P.V. Narasimha Rao Biography in Hindi | पी वी नरसिम्हा राव की जीवनी

P.V. Narasimha Rao Biography in Hindi |

Update: 2020-11-22 05:40 GMT

P.V. Narasimha Rao Biography in Hindi पी वी नरसिम्हा राव की जीवनी

P.V. Narasimha Rao Biography in Hindi | पी वी नरसिम्हा राव की जीवनी

  • नाम पामुलापार्ती वेंकट नरसिम्हा राव
  • जन्म 28 जून 1921
  • जन्मस्थान करीम नगर गाँव, हैदराबाद
  • माता रुकमनी अम्मा
  • पिता पी रंगा राव
  • पत्नी सत्याम्मा राव
  • व्यवसाय राजनेता
  • राजनैतिक पार्टी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
  • राष्ट्रीयता भारतीय

पी.वी. नरसिम्हा राव (P.V. Narasimha Rao Biography in Hindi) :

पमुलपर्ति वेंकट नरसिम्हा राव पी.वी. नरसिम्हा के नाम से जाने जाते है। एक भारतीय वकील और राजनेता थे, जिन्होंने 1991 से 1996 तक भारत का 9 वा प्रधानमंत्री बनकर सेवा की थी। उन्हें प्रधानमंत्री बनाने का निर्णय राजनीतिक रूप से काफी महत्वपूर्ण था क्योकि हिंदी न बोलने वाले क्षेत्र से वे पहले प्रधानमंत्री थे, जो भारत के दक्षिण भाग में रहते थे। Politician P.V. Narasimha Rao

प्रारंभिक जीवन (P.V. Narasimha Rao Early Life) :

पी.वी. नरसिम्हा राव जन्म 28 जून 1921 को आंध्रप्रदेश के छोटे से गाँव करीम नगर में हुआ था। उनके पिता पी. सीताराम राव और माता रुक्मिनिअम्मा अग्ररियन परिवार से थी। 3 साल की उम्र में इन्हें पी. रंगा व रुकमनी अम्मा द्वारा गोद ले लिया गया था। इसके बाद यही इनके माता पिता कहलाये। इनका पूरा नाम पामुलापति वेंकट राव था इनके बहुत करीबी इस नाम से परिचित रहे।

निजी जीवन (P.V. Narasimha Rao Personal Life) :

नरसिम्हा जी की शादी सत्याम्मा से हुई थी, जिनसे उन्हें 3 बेटे और 5 बेटियां हुई। इनके बेटे भी इनकी तरह राजनीती में सक्रीय है।

उनका सबसे बड़ा बेटा पी.वी. रंगाराव, कोटला विजय भास्कर रेड्डी की कैबिनेट में शिक्षा मंत्री और वरंगल जिले के हनमकोंडा असेंबली चुनावक्षेत्र से दो बार MLA भी बन चुके है। उनका दूसरा बेटा पी.वी. राजेश्वर राव 11 वी लोकसभा (मई 1996 – दिसम्बर 1997) में संसद के सदस्य भी थे। सिकंदराबाद लोक सभा चुनाव क्षेत्र से वे चुने गये थे।

शिक्षा (P.V. Narasimha Rao Education) :

राव ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा करीमनगर जिले के भीमदेवरापल्ली मंडल के कत्कुरू गाँव में अपने एक रिश्तेदार के घर रहकर ग्रहण की। इसके पश्चात उन्होंने ओस्मानिया विश्वविद्यालय से स्नातक करने के बाद नागपुर विश्वविद्यालय के अंतर्गत हिस्लोप कॉलेज से लॉ की पढाई की।

राव की मातृभाषा तेलुगु थी पर मराठी भाषा पर भी उनकी जोरदार पकड़ थी। आठ भारतीय भाषाओँ (तेलुगु, तमिल, मराठी, हिंदी, संस्कृत, उड़िया, बंगाली और गुजराती) के अलावा वे अंग्रेजी, फ्रांसीसी, अरबी, स्पेनिश, जर्मन और पर्शियन बोलने में पारंगत थे। P.V Narasimha Rao Biography in Hindi

स्वतंत्रता आन्दोलन में योगदान (P.V. Narasimha Rao Contribution to Freedom Movement) :

