Savitribai Phule Birth Anniversary: जानिए देश की पहली महिला शिक्षक ने कैसे रखी थी शिक्षा की नींव

Savitribai Phule Birth Anniversary: 19वीं सदी में महिलाओं के अधिकारों को लेकर लड़ाई लड़ने वालीं सावित्रीबाई फुले की आज 190वीं जंयती मनाई जा रही है। गूगल पर भी सावित्रीबाई फुले की जयंती ट्रेंड में है। महिलाओं की शिक्षा के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए उन्हें आज भी याद किया जाता है।

Update: 2021-01-03 09:04 GMT

Savitribai Phule Birth Anniversary: जानिए देश की पहली महिला शिक्षक ने कैसे रखी थी शिक्षा की नींव

Savitribai Phule Birth Anniversary: उन्नीसवीं सदी के दौर में भारतीय महिलाओं की स्थिति बड़ी ही दयनीय थीं। जहां एक ओर महिलाएं पुरुषवादी वर्चस्व की मार झेल रही थीं, तो दूसरी ओर समाज की रूढ़िवादी सोच के कारण तरह-तरह की यातनाएं व अत्याचार सहने को विवश थीं। हालात इतने बदतर थे कि घर की देहरी लांघकर महिलाओं के लिए सिर से घूंघट उठाकर बात करना भी आसान नहीं था। लंबे समय तक दोहरी मार से घायल हो चुकी महिलाओं का आत्मगौरव और स्वाभिमान पूरी तरह से ध्वस्त हो चुका था। समाज के द्वारा उनके साथ किये जा रहे गलत बर्ताव को वे अपनी किस्मत मान चुकी थीं। इन विषम हालातों में दलित महिलाएं तो अस्पृश्यता के कारण नरक का जीवन भुगत रही थीं। ऐसे विकट समय में सावित्रीबाई फुले ने समाज सुधारक बनकर महिलाओं को सामाजिक शोषण से मुक्त करने व उनके समान शिक्षा व अवसरों के लिए पुरजोर प्रयास किया। 

जानें कौन और कैसी थीं सावित्रीबाई फुले

हर साल 3 जनवरी को सावित्रीबाई फुले की जयंती मनाई जाती है। सावित्रीबाई फुले का जन्म 3 जनवरी 1831 को महाराष्ट्र के सतना जिले में हुआ था। सावित्रीबाई फुले भारत में महिलाओं की शिक्षा की बात किया करती थी। जिसके लिए वो अपने परिवार और समाज से हमेशा लड़ती रहीं। आज, देश के सभी राजनीतिक दल महिलाओं की शिक्षा के बारे में अलग-अलग दावे कर रहे हैं। लेकिन इसकी स्थापना 19वीं शताब्दी में सावित्रीबाई फुले ने की थी। सावित्रीबाई फुले एक सामाजिक कार्यकर्ता और शिक्षिका थीं। जिन्होंने भारत में लड़कियों के लिए शिक्षा के दरवाजे खोल दिए थे। जब समाज में न केवल सेक्सिज्म के कई रूप हैं, बल्कि शिक्षा प्राप्त करने और समाज में बुरी प्रवृत्तियों को हराने के लिए भी।

19वीं सदी में महिलाओं की शिक्षा की रखी नींव

कहते हैं कि सावित्री फुले ने अपने पति ज्योतिराव फुले के साथ उन्नीसवीं सदी में समाज में महिलाओं के अधिकारों, शिक्षा, अस्पृश्यता, शुद्धता, बाल विवाह, विधवा और अंधविश्वास के खिलाफ संर्घष किया था। दोनों ने 1848 में पुणे में देश का पहला आधुनिक महिला स्कूल शुरू किया। कहते हैं कि उसी दौरान फुले और उनके पति ने भी जातिवाद, छुआछूत और लिंग भेदभाव के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी।

सावित्रीबाई फुले इन प्रथाओं के खिलाफ लड़ाई लड़ी

सावित्रीबाई फुले को भारत में महिलाओं के अधिकार के लिए आंदोलन का नेतृत्व करने के लिए जाना जाता है। उन्होंने 1848 में महिलाओं के लिए पुणे से शुरुआत की थी। महिलाओं के लिए शिक्षा की लड़ाई में उनके पति ज्योतिराव फुले ने उनकी मदद की थी। उन्होंने उस समय महिलाओं की शिक्षा की वकालत करने के लिए सामाजिक बहिष्कार भी कर दिया था।

बता दें कि सावित्रीबाई ने उन सभी महिलाओं को शिक्षित करने के लिए प्रेरित किया। उसके बावजूद वह शिक्षित थीं। उन्होंने अपने समय में 17 स्कूल शुरू किए थे। उन्होंने खुद 3 स्कूलों की स्थापित की थी। जिसमें 150 लड़कियों को पढ़ाया जाता था। इसके बाद लगातार वो संघर्ष करती रहीं। ज्यादातर स्कूल केवल उच्च-जाति के छात्रों के लिए थे। सावित्रीबाई और ज्योतिराव ने निचली जाति और दलित छात्रों के लिए भी स्कूल शुरू किए।

9 साल की उम्र में हुई सावित्रीबाई फुले की शादी

सावित्रीबाई कविता की भी शौक़ीन थीं, उन्होंने कला के रूप का इस्तेमाल महिलाओं की शिक्षा और अस्पृश्यता उन्मूलन के उनके कारणों को आगे बढ़ाने के लिए किया। महिलाओं और लड़कियों के लिए प्रेरित किया। उन्होंने समाज की विधवाओं के लिए काम किया। भारत में महिलाओं और निम्न जाति समुदायों के खिलाफ सामाजिक बुराइयों में गहरा असर पड़ा था। सावित्रीबाई ने उन सभी के खिलाफ लड़ाई लड़ी। उन्होंने सती प्रथा का विरोध किया और जाति आधारित भेदभाव के खिलाफ हल्ला बोला था। उन्होंने बाल विवाह के खिलाफ काम किया और सावित्रीबाई खुद बाल विवाह का शिकार थीं,।उनकी शादी 9 साल की उम्र में ज्योतिराव से हुई थी। उस समय ज्योतिराव 13 साल के थे। ज्योतिराव शिक्षित थे और उन्होंने पत्नी को साथ दिया। उन्होंने सावित्रीबाई को प्रशिक्षित किया, जब उन्होंने कहा कि वह एक शिक्षक बनना चाहती थीं।

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