गोरखपुर दंगा: बनने जा रहा है सीएम योगी के गले हड्डी, हाईकोर्ट ने लगाई यूपी सरकार को ज़बर्दस्त फटकार! जानिए क्या कहा

यूपी सरकार की ओर से इसी साल चार मई को मुकदमा चलाने की अनुमति दिए जाने से इंकार किए जाने के खिलाफ दाखिल अर्जी पर हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच नौ अगस्त को सुनवाई करेगी. वैसे इस मामले में सोमवार को हाईकोर्ट में हुई सुनवाई के दौरान यूपी सरकार की खूब फजीहत हुई.

Update: 2017-08-01 01:30 GMT

इलाहाबाद: गोरखपुर में साल 2007 में हुए सांप्रदायिक दंगे में आरोपी रहे यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ को आने वाले दिनों में कानूनी पेचीदगियों का सामना करना पड़ सकता है. यूपी सरकार की ओर से इस केस में सीएम योगी समेत दूसरे आरोपियों के खिलाफ मुकदमा चलाने की मंजूरी दिए जाने से इंकार किए जाने के खिलाफ दाखिल अर्जी को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सुनवाई के लिए मंजूर कर लिया है.  यूपी सरकार की ओर से इसी साल चार मई को मुकदमा चलाने की अनुमति दिए जाने से इंकार किए जाने के खिलाफ दाखिल अर्जी पर हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच नौ अगस्त को सुनवाई करेगी.



वैसे इस मामले में सोमवार को हाईकोर्ट में हुई सुनवाई के दौरान यूपी सरकार की खूब फजीहत हुई. सोमवार को सुनवाई के दौरान यह मुद्दा उठा कि अगर सरकार किसी के खिलाफ मुकदमा चलाने की मंजूरी देने से इंकार कर दे तो क्या मजिस्ट्रेट सरकार के फैसले को दरकिनार कर मामले की सुनवाई कर सकता है या नहीं. यूपी के एडिशनल एडवोकेट जनरल मनीष गोयल और सरकार की तरफ से पैरवी के लिए आए सुप्रीम कोर्ट के सीनियर वकील अजय कुमार मिश्र ने कहा कि मजिस्ट्रेट को सरकार का आदेश खारिज कर सुनवाई करने का अधिकार होता है. बहस के दौरान ही एडवोकेट जनरल राघवेंद्र सिंह बीच में खड़े हो गए और उन्होंने अपने ही सहयोगियों की दलील को गलत बताते हुए मजिस्ट्रेट को अधिकार न होने की दलील दी.



इस पर सुनवाई कर रहे जजेज भी हैरत में पड़ गए और उन्होंने पूछा कि सरकार की तरफ से वह एडिशनल एडवोकेट जनरल और सुप्रीम कोर्ट के वकील की बात को सही माने या फिर एडवोकेट जनरल की बात को. बहरहाल याचिकाकर्ता परवेज परवाज और असद हयात की ओर दाखिल अर्जी को कोर्ट ने सुनवाई के लिए मंजूर कर लिया. चार मई को गृह सचिव की तरफ से सीएम योगी समेत दूसरे आरोपियों के खिलाफ मुकदमा चलाने की मंजूरी दिए जाने से इंकार किये जाने के फैसले के खिलाफ दाखिल अर्जी को कोर्ट ने सुनवाई के लिए मंजूर कर लिया. कोर्ट में यह सवाल उठाया गया कि कोई भी अधिकारी अपने सीएम के खिलाफ दंगा मामले में मुकदमा चलाने की मंजूरी देने की हिम्मत कैसे कर सकता है.




मामले की सुनवाई जस्टिस कृष्ण मुरारी और जस्टिस एसी शर्मा की डिवीजन बेंच ने किया. गौरतलब है कि साल 2007 की 27 जनवरी को गोरखपुर में सांप्रदायिक दंगा हुआ था. आरोप है कि दंगे में अल्पसंख्यक समुदाय के दो लोगों की मौत हुई थी, जबकि कई लोग घायल हुए थे. आरोप है कि दंगा तत्कालीन बीजेपी सांसद योगी आदित्यनाथ, विधायक राधा मोहन दास अग्रवाल और उस वक्त की मेयर अंजू चौधरी द्वारा रेलवे स्टेशन के पास भड़काऊ भाषण देने के बाद भड़का था. विवाद मुहर्रम पर ताजिये के जुलूस के रास्तों को लेकर था. इस मामले में योगी आदित्यनाथ समेत बीजेपी के कई नेताओं के खिलाफ सीजेएम कोर्ट के आदेश पर एफआईआर दर्ज हुई थी. एफआईआर में कई दूसरी गंभीर धाराओं के साथ ही सांप्रदायिक आधार पर समाज को बांटने की आईपीसी की धारा 153 A भी शामिल थी. क़ानून के मुताबिक़ 153 A के तहत दर्ज केस में केंद्र या राज्य सरकार की अनुमति के बाद ही अदालत में मुक़दमे की सुनवाई शुरू होती है.

Similar News