गोवा भारत का हिस्सा कैसे बना? Do you know how Goa became part of India?

गोवा का नाम सुनते ही हम खुश हो जाते हैं। गोवा घूमने जाने की बात आते ही हमें मसालों की सुगंध, समुद्री किनारों पर मिलने वाले हवा के झोंको तथा अरब सागर में दिखने वाले मनोरम डूबते सूरज को देखने के नज़ारे स्वतः ही याद आने लगते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि वर्ष 1961 से पूर्व गोवा भारत का हिस्सा नहीं था। आइए देखते हैं कि गोवा कब भारत का भाग बना।

Update: 2020-12-23 14:51 GMT

गोवा भारत का हिस्सा कैसे बना? Do you know how Goa became part of India?

जनशक्ति: गोवा का नाम सुनते ही हम खुश हो जाते हैं। गोवा घूमने जाने की बात आते ही हमें मसालों की सुगंध, समुद्री किनारों पर मिलने वाले हवा के झोंको तथा अरब सागर में दिखने वाले मनोरम डूबते सूरज को देखने के नज़ारे स्वतः ही याद आने लगते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि वर्ष 1961 से पूर्व गोवा भारत का हिस्सा नहीं था। आइए देखते हैं कि गोवा कब भारत का भाग बना।

जैसा की हम जानते हैं, भारत 1947 में आज़ाद हुआ था और आज का "एक" भारत पंडित नेहरु और सरदार पटेल के अथक प्रयासों के कारण ही एक हुआ था जो आजादी के बाद विभिन्न रियासतों में बिखरा हुआ था। वो सरदार पटेल ही थे जिनकी भू-राजनीतिक सूझ-बुझ के कारण छोटी-बड़ी 562 रियासतों को भारतीय संघ में समाहित कर दिया था। यही कारण है सरदार पटेल को "भारत का बिस्मार्क और लौह पुरूष" भी कहा जाता है। लेकिन कुछ ऐसे भी प्रांत थे जहाँ उपनिवेशी जड़े इस कदर गहरी थी की आजादी के बहुत सालो तक वो प्रांत भारत का हिस्सा नहीं थे उसमे से एक था गोवा, जहाँ पुर्तगालियों का लगभग 450 सालों से शासन था।

जब 1947 में भारत को आज़ादी मिल गयी थी तब भी यहाँ पर पुर्तगालियों का ही राज्य स्थापित था। भारत सरकार के बार–बार अनुरोध करने पर भी पुर्तगाली यहाँ से जाने को तैयार नहीं थे। गोवा की आजादी के लिए लिए 1950 के आसपास प्रदर्शन जोर पकड़ा। 1954 में भारत समर्थक गोवा के स्वतंत्रता सेनानियों ने दादर और नागर हवेली को मुक्त करा लिया। यहां से आंदोलन और तेज हुआ। 1955 में करीब 3000 से अधिक सत्याग्रहियों ने गोवा की आजादी के लिए आंदोलन शुरू कर दिया। इसके बाद पुर्तगाली सेना ने आंदोलन को कुचलने के लिए हिंसक रूप अख्तियार कर लिया। इस हिंसा में बड़े पैमाने पर लोग मारे गए। लेकिन अब चिंगारी का आग का रूप ले चुकी थी। तनाव बढ़ा और भारत ने पुर्तगाल से सभी राजनयिक संबंध खत्म कर लिए,1 सितंबर 1955 को, गोवा में भारतीय कॉन्सुलेट को बंद कर दिया गया।


तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने कहा कि सरकार गोवा में पुर्तगाल की मौजूदगी को बर्दाश्त नहीं करेगी। भारत ने पुर्तगाल को बाहर करने के लिए गोवा, दमान और दीव के बीच में ब्लॉकेड कर दिया। इसी बीच, पुर्तगाल ने इस मामले को अंतराष्ट्रीय स्तर पर ले जाने की पूरी कोशिश की। लेकिन, क्योंकि यथास्थिति बरकरार रखी गई थी, 18 दिसंबर 1961 को भारतीय सेना ने गोवा, दमन और दीव पर चढ़ाई कर ली। इसे ऑपरेशन विजय का नाम दिया गया। पुर्तगाली सेना को यह आदेश दिया गया कि या तो वह दुश्मन को शिकस्त दे या फिर मौत को गले लगाए। भारतीय सैनिकों की टुकड़ी ने गोवा के बॉर्डर में प्रवेश किया। 36 घंटे से भी ज्यादा वक्त तक जमीनी, समुद्री और हवाई हमले हुए। लेकिन भारत ने अंततः पुर्तगाल के अधीन रहे इस क्षेत्र को अपनी सीमा में मिला लिया। पुर्तगाल के गवर्नर जनरल वसालो इ सिल्वा ने भारतीय सेना प्रमुख पीएन थापर के सामने सरेंडर किया।

कुछ इतिहासकारों की माने तो, बताया जाता है कि विजय नामक सैन्य ऑपरेशन 36 घंटे से भी ज्यादा समय तक चला और फिर 19 दिसंबर 1961 को भारत ने गोवा को आजाद करा लिया था। फिर पुर्तगाली सेना ने बिना किसी शर्त के 19 दिसंबर 1961 को भारतीय सेना के सामने आत्मसमर्पण किया और इस तरह गोवा आजाद हो गया। 30 मई 1987 को गोवा को भारतीय राज्‍य का दर्जा मिला लेकिन 'गोवा मुक्ति दिवस' प्रति वर्ष '19 दिसम्बर' को मनाया जाता है।

