोस्त मानने लगे थे। 1928 में जब हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी का गठन चंद्रशेखर आजाद की अगुआई में हुआ, तो बटुकेश्वर दत्त भी उसके अहम सदस्य थे। बम बनाने के लिए बटुकेश्वर दत्त ने खास ट्रेनिंग ली और इसमें महारत हासिल कर ली। 

एचएसआरए की कई क्रांतिकारी गतिविधियों में वो सीधे तौर पर शामिल थे। जब क्रांतिकारी गतिविधियों के खिलाफ अंग्रेज सरकार ने डिफेंस ऑफ इंडिया एक्ट लाने की योजना बनाई, तो भगत सिंह ने उसी तरह से सेंट्रल असेंबली में बम फोड़ने का इरादा व्यक्त किया, जैसे कभी फ्रांस के चैंबर ऑफ डेपुटीज में एक क्रांतिकारी ने फोड़ा था। एचएसआरए की मीटिंग हुई, तय हुआ कि बटुकेश्वर दत्त असेंबली में बम फेंकेंगे और सुखदेव उनके साथ होंगे।

भगत सिंह उस दौरान सोवियत संघ की यात्रा पर होंगे, लेकिन बाद में भगत सिंह के सोवियत संघ का दौरा रद्द हो गया और दूसरी मीटिंग में ये तय हुआ कि बटुकेश्वर दत्त बम प्लांट करेंगे, लेकिन उनके साथ सुखदेव के बजाय भगत सिंह होंगे। भगत सिंह को पता था कि बम फेंकने के बाद असेंबली से बचकर निकल पाना, मुमकिन नहीं होगा, ऐसे में क्यों ना इस घटना को बड़ा बनाया जाए, इस घटना के जरिए बड़ा मैसेज दिया जाए।

8 अप्रैल 1929 का दिन था, पब्लिक सेफ्टी बिल पेश किया जाना था। बटुकेश्वर बचते-बचाते किसी तरह भगत सिंह के साथ दो बम सेंट्रल असेंबली में अंदर ले जाने में कामयाब हो गए। जैसे ही बिल पेश हुआ, विजिटर गैलरी में मौजूद भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त उठे और दो बम उस तरफ उछाल दिए जहां बेंच खाली थी। जॉर्ज सस्टर और बी.दलाल समेत थोड़े से लोग घायल हुए, लेकिन बम ज्यादा शक्तिशाली नहीं थे, सो धुआं तो भरा, लेकिन किसी की जान को कोई खतरा नहीं था। बम के साथ-साथ दोनों ने वो पर्चे भी फेंके, गिरफ्तारी से पहले दोनों ने इंकलाब जिंदाबाद, साम्राज्यवाद मुर्दाबाद जैसे नारे भी लगाए। दस मिनट के अंदर असेंबली फिर शुरू हुई और फिर स्थगित कर दी गई।

भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरू को फांसी हुई जबकि बटुकेश्वर दत्त को काला पानी की सज़ा। फांसी की सजा न मिलने से वे दुखी और अपमानित महसूस कर रहे थे। बताते हैं कि यह पता चलने पर भगत सिंह ने उन्हें एक चिट्ठी लिखी। इसका मजमून यह था कि वे दुनिया को यह दिखाएं कि क्रांतिकारी अपने आदर्शों के लिए मर ही नहीं सकते बल्कि जीवित रहकर जेलों की अंधेरी कोठरियों में हर तरह का अत्याचार भी सहन कर सकते हैं। भगत सिंह ने उन्हें समझाया कि मृत्यु सिर्फ सांसारिक तकलीफों से मुक्ति का कारण नहीं बननी चाहिए। बटुकेश्वर दत्त ने यही किया। काला पानी की सजा के तहत उन्हें अंडमान की कुख्यात सेल्युलर जेल भेजा गया।

1937 में वे बांकीपुर केन्द्रीय कारागार, पटना लाए गए। 1938 में उनकी रिहाई हो गई। कालापानी की सजा के दौरान ही उन्हें टीबी हो गया था जिससे वे मरते-मरते बचे। जल्द ही वे महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन में कूद पड़े। उन्हें फिर गिरफ्तार कर लिया गया। चार साल बाद 1945 में वे रिहा हुए। 1947 में देश आजाद हो गया। नवम्बर, 1947 में बटुकेश्वर दत्त ने शादी कर ली और पटना में रहने लगे। लेकिन उनकी जिंदगी का संघर्ष जारी रहा।

कभी सिगरेट कंपनी एजेंट तो कभी टूरिस्ट गाइड बनकर उन्हें पटना की सड़कों की धूल छाननी पड़ी। बताते हैं कि एक बार पटना में बसों के लिए परमिट मिल रहे थे। बटुकेश्वर दत्त ने भी आवेदन किया। परमिट के लिए जब पटना के कमिश्नर के सामने पेशी हुई तो उनसे कहा गया कि वे स्वतंत्रता सेनानी होने का प्रमाण पत्र लेकर आएं। हालांकि बाद में राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद को जब यह बात पता चली तो कमिश्नर ने बटुकेश्वर से माफ़ी मांगी थी।

बटुकेश्वर जी का बस इतना ही सम्मान हुआ कि पचास के दशक में उन्हें एक बार चार महीने के लिए विधान परिषद का सदस्य मनोनीत किया गया। अनिल वर्मा बताते हैं कि बटुकेश्वर दत्त का जीवन इसी निराशा में बीता और 1965 में उनकी मौत हो गई। आज़ादी के साठ साल बाद बटुकेश्वर दत्त को एक किताब के ज़रिए याद तो किया गया लेकिन न जाने कितने ऐसे क्रांतिकारी हैं जिन पर अभी तक एक पर्चा भी नहीं लिखा गया है।

मृत्यु (Batukeshwar Dutt Death)

कुछ समय तक लंबी बीमारी से जूझे रहने के बाद 20 जुलाई 1965 को दिल्ली के AIIMS हॉस्पिटल में उनकी मृत्यु हो गयी थी। पंजाब में फिरोजपुर के पास हुसैनीवाला बाग़ में उनका अंतिम संस्कार किया गया, जहाँ उनके साथी भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव का भी अंतिम संस्कार उनकी मृत्यु के कुछ वर्षो पहले किया गया था।

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