Exclusive:बिहार की सियासत के "नगरवधु" नाच का नंगा सच!

Update: 2017-07-29 06:00 GMT

आज डंके की चोट पर कहा जा सकता है की नरेंद्र मोदी ने सही कहा था कि नीतीश कुमार के डीएनए में खोट है। मेरे मार्ग दर्शक भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के राष्ट्रिय सचिव अतुल कुमार अनजान जी ने कभी मुझ से कहा था की "नितीश जी राजनीती के वह 'काघ' (कौआ) हैं जो किसी भी मुंडेर पर बैठ सकते हैं" उन्हों ने यह भी कहा था की "नगरवधु" (वेश्या) का भी एक चरित्र होता था, वह अपने ग्राहक के साथ उस वक़्त तक प्रतबद्धता दिखाती थी जब तक के उसका ग्राहक कंगाल न हो जाये, लेकिन वर्तमान समय की राजनीती उस से कही ज़यादा "नाबदान" (गटर/नाली) में गिरी पड़ी है। अभी 20 महीने ही गुज़रे हैं जब "सुसाशन बाबू" धर्मनिरपेक्षता के पुरोधा बन कर देश को "चड्डी" मुक्त बना ने का बिगुल फूंक दिया था, लेकिन बिहार के पिछले दो दिनों के घटनाक्रम यह बता रहे हैं की "सुसाशन बाबू" तो जन्मजात चड्ढीधारी हैं। छोड़िये राजनीती कोई बात नहीं अतीत वो कूड़ेदान है जो सबका मूल्यांकन करता है, एक दिन नीतीश कुमार का भी करेगा। बिहार में बिहारी जनमानस ने जो वोट दिया था वो सांम्प्रदायिक शक्तिओं के खिलाफ था, उसने बीजेपी को हराने के लिए महागठबंधन को चुना था, यही नीतीश कुमार उस दौर में कसमें खाया करते थे कि "मिट्टी में मिल जाएंगे पर बीजेपी से कभी हाथ नही मिलाएंगे", पर ऐसा क्या हुआ कि आज उसी राजनीतिक दुश्मन को गले लगाकर सियासत के सुहागरात की सेज सजाई गई है।


बिहार की बुद्धिमान संघर्षशील जनता आज खुद को ठगा महसूस कर रही होगी, वो एक एक व्यक्ति ठगा महसूस कर रहा होगा जिसने बीजेपी के खिलाफ लालू यादव और नीतीश कुमार के गठबंधन को वोट दिया होगा। खैर ये सियासत की वो वह चकला है जहां पर कभी भी किसी की एंट्री , वही हुआ भी है। पर एक बात जो समझने वाली है कि आखिर ऐसा हुआ क्या कि ये सब हो गया, ऐसा कैसे हो गया कि लड़की के पीछे पड़े मवाली गुंडे से लड़की को मोहब्बत हो गई, आइये इसकी वजह जानते है. लालू यादव के विरोध के धरातल पर खड़े होकर नीतीश कुमार ने सियासत में जो स्वच्छ छवि गढ़ने की कोशिश की थी, उसके पीछे उन्होंने कुछ ऐसे भी कांड किये थे, जिस पर भाजपा की गिद्ध निगाह पड़ चुकी थी।



उन कांडों को मद्देनजर रखते हुए भाजपा ने नीतीश को स्पष्ट संदेश दे दिया था कि या तो आप लालू को छोडिये या हम सीबीआई को पागल कुत्ते की तरह आपके ऊपर छोड़ देंगे, फिर न तो आपका मुख्यमंत्री पद रहेगा और ना ही बनाया गया भौकाल। 11 हजार करोड़ रुपये का ट्रेजरी घोटाला और मॉरीशस से आये पैसे में किया गया घोटाला नीतीश के गले की हड्डी बन गया। इसी बीच बात फिक्स हुई और एक साजिश के तहत तेजस्वी पर आरोप लगाया गया और कहा गया कि अब तो बाहर करो इनको, और बीजेपी से हाथ मिलाओ। मौका था, दस्तूर था तो रस्में भी निभा ली गईं और नीतीश कुमार ने नैतिकता की दुहाई देते हुए सियासत का धृतराष्ट्र बनने में कोई देर नही लगाई। बात अगर नैतिकता की थी, तो बीजेपी में शिवराज सिंह चौहान से लेकर योगी आदित्यनाथ जैसे नेताओं की लंबी फेहरिस्त है जिनपे हत्या और बलात्कार तक के मामले है, फिर उनके अगुआ मोदी पर तो पूरे गुजरात दंगों का आरोप है, तो भला नीतीश कुमार की नैतिकता ने उन्हें कैसे इजाजत दे दी। आज नीतीश कुमार ने गठबंधन नही तोड़ा है, गरीब, पिछड़े, आरक्षण समर्थक और अल्पसंख्यक समर्थक वर्ग के विश्वास को ठोकर मारी है। आने वाले समय मे बिहार की बुद्धिमान जनता इसका बदला ज़रूर लेगी।

R. Asim Zaidi 

लेखक जनशक्ति न्यूज़ के चीफ एडिटर हैं 

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