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Bismillah Khan Biography in Hindi | बिस्मिल्ला ख़ाँ का जीवन परिचय

Bismillah Khan Biography in Hindi | बिस्मिल्ला ख़ाँ दुनिया के एक मशहूर शहनाई वादक हैं, जिन्होंने संगीत के क्षेत्र में अपना अद्धितीय योगदान दिया। यही नहीं उन्होंने संगीत की दुनिया में शहनाई एक अलग पहचान दिलवाने का श्रेय भी उन्हीं को ही जाता है।

Bismillah Khan Biography in Hindi
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Bismillah Khan Biography in Hindi

Bismillah Khan Biography in Hindi | बिस्मिल्ला ख़ाँ का जीवन परिचय

  • नाम उस्ताद बिस्मिल्ला ख़ाँ
  • जन्म 21 मार्च, 1916
  • जन्मस्थान डुमराँव, बिहार
  • पिता पैगम्बर खाँ
  • माता मिट्ठन बाई
  • व्यवसाय भारतीय संगीतकार
  • पुरस्कार भारत रत्न, पद्म भूषण, पद्म विभूषण, पद्म श्री
  • नागरिकता भारतीय

भारतीय संगीतकार बिस्मिल्ला ख़ाँ (Bismillah Khan Biography in Hindi)

Bismillah Khan Biography in Hindi | बिस्मिल्ला ख़ाँ दुनिया के एक मशहूर शहनाई वादक हैं, जिन्होंने संगीत के क्षेत्र में अपना अद्धितीय योगदान दिया। यही नहीं उन्होंने संगीत की दुनिया में शहनाई एक अलग पहचान दिलवाने का श्रेय भी उन्हीं को ही जाता है। 15 अगस्त, 1947 में अपनी शहनाई की मधुर धुन के साथ आजादी का स्वागत किया था, और तब से स्वतंत्रता दिवस के दिन लाल किले पर प्रधानमंत्री के भाषण के बाद बिस्मिल्ला ख़ाँ का शहनाई वादन एक परंपरा बन गई है।

प्रारंभिक जीवन (Bismillah Khan Early Life)

बिस्मिल्ला ख़ाँ का जन्म 21 मार्च, 1916 के दिन बिहार के डुमरांव गांव में हुआ था। बचपन में उनका नाम कमरुद्धीन था, लेकिन बाद में उनके दादा रसूल बख्श उनका नाम 'बिस्मिल्लाह' रख दिया था, जिसका मतलब था 'अच्छी शुरुआत'। बिस्मिल्लाह जी का परिवार संगीत के क्षेत्र से जुड़ा हुआ था। शहनाई वादन की कला अपने परिवार से विरसात में मिली थी, क्योंकि शुरु से ही उनके परिवार के लोग दरबारी राग बजाने में उस्ताद थे।

उनका परिवार उनके पिछली 5 पीढ़ियों से शहनाई वादन का प्रतिवादक रहा है। वहीं उनके पूर्वज बिहार के भोजुपर रजवाड़े में दरबारी संगीतकार भी थे महज 6 साल की उम्र में बिस्मिल्ला ख़ाँ अपने पिता पैंगमर खान के साथ बनारस आ गए। वहां उन्होंने अपने चाचा अली बख्श 'विलायतु' से शहनाई बजाना सीखा।

करियर (Bismillah Khan Career)

महान शहनाई वादक बिस्मिल्ला ख़ाँ ने महज 14 साल की छोटी सी उम्र में पहली बार इलाहाबाद के संगीत परिषद् में शहनाई बजाने का कार्यक्रम किया था, जिसके बाद बेहद कम समय में उन्होंने अपनी शहनाई बजाने की अलौकिक प्रतिभा को निखारा और सर्वश्रेष्ठ शहनाई वादक के रुप में अपनी पहचान बनाई।

बिस्मिल्ला ख़ाँ ने 'बजरी', 'झूला', 'चैती' जैसी प्रतिष्ठित लोकधुनों में बाजे को अपनी कठोर तपस्या के बल पर शहनाई वादन को संवारा और क्लासिकल मौसिक़ी में शहनाई को संगीत की दुनिया में सम्मानजनक स्थान दिलवाई। वहीं जिस जमाने में बिस्मिल्लाह जी शहनाई वादक के रुप में खुद को उभार रहे थे, उस दौर में संगीतकारों को उतना महत्व नहीं दिया जाता था।

हालांकि उनके परिवार का शुरु से ही संगीत से जुड़ा रहना और उनकी शहनाई वादन में दिलचस्पी की वजह से ही उन्होंने न सिर्फ खुद को एक प्रसिद्ध शहनाई वादक के रुप में स्थापित किया बल्कि शहनाई को भी संगीत की दुनिया में एक अलग पहचान दिलवाई। वहीं बिस्मिल्ला ख़ाँ जी के संगीत बजाने की अद्भुत प्रतिभा को देखते हुए शांतिनिकेतन और बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय ने उन्हें डॉक्टरेट की उपाधि से नवाजा था।

योगदान (Bismillah Khan Contribution)

15 अगस्त, 1947 में देश की आजादी के पूर्व संध्या पर जब लालकिले पर देश का झंडा फहराकर आजादी का जश्न मनाया जा रहा था, तब बिस्मिल्ला जी ने अपनी मर्मस्पर्शी शहनाई बजाकर भारत की आजादी का स्वागत किया था। तब से लेकर हर साल 15 अगस्त को दिल्ली के लाल किले पर प्रधानमंत्री के भाषण के बाद बिस्मिल्ला ख़ाँ का शहनाई वादन परंपरा बन गई है।

पुरस्कार और सम्मान (Bismillah Khan Awards)

  • 1930 में ऑल इंडिया म्यूजिक कांफ्रेंस में बेस्ट परफॉर्मर पुरस्कार से नवाजा गया था।
  • 1956 में संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से नवाजा गया था।
  • 1961 में भारत के प्रतिष्ठित पुरस्कार 'पद्म श्री' से नवाजा गया था।
  • 1968 में भारत के सर्वोच्च सम्मान में से एक 'पद्म भूषण' सम्मान से नवाजा गया था।
  • 1980 में 'पद्म विभूषण' सम्मान से नवाजा गया था।
  • 2001 में शहनाई वादक बिस्मिल्लाह खां को देश के सर्वोच्च सम्मान 'भारत रत्न' से सम्मानित किया गया।
  • बिस्मिल्लाह खां जी को मध्य प्रदेश सरकार द्धारा तानसेन पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था।

मृत्यु (Bismillah Khan Death)

उस्ताद बिस्मिल्ला ख़ाँ ने अपने जीवन के आखिरी दिनों में दिल्ली के इंडिया गेट पर शहनाई बजाने की इच्छा जाहिर की थी, लेकिन उनकी यह इच्छा पूरी नहीं हो सकी, और 90 वर्ष की उम्र में 21, अगस्‍त 2006 के दिन उनकी मृत्यु हो गयी।

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