गोवा अपने छोटे आकार के बावजूद शुरू से ही बड़ा ट्रेड सेंटर रहा है। अपनी लोकेशन की वजह से यह अंग्रेजों को शुरू से ही आकर्षित करता रहा है। इतना ही नहीं मुगल शासन के समय भी राजा इस तरफ आकर्षित होते रहे हैं।गोवा की तरफ मौर्य, सातवाहन और भोज राजवंश भी आकर्षत हुए थे। गौरतलब है कि 1350 ई. पू में गोवा बाहमानी सल्तनत के अधीन चला गया लेकिन 1370 में विजयनगर सम्राज्य ने इसपर फिर से शासन जमा लिया। विजयनगर साम्राज्य ने एक सदी तक इसपर तब तक आधिपत्य जमाए रखा जब तक कि 1469 में बहमनी सल्तनत फिर से इस पर कब्जा नहीं जमा लिया।

आपको बता दें कि पुर्तगाली भारत आने वाले पहले (1510) और यहां उपनिवेश छोड़ने वाले आखिरी (1961) यूरोपीय शासक थे। गोवा में उनका 451 साल तक शासन रहा जो अंग्रेजों से काफी अलग था। पुर्तगाल ने गोवा को 'वाइस किंगडम' का दर्जा दिया था और यहां के नागरिकों को ठीक वैसे ही अधिकार हासिल थे जैसे पुर्तगाल में वहां के निवासियों को मिलते हैं। उच्च तबके के हिंदू और ईसाइयों के साथ-साथ दूसरे धनी वर्ग के लोगों को कुछ विशेषाधिकार भी थे। जो लोग संपत्ति कर देते थे उन्हें 19वीं शताब्दी के मध्य में यह अधिकार भी मिल गया था कि वे पुर्तगाली संसद में गोवा का प्रतिनिधि चुनने के लिए मत डाल सकें।

राम मनोहर लोहिया और गोवा का मुक्ति संग्राम-

गोवा के लोकगीतों में डॉ. राम मनोहर लोहिया का नाम मिलता है। एक गीत काफी गाया जाता है, ''पहिली माझी ओवी, पहिले माझी फूल, भक्ती ने अर्पिन लोहिया ना।'' कवि बोरकर की पंक्ति से सभी परिचित हैं 'धन्य लोहिया, धन्य भूमि यह धन्य उसके पुत्र'। गोवा 1498 में पुर्तगाली यात्री वास्कोडिगामा के आने के बाद पुर्तगालियों की दृष्टि में आया। 17वीं शताब्दी के पूर्वाद्ध तक यहां पुर्तगालियों का कब्जा हो गया था। भारत के आजाद होने के बाद भी गोवा गुलाम रहा और 19 दिसम्बर 1961 को मुक्त हुआ। गोवा की आजादी का सिंहनाद डॉ. लोहिया ने किया था। वहां के लोकगीतों में डॉ. लोहिया का वर्णन पौराणिक नायकों की तरह होता है। यदि गोवा की आजादी का श्रेय किसी एक व्यक्ति को देना हो तो वे डॉ. राममनोहर लोहिया हैं, जिन्होंने पहली बार गोवा के आजादी के मुद्दे को राष्ट्रीय स्तर का मुद्दा बनाया और अस्वस्थता के बावजूद गोवा मुक्ति संग्राम की अगुवाई में गिरफ्तारी दी।

15 जून 1946 को पंजिम में डॉ. लोहिया की सभा हुई जिसमें तय हुआ 18 जून से सविनय अवज्ञा प्रारम्भ होगा। पुलिस ने टैक्सी वालों को मना कर दिया था। डॉ. लोहिया मडगांव सभा स्थल घोड़ागाड़ी से पहुंचे। तेज बारिश, 20 हजार की जनता और मशीनगन लिए हुए पुर्तगाली फौज सामने खड़ी थी। गगनचुम्बी नारों के बीच डॉ. लोहिया के ऊपर प्रशासक मिराण्डा ने पिस्तौल तान दी। लेकिन लोहिया के आत्मबल और आभामण्डल के आगे उसे झुकना पड़ा। पांच सौ वर्ष के इतिहास में गोवा में पहली बार आजादी का सिंहनाद हुआ। लोहिया गिरफ्तार कर लिए गए। पूरा गोवा युद्ध-स्थल बन गया। पंजिम थाने पर जनता ने धावा बोलकर लोहिया को छुड़ाने का प्रयास किया। एक छोटी लड़की को जयहिन्द कहने पर पुलिस ने बेरहमी से पीटा। 21 जून को गवर्नर का आदेश जारी हुआ, जिसमें आम-सभा और भाषण के लिए सरकारी आदेश लेने की जरूरत नहीं थी। लोहिया चैक (चौराहे) पर झण्डा फहराया गया। गोवा को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता तथा पुर्तगाल को तीन माह का नोटिस देकर लोहिया लौट आए।

गोवा का इतिहास-

गोवा का प्रथम वरदान हिंदू धर्म में रामायण काल में मिलता है। पौराणिक लेखों के अनुसार सरस्वती नदी के सूख जाने के कारण उसके किनारे बसे हुए ब्राम्हणों के पुनर्वास के लिए परशुराम ने समंदर में शर संधान किया। ऋषि का सम्मान करते हुए समंदर ने उस स्थान को अपने क्षेत्र से मुक्त कर दिया। ये पूरा स्थान कोंकण कहलाया और इसका दक्षिण भाग गोपपूरी कहलाया जो वर्तमान में गोवा है। पुर्तगाल में एक कहावत है कि जिसने गोवा देख लिया उसे लिस्बन देखने की जरूरत नहीं है।

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