मोतीलाल नेहरू जीवन परिचय | Motilal Nehru Biography in Hindi

मोतीलाल नेहरु एक भारतीय वकील, भारतीय राष्ट्रिय अभियान के कार्यकर्ता और भारतीय राष्ट्रिय कांग्रेस के सक्रीय नेता थे, जिन्होंने 1919-1920 और 1928-1929 तक कांग्रेस का अध्यक्ष बने रहते हुए सेवा की। नेहरु-गाँधी परिवार के वे संस्थापक कुलपति थे।

Update: 2020-10-23 19:08 GMT

मोतीलाल नेहरु एक भारतीय वकील, भारतीय राष्ट्रिय अभियान के कार्यकर्ता और भारतीय राष्ट्रिय कांग्रेस के सक्रीय नेता थे, जिन्होंने 1919-1920 और 1928-1929 तक कांग्रेस का अध्यक्ष बने रहते हुए सेवा की। नेहरु-गाँधी परिवार के वे संस्थापक कुलपति थे।

मोतीलाल नेहरू का जन्म आगरा में हुआ था। उनके पिता का नाम गंगाधर था। वह पश्चिमी ढँग की शिक्षा पाने वाले प्रथम पीढ़ी के गिने-चुने भारतीयों में से थे। वह इलाहाबाद के म्योर सेण्ट्रल कॉलेज में शिक्षित हुए किन्तु बी०ए० की अन्तिम परीक्षा नहीं दे पाये। बाद में उन्होंने कैम्ब्रिज से "बार ऐट लॉ" की उपाधि ली और अंग्रेजी न्यायालयों में वकील के रूप में कार्य प्रारम्भ किया।

मोतीलाल नेहरू की पत्नी का नाम स्वरूप रानी था। जवाहरलाल नेहरू उनके एकमात्र पुत्र थे। उनके दो कन्याएँ भी थीं। उनकी बडी बेटी का नाम विजयलक्ष्मी था, जो आगे चलकर विजयलक्ष्मी पण्डित के नाम से मशहूर हुई। उनकी छोटी बेटी का नाम कृष्णा था। जो बाद में कृष्णा हठीसिंह कहलायीं।

लेकिन आगे चलकर उन्होंने अपनी वकालत छोडकर भारत के स्वतन्त्रता संग्राम में कार्य किया था। 1923 में उन्होने देशबंधु चित्तरंजन दास के साथ काँग्रेस पार्टी से अलग होकर अपनी स्वराज पार्टी की स्थापना की। 1928 में कोलकाता में हुए काँग्रेस अधिवेशन के वे अध्यक्ष चुने गये। 1928 में काँग्रेस द्वारा स्थापित भारतीय संविधान आयोग के भी वे अध्यक्ष बने। इसी आयोग ने नेहरू रिपोर्ट पेश की थी। मोतीलाल नेहरू ने इलाहाबाद में एक अलीशान मकान बनबाया और उसका नाम आनन्द भवन रखा। इसके बाद उन्होंने अपना पुराना वाला घर स्वराज भवन काँग्रेस पार्टी को दे दिया।

कैरियर

बाद में मोतीलाल नेहरू इलाहाबाद में बस गए और देश के सर्वश्रेष्ठ वकीलों के रूप में अपनी पहचान बनाई। वह हर महीने लाखों कमाते थेऔर बड़े ठाट-बाट से रहते थे। उन्होंने इलाहाबाद की सिविल लाइंस में एक बड़ा घर ख़रीदा। उन्होंने कई बार यूरोप का दौरा किया और पश्चिमी जीवन शैली को अपनाया। 1909 में ग्रेट ब्रिटेन के प्रिवी काउंसिल में वकील बनने का अनुमोदन प्राप्त कर वह अपने कानूनी पेशे के शिखर पर पहुँच गए। 1910 में मोतीलाल ने संयुक्त प्रान्त की विधान सभा का चुनाव लड़ा और जीत हांसिल की।

महात्मा गांधी के भारतीय राजनीति के परिदृश्य में आगमन ने मोतीलाल नेहरू को पूरी तरहं बदल दिया। 1919 में हुए जलियांवाला बाग़ नरसंहार ने ब्रिटिश शासन के प्रति उनके विश्वास को तोड़ दिया और उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में प्रवेश करने का फैसला किया। ब्रिटिश सरकार ने जलियाँवाला बाग की घटना की जांच के लिए एक आयोग की नियुक्ति की। कांग्रेस ने इसका विरोध किया और अपनी खुद की जाँच समिति नियुक्त की। महात्मा गांधी, मोतीलाल नेहरू, चित्तरंजन दास इस समिति के सदस्य थे। असहयोग आंदोलन में गांधीजी का अनुसरण करने के लिए उन्होंने अपनी वकालत छोड़ दी। उन्होंने विलासितापूर्ण अपनी जीवन शैली, वेस्टर्न कपडे और दूसरी वस्तुओं का त्याग कर दिया और खादी पहनना शुरू कर दिया।

