अफवाह से दंगे भड़कते हैं, फेक न्यूज़ से अब युद्ध हुआ करेंगे?

मीडिया के लिए आधिकारिक चुप्पी और राजनीतिक बयानबाजी ही 'ख़बर की सच्चाई' का आधार हो गयी। मीडिया ने ख़बर के सत्यापन की बुनियादी आवश्यकता तक को भुला दिया।

Update: 2020-11-20 16:10 GMT

सांड के कारण भगदड़ और फिर पैदा हुए अफवाहों से सांप्रदायिक दंगा होते तो सुना गया था। मगर, अब तो पीटीआई (प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया) के नाम से सूत्रों को जोड़कर किसी विजुअल को दिखाते हुए विश्वास दिलाकर 'अफवाह' फैलायी जा रही है। इसे फेक न्यूज़ कहना भी पूरे प्रपंच का महिमामंडन होगा। 'अफवाहों' के माध्यम का प्रमोशन 'सांड से सूत्र' तक हो चुका है। सांप्रदायिक दंगों की जगह अब युद्ध के नज़ारे दिखने लगे तो आश्चर्य नहीं होगा। और हां, ऐसे युद्ध की वजह होगी- पीटीआई व सूत्र के हवाले से 'फेक न्यूज़'।

19 नवंबर को जब समूचा देश रानी लक्ष्मी बाई और इंदिरा गांधी की जयंती पर वीरांगनाओं को स्मरण कर रहा था तो शाम होते-होते पीटीआई और सूत्रों के हवाले से आती ख़बरों ने हर किसी को चौंका दिया। ख़बर थी कि भारत ने पाक अधिकृत कश्मीर में पिन प्वाइंट स्ट्राइक की है। घुसपैठ की कोशिश कर रहे 300 आतंकियों के ठिकानों पर हमला बोला है।


चंद हेडलाइन्स का जिक्र कर लेते हैं घटना जीवंत हो जाएगी :

सीजफायर उल्लंघन पाक को पड़ा बहुत भारी, जवाबी ऐक्शन में POK में कई आतंकी अड्डे तबाह : नवभारत टाइम्स

पीओके में सेना की एक और बड़ी स्ट्राइक, कई आतंकी कैंप को टारगेट कर ध्वस्त किया : एबीपी न्यूज़

India carrying out ''pinpoint strikes'' on terror launchpads inside PoK: Govt sources : आऊटलुक

Indian Army carrying out 'pinpoint strikes' on terror launchpads in PoK: Report : इंडिया टुडे

भारत की PoK में पिनप्वॉइंट स्ट्राइक, आतंकी ठिकानों को बनाया निशाना : फाइनान्शियल एक्सप्रेस

पाकिस्तान पर भारत की एक और स्ट्राइक, पाक अधिकृत कश्मीर में ध्वस्त किए आतंकी ठिकाने : अमर उजाला

ये हेडलाइन्स वेबसाइट से उठाए गये हैं हू-ब-हू। ऐसे असंख्य हेडलाइन आपको मिल जाएंगे। न्यूज़ चैनलों में इस घटना को ब्रेकिंग बताते हुए क्या कुछ परोसा गया, उसकी तो कल्पना ही की जा सकती है। डिबेट सज गये। वर्दीधारी पूर्व सैन्य अधिकारी जिनके चेहरे जाने-पहचाने हैं, न्यूज़ चैनलों पर जम गये। सत्ताधारी दल के नेता, पाकिस्तानी पत्रकार और इक्के-दुक्के 'सवाल उठाने वाले विपक्ष' के प्रतिनिधि भी आ धमके। सेना की दिवाली, अब पीओके लेकर रहेंगे, एक और सर्जिकल स्ट्राइक, 56 ईंच का सीना, पहले वाला भारत नहीं रहा, घर में घुसकर बदला लेंगे, दुबक गया इमरान, होश में आओ पाकिस्तान...जैसे जुमले एक-दूसरे से स्पर्धा कर रहे थे। जो जितना जोर से कह रहा था वह उतना बड़ा देशभक्त था।


ट्विटर की बात भी कर लें। #airstrike, #IndiaStrikesPak, #AbkiBaarPokPaar, #surgicalStrike, #भारतीय सेना, #BIG BREAING जैसे हैशटैग चलने लगे। कहने की जरूरत नहीं कि यहां सीमा तोड़कर अभिव्यक्ति की छूट रहती है। सो, बहादुरी के किस्से भी सरहद पार बम बरसा रहे थे।


