Farmers Protest: कृषि कानून के खिलाफ खड़ा हुआ RSS का ये संगठन, कह दी ये बड़ी बात

कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों का जोरदार प्रदर्शन जारी है। इस दौरान किसानों को विभिन्न संगंठनों और इकाइयों से समर्थन भी मिल रहा है। इसी कड़ी में बीजेपी (BJP) की सहयोगी और आरएसएस (RSS) से संबंधित स्वदेशी जागरण मंच (SJM) ने कृषि कानूनों (Agri Laws) के खिलाफ बयान देकर बवाल मचा दिया है।

Update: 2020-12-03 07:40 GMT

RSS organization has also raised questions on Farm laws

नई दिल्ली: कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों का जोरदार प्रदर्शन जारी है। इस दौरान किसानों को विभिन्न संगंठनों और इकाइयों से समर्थन भी मिल रहा है। इसी कड़ी में बीजेपी (BJP) की सहयोगी और आरएसएस (RSS) से संबंधित स्वदेशी जागरण मंच (SJM) ने कृषि कानूनों (Agri Laws) के खिलाफ बयान देकर बवाल मचा दिया है। बीजेपी बार बार कहती आ रही है कि किसानों को बरगलाया जा रहा है। अब जबकि बीजेपी के सहयोगी संगठन ही नए प्रस्तावित कानूनों पर सवाल उठा रहे हैं तो बीजेपी के बड़े नेताओं को बोलते नहीं बन रहा है।

स्वदेशी जागरण मंच के राष्ट्रीय सह संयोजक अश्विनी महाजन ने किसानों के आंदोलन पर प्रतिक्रिया दी है। महाजन ने किसानों के व्यापक आंदोलन को देखते हुए नए कानूनों में कुछ बदलाव की सिफारिश की है। जिसका सीधा मतलब है कि सरकार किसानों के लिए जो कानून लाना चाहती है उसका सहयोगी संगठन भी समर्थन नहीं कर रहे हैं। हालांकि महाजन ने खुलकर बोलने से बचते हुए कहा कि उनका संगठन नए कृषि कानूनों का समर्थन करता है।

स्वदेशी जागरण मंच के अश्विनी महाजन के मुताबिक किसानों को MSP पर भरोसा दिलाया जाना जरूरी है। केंद्र के कानून को महाजन ने अच्छा बताते हुए उसमें सुधार की गुंजाइश की बात कही। खासकर न्यूनतम समर्थन मूल्य को लेकर किसान जिस तरह से आशंकाओं से घिरे हैं, उसको लेकर सरकार की जिम्मेदारी बताई जा रही है कि किसानों को आश्वस्त किया जाय।

महाजन ने नए कानूनों के हिसाब से मंडी के बाहर बिक्री की व्यवस्था को सही करार देते हुए आशंका भी जाहिर की। महाजन के मुताबिक वक्त बीतने के साथ प्राइवेट सेक्टर की बड़ी कंपनियां किसानों को मुश्किल में डाल सकती है। स्वदेशी जागरण मंच की तरफ से जो आशंकाएं जाहिर की जा रही है, कुछ उसी तरह का डर किसान भी जता रहे हैं। केंद्र सरकार द्वारा लाए गए तीन कृषि कानूनों के खिलाफ सड़कों पर उतरे किसानों ने MSP को कानून का हिस्सा बनाने की मांग की है। साथ ही अगर प्राइवेट पार्टी MSP से कम कीमत पर खरीद करती है तो सजा का प्रावधान भी तय करने की बात कही है।


किसानों का जोर इस बात को लेकर है कि मंडी के बाहर अगर फसल बेची जाती है तो उस पर सरकार का पूरा नियंत्रण होना चाहिए। किसानों को दिये जाने वाले दाम को तय करने में उनके हितों का ध्यान रखना जरूरी है। अगर व्यवस्था में सरकार की दखलअंदाजी नहीं होगी तो बड़ी कंपनियां शुरुआत में तो किसानों को फायदा दिलाएगी। वहीं धीरे धीरे किसानों के साथ गुलामों जैसा बर्ताव भी शुरू हो सकता है।

सरकारी भरोसे पर क्या है किसानों का रुख

किसानों के प्रतिनिधिमंडल और केंद्रीय कृषि मंत्री के बीच मंगलवार को हुई वार्ता पूरी तरह विफल हो गई। किसान जोर देते रहे कि कानूनों में तत्काल बदलाव किया जाय तभी धरना प्रदर्शन खत्म किया जाएगा। जबकि सरकार का एक्सपर्ट कमिटी बनाने का सुझाव किसानों ने नहीं स्वीकारा। केंद्र सरकार बार बार कह रही है कि MSP और मंडी सिस्टम को खत्म नहीं किया जाएगा। जबकि किसानों का कहना है कि अगर कॉरपोरेट घरानों की दखलअंदाजी हुई तो मौजूदा व्यवस्था अपने आप कमजोर होगी। लिहाजा सरकार को चाहिए कि निजी कंपनियों पर नकेल कसने के लिए कानून में उचित प्रवाधान शामिल करे।

एक बार फिर गुरुवार को किसानों और सरकार के बीच बातचीत होगी। किसान अबकी बार बहस के लिए पूरी तैयारी के साथ जा रहे हैं। जिस तरह का माहौल और किसानों को समर्थन मिल रहा है उससे साफ जाहिर है कि किसान किसी भी सूरत में झुकने के लिए तैयार नहीं हैं। सत्ताधारी बीजेपी का ये शगूफा कि विरोधी दल किसानों को भड़का रहे हैं, काम नहीं आ रहा है। किसान गोलबंद हो रहे हैं और एक के बाद एक विभिन्न संगठन उनके समर्थन में सामने आ रही है। अब सरकार के पास किसानों की बात मानने के सिवा कोई चारा नहीं बचता। देखना होगी कि कल की बातचीत में गतिरोध दूर हो पाता है या नहीं?

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