देश को स्वतंत्र कराने की लड़ाई में सभी भारतवासी प्रयत्न कर रहे थे, हर व्यक्ति अपनी पूर्ण क्षमता से इस युद्ध में अपनी प्रस्तुति दे रहा था। इन्होने भी इस लड़ाई में महत्वपूर्ण कार्य किए। 1940 के दशक में स्वतंत्रता संग्राम चरम सीमा पर था तब इनकी एक गुरिल्ला सेना थी, जो कि उस समय हैदराबाद के शासक निजाम के विरोध में थी, उस समय उन्होंने निजाम से युद्ध लड़ा और देश के हित में कार्य किए।

राजनीतिक करियर (P.V. Narasimha Rao Political Career) :

  • आजादी के बाद कांग्रेस पार्टी में शामिल हो गए। राजनीति में आने के बाद राव ने पहले आन्ध्र प्रदेश और फिर बाद में केंद्र सरकार में कई महत्वपूर्ण विभागों का कार्यभार संभाला।
  • आंध्र प्रदेश सरकार में 1962 – 1964 तक वे कानून एवं सूचना मंत्री, 1964 – 67 तक कानून एवं विधि मंत्री, 1967 में स्वास्थ्य एवं चिकित्सा मंत्री और 1968 – 1971 तक शिक्षा मंत्री रहे।
  • नरसिंह राव 1971 – 1973 तक आंध्र प्रदेश राज्य के मुख्यमंत्री भी रहे। 1957 – 1977 तक आंध्र प्रदेश विधान सभा और 1977 – 1984 तक लोकसभा के सदस्य रहे और दिसंबर 1984 में रामटेक सीट से आठवीं लोकसभा के लिए चुने गए।
  • 1972 में उन्होंने ग्रह, सुरक्षा और विदेशी मुद्दों पर इंदिरा गांधी और राजीव गांधी की कैबिनेट में राष्ट्रिय बहस भी की। इसके साथ-साथ यह भी कहा जाता है की 1982 में भारत के राष्ट्रपति पद के उम्मेदवार में जैल सिंह के साथ नरसिम्हा राव भी थे। 
  • राजनीति में उनके विविध अनुभव के कारण ही उन्हें केंद्र सरकार में गृह, रक्षा और विदेश मंत्रालय जैसे मंत्रालयों की जिम्मेदारी सौंपी गयी। नरसिंह राव 14 जनवरी 1980 से 18 जुलाई 1984 तक विदेश मंत्री, 19 जुलाई 1984 से 31 दिसंबर 1984 तक गृह मंत्री एवं 31 दिसंबर 1984 से 25 सितम्बर 1985 तक भारत के रक्षा मंत्री रहे। उन्होंने मानव संसाधन विकास मंत्री के रूप में भी केंद्र सरकार में कार्य किया।

प्रधानमंत्री के पद पर (P.V. Narasimha Rao as a Prime Minister) :

नरसिम्हा राव ने 1991 में राजनीति से अपने आप को अलग करने का फैसला कर लिया था। किन्तु राजीव गांधी की बम धमाकों में हत्या के कारण उन्हे काँग्रेस पार्टी को सम्हालने के लिए वापस राजनीति में आना पड़ा। 1991 में हुए लोक सभा चुनावों में भारी जीत के बाद काँग्रेस पार्टी ने नरसिम्हा राव के नेतृत्व में सरकार बनाई।

जब इन्हें प्रधानमंत्री बनाया गया तब देश की आर्थिक स्थिति बेहद ख़राब थी, इन्होने शासन संभाला विदेशी निवेश, देश में उपलब्ध घरेलु व्यापार और अन्य व्यापार पर जोर दिया। इन्होने मनमोहन सिंह जो कि अर्थशास्त्री थे उन्हें वित्तमंत्रालय का कार्यभार सौपा और कई विकासशील कार्य किए और राजकोष में हो रहे घाटो को कम किया और बेहद प्रशंसनीय निर्णय लिए। परिणाम स्वरुप देश में विदेशी निवेश की संख्या में बढोतरी हुई और इससे देश के व्यवसाय में उन्नति हुई।

इन्होने देश की सुरक्षा के लिए भी कार्य किए जैसे परमाणु सुरक्षा और मिसाइल कार्यक्रम को सक्रिय किया। नरसिम्हा जी ने प्रधानमंत्री के रूप में कई उपलब्धिया हासिल की और अपने पडोसी देशो से संबंध सुधारने के लिए पहल की और लुक ईस्ट की निति अपनाई जिससे एशियाई देश भारत के और करीब आए। 