ताज्जुब की बात यह है कि सेना की ओर से कोई आधिकारिक बयान सामने नहीं आया और केंद्र के मंत्रियों में से किसी ने कुछ नहीं कहा। मगर, बीजेपी के नेता और बीजेपी की मीडिया सेल अपनी प्रतिक्रियाओं से पीओके में भारत के पिन प्वाइंट स्ट्राइक की पुष्टि लगातार करते रहे। कांग्रेस समेत विपक्ष के कई नेताओं ने राजनीतिक रूप से खुद को 'सुरक्षित' करते हुए इस स्ट्राइक का समर्थन भी कर डाला।

मीडिया के लिए आधिकारिक चुप्पी और राजनीतिक बयानबाजी ही 'ख़बर की सच्चाई' का आधार हो गयी। मीडिया ने ख़बर के सत्यापन की बुनियादी आवश्यकता तक को भुला दिया। इस बीच कई पत्रकारों ने अपने स्तर पर सेना के उच्च पदस्थ सूत्रों के मुताबिक पीओके में भारत की ओर से आज यानी गुरुवार को किसी भी कार्रवाई के होने का खंडन सामने रखा। इस पर सवाल उठाने वाले ही भारी पड़े। मीडिया घरानों में कोई भी इस खबर से पीछे हटकर 'टीआरपी' गंवाना नहीं चाहता था। वे डटे रहे। 'न्यूज़' और 'फेक न्यूज़' के बीच की लड़ाई में वे 'तटस्थ' हो गये।

इंदिरा गांधी के प्रधानमंत्री रहते 1971 में जब पाकिस्तान की सेना ने समर्पण किया था तब समूचे देश ने जो आनन्द और गर्व का अनुभव रेडियो सुनकर और अखबार पढ़कर किया था, उससे कहीं ज्यादा आनंद और गर्व का अनुभव लाइव ख़बर देखते-सुनते लोग कर रहे थे। मगर, न्यूज़ सुनकर उछलता हुआ दिल बैठ जाए तो दिल पर क्या गुजरती है यह उन लोगों से पूछिए जिनके दिलों पर 'फेकन्यूज़' ने आरी चला दी। एएनआई ने रात 7 बजकर 51 मिनट पर भारतीय सेना के डीजी मिलिट्री ऑपरेशन्स लेफ्टिनेंट परमजीत सिंह के हवाले से पीओके में भारतीय सेना की कार्रवाई को 'फेक' करार दिया।



एक बार फिर सांप्रदायिक दंगे और युद्ध उन्माद की तुलना पर लौटते हैं। दोनों ही स्थितियों में एक पक्ष खुद को सही और दूसरे को गुनहगार ठहराता है। दोनों पक्ष खुद को श्रेष्ठ, अभिमानी और सही बताते हैं। दोनों ही पक्ष सांप्रदायिक दंगे और युद्ध को गलत मानते हुए भी कहते हैं कि सबक सिखाने के लिए उनकी ओर से की गयी कार्रवाई सही थी। हर स्थिति में भुगतते निर्दोष लोग हैं।

चाहे सांप्रदायिक दंगा हो या फिर युद्ध की स्थिति- यह माहौल ही होता है जो जान लेने को धर्म बना देता है और खून की प्यास को जरूरत बता देता है। 'हमने नहीं मारा तो वो मार देंगे' वाला माहौल बन जाता है। फिर भी अनुभवों ने हमें सांप्रदायिक दंगों से निबटना सिखाया है। अफवाहों को रोकने के तरीके हमने निकाले हैं। हालांकि तकनीकी विकास के साथ-साथ अफवाहों से लड़ने का संघर्ष जारी है। मगर, इस युद्धोन्माद से कैसे निबटा जाए जहां अफवाह का नाम 'फेक न्यूज़' है। अफवाह फैलाने वाले लोग जिम्मेदार पत्रकार हैं, नेता हैं, राजनीतिक दल हैं! अफवाहों के कारण दंगों को रोकना तो हमने सीखा है, सवाल यह है कि क्या आने वाले समय में 'फेक न्यूज़' के कारण युद्ध हुआ करेंगे? हम इसे रोक पाना कैसे सुनिश्चित करें?

(संपादकीय टिप्पणी : यह आलेख द क्विंट में प्रकाशित हो चुका है- प्रेम कुमार)

Tags:    

Similar News