M S Swaminathan Biography in Hindi | एम एस स्वामीनाथन का जीवन परिचय

M S Swaminathan Biography in Hindi | मनकोम्बू सम्बमिनाथन स्वामीनाथन एक भारतीय जेनेटिक वैज्ञानिक और भारत में हरित क्रांति में मुख्य भूमिका अदा करने वाले व्यक्ति हैं। विज्ञान और अभियांत्रिकी के क्षेत्र में स्वामीनाथन ने अपना अतुलनीय योगदान दिया है।

Update: 2020-11-28 05:09 GMT

M S Swaminathan Biography in Hindi | एम एस स्वामीनाथन का जीवन परिचय

M S Swaminathan Biography in Hindi | एम एस स्वामीनाथन का जीवन परिचय

  • नाम मनकोम्बु साम्बशिवन स्वामीनाथन
  • जन्म 7 अगस्त 1925
  • जन्मस्थान कुम्भकोणम, तमिलनाडु
  • पिता एम.के. सांबशिवन
  • माता पार्वती थंगम्मल सांबशिवन
  • पुत्री सौम्या स्वामीनाथन
  • व्यवसाय भारतीय जेनेटिकिस्ट
  • पुरस्कार रेमन मैग्सेसे अवार्ड फॉर कम्युनिटी लीडरशिप
  • नागरिकता भारतीय,ब्रिटिश राज

जेनेटिक वैज्ञानिक एम एस स्वामीनाथन (M S Swaminathan Biography in Hindi)

M S Swaminathan Biography in Hindi | मनकोम्बू सम्बमिनाथन स्वामीनाथन एक भारतीय जेनेटिक वैज्ञानिक और भारत में हरित क्रांति में मुख्य भूमिका अदा करने वाले व्यक्ति हैं। विज्ञान और अभियांत्रिकी के क्षेत्र में स्वामीनाथन ने अपना अतुलनीय योगदान दिया है। स्वामीनाथन को "भारतीय हरित क्रांति का जनक" (Father of Indian Green Revolution) भी कहा जाता है। डॉ.स्वामीनाथम भारतीय कृषि अनुसन्धान संस्थान में विज्ञानिक पद पर कार्य कर रहे थे। इन्ही दिनों नोबल पुरूस्कार विजेता बोरलोग ने मैक्सिकन ड्वार्फ किस्म के गेंहू के बीज का आविष्कार किया। 

प्रारंभिक जीवन (M S Swaminathan Early Life)

स्वामीनाथन का जन्म 7 अगस्त 1925 को कुम्बकोनम में हुआ था। वे डॉ. एम. के. सम्बसिवन और पार्वती ठंगम्मल सम्बसिवन के दुसरे बेटे थे। एम.के. सम्बसिवन महात्मा गांधी के अनुयायी है उन्होंने "विदेशी कपडे जलाओ" अभियान में भी महात्मा गांधी का साथ दिया था।

जिसका मुख्य उदेश्य देश से विदेशी वस्तुओ को हटाकर स्वदेशी वस्तुओ को अपनाना था। उस समय अधिकतर लोगो ने विदेशी कपड़ो का विरोध किया था और भारतीय खादी के कपड़ों को प्राधान्य दिया था। इस अभियान का राजनैतिक उद्देश्य भारत को अंग्रेजो पर निर्भर रहने से बचाना था और भारतीय ग्रामीण उद्योग को बढ़ावा देना था।

शिक्षा (Education) :

स्वामीनाथन के पिता की मृत्यु के समय उनकी आयु केवल 11 साल की ही थी और उनके अंकल एम.के. नारायणस्वामी अब उनके देखभाल करते थे। वही उन्होंने स्थानिक स्कूल से शिक्षा प्राप्त की और बाद में कुम्बकोनम के कैथोलिक लिटिल फ्लावर हाई स्कूल से माध्यमिक शिक्षा प्राप्त की और 15 साल की आयु में स्वामीनाथन ने मेट्रिक की परीक्षा भी पास कर ली थी।

बाद में ग्रेजुएट की पढाई पूरी करने के लिये वे केरला के महाराजा कॉलेज में गये। वहा उन्होंने 1940 से 1944 तक पढाई की और जूलॉजी में बैचलर ऑफ़ साइंस की डिग्री हासिल की। डिग्री हासिल करने के बाद स्वामीनाथन ने एग्रीकल्चर में करियर बनाने का निर्णय लिया। इसके लिये मद्रास के एग्रीकल्चर कॉलेज में भी वे दाखिल हुए वहा वेलिडिक्टोरीयन में अपना ग्रेजुएशन पूरा किया और बैचलर ऑफ़ साइंस की उपाधि हासिल की, लेकिन इस समय उन्होंने डिग्री एग्रीकल्चर के क्षेत्र में हासिल की थी।

1947 में भारत की आज़ादी के साल ही वे इंडियन एग्रीकल्चर रिसर्च इंस्टिट्यूट, नयी दिल्ली गये जहा वे उस समय जेनेटिक के पोस्ट ग्रेजुएट विद्यार्थी थे। 1949 में उन्होंने ऊँचे पद पर रहते हुए साइटोजेनेटिक्स में पोस्ट ग्रेजुएट की डिग्री प्राप्त की। बाद में उन्होंने यूनियन पब्लिक सर्विस कमीशन की परीक्षा दी और इंडियन पुलिस सर्विस में लग गये।