मोतीलाल नेहरू 1919 और 1929 में कांग्रेस अध्यक्ष चुने गए। उन्होंने देशबन्धु चित्तरंजन दास के साथ मिलकर स्वराज पार्टी की स्थापना की। मोतीलाल नेहरू स्वराज पार्टी के पहले सचिव और बाद में अध्यक्ष बने। वह केंद्रीय विधान सभा में विपक्ष के नेता बने और सरकार के निर्णयों की पोल खोलते हुए जोर शोर से इसका विरोध किया। 1927 में जब साइमन कमीशन की नियुक्ति हुई तब मोतीलाल नेहरू को स्वतन्त्र भारत के संविधान का प्रारूप तैयार करने के लिया कहा गया।

पारिवारिक पृष्ठभूमि

पं. मोतीलाल नेहरू के पिता पंडित गंगाधर नेहरू, जब दिल्ली में लूटपाट और कत्ले आम मचा था, अपना सब कुछ छोड़कर अपने परिवार को लेकर किसी तरह सुरक्षित रूप से आगरा पहुंच गए थे। लेकिन वह आगरा में अपने परिवार को स्थायी रूप से जमा नहीं पाए थे कि सन् 1861 में केवल चौंतीस वर्ष की छोटी-सी आयु में ही वह अपने परिवार को लगभग निराश्रित छोड़कर इस संसार से कूच कर गए। पंडित गंगाधर नेहरू की मृत्यु के तीन महीने बाद 6 मई 1861 को पंडित मोतीलाल नेहरू का जन्म हुआ था। पंडित गंगाधर नेहरू के तीन पुत्र थे। सबसे बड़े पंडित बंसीधर नेहरू थे, जो भारत में विक्टोरिया का शासन स्थापित हो जाने के बाद तत्कालीन न्याय विभाग में नौकर हो गए। उनसे छोटे पंडित नंदलाल नेहरू थे जो लगभग दस वर्ष तक राजस्थान की एक छोटी-सी रियासत 'खेतड़ी' के दीवान रहे। बाद में वह आगरा लौट आए। उन्होंने आगरा में रहकर क़ानून की शिक्षा प्राप्त की और फिर वहीं वकालत करने लगे। इन दो पुत्रों के अतिरिक्त तीसरे पुत्र पंडित मोतीलाल नेहरू थे। पंडित नन्दलाल नेहरू ने ही अपने छोटे भाई मोतीलाल का पालन-पोषण किया और पढ़ाया-लिखाया।पंडित नन्दलाल नेहरू की गणना आगरा के सफल वकीलों में की जाती थी। उन्हें मुक़दमों के सिलसिले में अपना अधिकांश समय इलाहाबाद में हाईकोर्ट बन जाने के कारण वहीं बिताना पड़ता था। इसलिए उन्होंने इलाहाबाद में ही एक मकान बनवा लिया और अपने परिवार को लेकर स्थायी रूप से इलाहाबाद आ गए और वहीं रहने लगे। जब मोतीलाल नेहरू 25 वर्ष के थे तो उनके बड़े भाई का निधन हो गया।

नेहरु रिपोर्ट 1928 –

नेहरु की अध्यक्षता में ही 1928 में नेहरु कमीशन पारित किया गया, जो सभी ब्रिटिश साइमन कमीशन के लिए किसी काउंटर से कम नही था। नेहरु रिपोर्ट के अनुसार भारत का कानून किसी भारतीय द्वारा ही लिखा जाना चाहिए और साथ ही उन्होंने इस रिपोर्ट में ऑस्ट्रेलिया, न्यू ज़ीलैण्ड और कैनाड में भी भारत के प्रभुत्व की कल्पना की थी। कांग्रेस पार्टी ने तो उनकी इस रिपोर्ट का समर्थन किया लेकिन दुसरे राष्ट्रवादी भारतीयों ने इसका विरोध किया, जो पूरी आज़ादी चाहते थे।

मोतीलाल नेहरु की मृत्यु

मोतीलाल नेहरु की उम्र और घटते हुए स्वास्थ ने उन्हें 1929 से 1931 के बीच होने वाली एतिहासिक घटनाओ से दूर रखा। उस समय कांग्रेस ने भी पूरी आज़ादी को अपने लक्ष्य के रूप में अपना लिया था और गांधीजी ने भी नमक सत्याग्रह की घोषणा कर दी थी।

उन्हें उनके बेटे जवाहरलाल नेहरु के साथ जेल में डाला गया लेकिन ख़राब स्वास्थ के चलते उन्हें रिहा कर दिया गया। जनवरी 1931 के अंतिम सप्ताह में गांधीजी और कांग्रेस की कार्यकर्ता समिति को सर्कार ने रिलीज़ कर दिया था। अंतिम दिनों में गांधीजी और अपने पुत्र को अपने पीछे देख मोतीलाल नेहरु काफी खुश थे। 6 फरवरी 1931 को उनकी मृत्यु हो गयी।

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