प्रधानमंत्री के पद पर रहते हुए उन्होंने बहुत से विभागों में काम किया था। उद्योगिक क्षेत्र में लाइसेंस राज को खत्म करने में भी नरसिम्हा राव ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। उनके कार्यो को देखकर भारत में उन्हें "भारतीय अर्थव्यवस्था में सुधार का जनक" भी कहा जाता है।

भारत के इतिहास में राव का प्रधानमंत्री कार्यकाल काफी प्रभावशाली साबित हुआ था। प्रधानमंत्री बनने के बाद वे जवाहरलाल नेहरु को मिश्रित आर्थिक प्रणाली को ही भारत में चला रहे थे और उन्होंने भारतीय जनता पार्टी (BJP) को भी देश की मुख्य पार्टी बनाया क्योकि देश में आज़ादी के बाद से लगभग ज्यादातर समय कांग्रेस का ही राज था।

इसके साथ ही उन्होंने सुब्रमणियास्वामी को विरोधी दल का सदस्य मानते हुए लेबर स्टैण्डर्ड और इंटरनेशनल ट्रेड का चेयरमैन भी बनाया। इसके बाद उन्होंने विरोधी दल के नेता अटल बिहारी वाजपेयी को UN के जिनेवा में आयोजित मीटिंग में उपस्थित होने के लिए भी भेजा था।

इसके बाद उत्तर प्रदेश में जब बीजेपी के कल्याण सिंह राज्य के मुख्यमंत्री थे तब अयोध्या को बाबरी मस्जिद को गिराना भी उन्ही के कार्यकाल में हुआ था, उस समय आज़ादी के बाद यह हिन्दू-मुस्लिम के बीच हुआ सबसे बड़ा विवाद था।

21 जून, 1991 को भारत के नौवें प्रधानमंत्री के रूप में शपथ लेने वाले नरसिम्हा राव नेहरु-गांधी परिवार से बाहर के ऐसे पहले व्यक्ति थे जो लगातार पांच साल तक प्रधान मंत्री के पद पर बने रहे। उनसे पहले कोई भी गैर-काँग्रेसी प्रधानमंत्री पाच साल के पूरे कार्यकाल को पूरा नहीं कर पाया था। हालांकि नरसिम्हा राव भी काँग्रेस के ही थे। प्रधानमंत्री के रूप में 5 साल का कार्यकाल पूरा कर के 16 मई, 1996 को इस पद से विदा हुए।

भारत के ग्यारहवे राष्ट्रपति ए.पी.जे. अब्दुल कलाम ने राव का वर्णन करते हुए उन्हें बताया की वे "एक देशभक्त है जिनका ऐसा मानना है की राष्ट्र हमेशा राजनीती से बड़ा है।" राव ने 1996 में कलाम को नुक्लेअर टेस्ट करने के लिए भी तैयार किया था लेकिन उसी साल जनरल चुनाव होने की वजह से ऐसा नही हो पाया। इस टेस्ट को बाद में NDA सरकार में वाजपेयी वाली सरकार ने आयोजित किया था।

विवाद (P.V. Narasimha Rao Controversy) :

  • नरसिम्हा राव पर अपनी अल्पमत सरकार के सासदों को रिश्वत देकर बचाने का आरोप लगा और निचली अदालत ने उन्हें दोषी मानते हुए सन 2001 में तीन साल की सजा सुनाई पर हाई कोर्ट ने उन्हें बरी कर दिया। 
  • नरसिम्हा राव पर ये आरोप लगाया गया कि उन्होंने के.के. तिवारी, चंद्रास्वामी और के.एन. अग्रवाल के साथ मिलकर पूर्व प्रधानमंत्री वी.पी. सिंह के पुत्र अजय सिंह को नकली बैंक दस्तावेज के माध्यम से काले धन मामले में फंसाने की कोशिश की। बाद में न्यायालय ने उन्हें बरी कर दिया।
  • एक अनिवासी भारतीय लक्खुभाई पाठक के साथ धोखाधड़ी मामले में भी राव का नाम आया। सन 2003 में न्यायालय ने उन्हें इस मामले में भी बरी कर दिया।

मृत्यु (P.V. Narasimha Rao Death) :

2004 में दिल्ली में हार्ट अटैक आने के बाद राव की मृत्यु हो गयी थी। हैदराबाद में उनका अंतिम संस्कार किया गया था। वे एक बहुमुखी चरित्र वाले इंसान थे और बहुत से विषयो में उनकी रूचि थी जैसे की साहित्य और कंप्यूटर सॉफ्टवेयर। वे तक़रीबन 17 भाषाए बोलते थे।

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