स्वामीनाथन का करियर (M S Swaminathan Career)

बाद में उन्होंने वगेनिंगें एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी, इंस्टिट्यूट ऑफ़ जेनेटिक इन नीदरलैंड में IARI में आलू के जेनेटिक पर रिसर्च करने के लिये यूनेस्को (UNESCO) के सहचर्य को स्वीकार कर लिया। और भारत में वे पौधों की पैदावार को बढ़ाने के लिये सतत रिसर्च कर ही रहे थे। स्वामीनाथन ने अंर्तराष्ट्रीय संस्थान में जापानी और भारतीय किस्मों पर शोध किया।

1954 से 1972 तक डॉ स्वामीनाथन ने कटक तथा पूसा स्थित प्रतिष्ठित कृषी संस्थानो में अद्वितिय काम किया। इस दौरान उन्होने शोध कार्य तथा शिक्षण भी किया। साथ ही साथ प्रशासनिक दायित्व को भी बखूबी निभाया। 1963 में हेग में हुई अंर्तराष्ट्रीय कॉनफ्रेंस के उपाध्यक्ष भी बनाये गये।

भारत के कृषि प्रधान देश है लेकिन 1964 की अवधि में हमारे खेतो से अनाज की उत्पत्ति कम हो चली थी। विशाल जनसंख्या वाले देश में खाध्य पदार्थो की कम उत्पत्ति के कारण लोगो को बैचैनी बढ़ चली थी। भारत के सम्बंध में यह भावना बन चुकी थी कि कृषि से जुड़े होने के बावजूद भारत के लिए भुखमरी से निजात पाना कठिन है।

1965 में स्वामीनाथन को कोशा स्थित संस्थान में नौकरी मिल गई। वहा उन्हे गेहुँ पर शोध कार्य का दायित्व सौंपा गया। साथ ही साथ चावल पर भी उनका शोध चलता रहा। वहा के वनस्पति विभाग में किरणों के विकिरण की सहायता से परिक्षण प्रारंभ किया और उन्होने गेहूं की अनेक किस्में विकसित की।

1966 में जेनेटिक्स वैज्ञानिक स्वामीनाथन ने मैक्सिको के बीजों को पंजाब की घरेलू किस्मों के साथ मिश्रित करके उच्च उत्पादकता वाले गेहूं के संकर बीज विकसित किया। स्वामीनाथन का यह प्रयास सफल रहा। देश में पहली बार गेहूं की बंपर पैदावार हुई।

1969 में डॉ. स्वामीनाथन इंडियन नेशनल साइंस एकेडमी के सचीव बनाये गये। वे इसके फैलो मेंम्बर भी बने। 1970 में सरदार पटेल विश्वविद्यालय ने उन्हे डी.एस.सी. की उपाधी प्रदान की। 

1972 में भारत सरकार ने भारतीय कृषी अनुसंधान परिषद का महानिदेशक नियुक्त किया। साथ में उन्हे भारत सरकार में सचिव भी नियुक्त किया गया।

1979 से 1980 तक वे मिनिस्ट्री ऑफ़ एग्रीकल्चर फ्रॉम के प्रिंसिपल सेक्रेटरी भी रहे। 1982 से 1988 तक उन्होंने जनरल डायरेक्टर के पद पर रहते हुए इंटरनेशनल राइस रिसर्च इंस्टिट्यूट की सेवा भी की।

ऐसे टेढ़े समय में डा.स्वामीनाथन ने फसलों की उन्नति के लिए बीजों में सुधार की। देश में हरित क्रांति लेकर आये जिससे अनाज की उत्पति कई गुना हो गयी और देशवासियों की भोजन की समस्या हल हो गयी |

1988 में इंटरनेशनल यूनियन फॉर कान्सर्वेशन ऑफ़ नेचर एंड नेचुरल रिसोर्सेज के प्रेसिडेंट भी बने। 1999 में टाइम पत्रिका ने उन्हें 20 वी सदी के सबसे प्रभावशाली लोगो की सूचि में भी शामिल किया।

स्वामीनाथन के इन अथक प्रयासों की वजह से ही उन्हें देश में हरित क्रांति का अगुआ माना जाता है। हरित क्रांति के बाद ही भारत अनाज के मामले में आत्मनिर्भर हो गया।

पुरस्कार और सम्मान (M S Swaminathan The Honors)

  • 1967 में विज्ञान के क्षेत्र में भारत सरकार द्वारा "पद्म श्री" से सम्मानित किया गया।
  • 1972 में "पद्म भूषण" से सम्मानित किया गया।
  • 1989 में "पद्म विभूषण" से सम्मानित किया गया।
  • 1971 में इन्हें "रेमन मैगसेसे पुरस्कार" से भी सम्मानित किया गया।
  • इसके अलावा उन्हें अनेक विश्वविद्यालयों ने डॉक्टरेट की उपाधियों से भी सम्मानित किया।
  • 2003 में बायोस्पेक्ट्रम ने उन्हें "लाइफ टाइम अचीवमेंट अवार्ड" से सम्मानित किया।
  • शांति के लिये इंदिरा गांधी पुरस्कार दिया गया।
  • 2007 की NGO कॉन्फ्रेंस में iCONGO द्वारा कर्मवीर पुरस्कार द्वारा सम्मानित किया गया।
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