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Dr Zakir Hussain Biography in Hindi | पूर्व राष्ट्रपति डॉ.जाकिर हुसैन की जीवनी

Dr Zakir Hussain Biography in Hindi | प्रसिद्ध शिक्षाशास्त्री और भारत के चौथे राष्ट्रपति डा.जाकिर हुसैन (Dr Zakir Hussain ) का जन्म 8 फरवरी 1897 को हैदराबाद में हुआ था | उनके पिता फ़िदा हुसैन वहा वकालत करते थे | नौ वर्ष की उम्र में ही पिता की मृत्यु हो जाने के कारण उनकी शिक्षा उत्तर प्रदेश के इटावा और अलीगढ़ में हुयी थी |

Dr Zakir Hussain Biography in Hindi | पूर्व राष्ट्रपति डॉ.जाकिर हुसैन की जीवनी
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Dr Zakir Hussain Biography in Hindi | प्रसिद्ध शिक्षाशास्त्री और भारत के चौथे राष्ट्रपति डा.जाकिर हुसैन (Dr Zakir Hussain ) का जन्म 8 फरवरी 1897 को हैदराबाद में हुआ था | उनके पिता फ़िदा हुसैन वहा वकालत करते थे | नौ वर्ष की उम्र में ही पिता की मृत्यु हो जाने के कारण उनकी शिक्षा उत्तर प्रदेश के इटावा और अलीगढ़ में हुयी थी | जिस समय जाकिर हुसैन अलीगढ़ में पढ़ रहे थे गांधीजी ने असहयोग आन्दोलन आरम्भ किया | इसी के प्रभाव में जाकिर हुसैन (Dr Zakir Hussain ) ने भी कॉलेज छोड़ दिया और असहयोग करने वाले विद्याथियो के लिए "जामिया मिलिया इस्लामिया" नामक राष्ट्रीय संस्था की स्थापना में लग गये और वही अर्थशास्त्र पढाने लगे |

शिक्षा के प्रति प्रेम के कारण बाद में जाकिर हुसैन (Dr Zakir Hussain ) ने जर्मनी आकर शिक्षा पुरी की | वहा से पी.एच.डी. की उपाधि लेकर पुन: जामिया में आ गये और 100 रूपये के मासिक वेतन पर 29 वर्ष की उम्र में कुलपति बन गये | उन्होंने 22 वर्षो तक इस संस्था की सेवा की |देश की स्वतंत्रता के बाद जाकिर हुसैन (Dr Zakir Hussain )अलीगढ़ विश्वविद्यालय के उपकुलपति बने | 1952 में राज्य सभा में सदस्य चुने जाने पर उनका सक्रिय राजनीतिक जीवन आरम्भ हुआ |

डा.जाकिर हुसैन (Dr Zakir Hussain ) पहले बिहार के राज्यपाल बने और यूनेस्को में भारत का प्रतिनिधत्व किया | 1962 में उनका निर्वाचन देश के राष्ट्रपति पद के लिए हुआ और 13 मई 1967 को डा.जाकिर हुसैन इस पद पर प्रतिष्टित हुए | उनके राष्ट्रपति बनने से भारत के पन्थनिरपेक्ष स्वरूप को ओर भी सम्मान मिला | अनेक देशो की यात्राये करके अपने देश का समतामुलक स्वरूप विश्व के सामने स्पष्ट किया | पद पर रहते हुए 3 मई 1969 को जाकिर हुसैन (Dr Zakir Hussain ) का देहांत हो गया |

Dr Zakir Hussain Biography in Hindi | पूर्व राष्ट्रपति डॉ.जाकिर हुसैन की जीवनी

जब डॉ.जाकिर हुसैन को डॉ.राधाकृष्णन के पश्चात राष्ट्रपति बनाया गया तो उन्होंने कहा था कि "मुझे राष्ट्रपति चुनकर राष्ट्र ने एक अध्यापक का सम्मान किया है | मैंने लगभग 47 वर्ष पूर्व संकल्प लिया था कि मै अपने जीवन के सर्वोत्तम वर्ष राष्ट्रीय शिक्षा में लगाऊंगा | मैंने अपना सार्वजनिक जीवन गांधीजी के चरणों में शुरू किया था | गांधीजी मुझे प्रेरणा देते रहे है और उन्होंने मुझे रास्ता दिखाया है | अब मुझे सेवा करने का एक नया मौका मिला है | मै अपने लोगो को गांधीजी द्वारा दिखाए रास्ते पर ले जाने की भरसक कोशिस करूंगा"

सचमुच यह भारत के लिए सौभाग्य की बात ही है कि उसे राष्ट्रपति के रूप में ऐसे व्यक्ति मिले जिन्होंने इस पद की गरिमा को बढाया , किसी भी प्रकार से उसे कम नही किया | डा.जाकिर हुसैन इस परम्परा की तीसरी कड़ी है | उनका राष्ट्रपति होना इस बात का भी प्रमाण है कि हमारी निति और सामाजिक आस्था सर्वथा धर्म निरपेक्ष रही है | या सही है कि वह मुस्लिम थे परन्तु वह उससे पहले ठेठ भारतीय थे वह ओर किसी की और नही केवल भारत की ओर देखते थे | भारत उनके मन में समाया हुआ था |

18वी सदी में बहादुर अफ्रीकी पठानों के कुछ परिवार उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद जिले के कायमगंज नामक कस्बे में आ बसे थे | इनमे से ज्यादातर सिपाही थे कुछ लोग जमींदारी और खेती करते थे | यही के परिवार में डॉक्टर जाकिर हुसैन का जन्म हुआ था | उनके पिता का नाम फ़िदा हुसैन था | फ़िदा हुसैन ने अपने बाप-दादा का पेशा छोड़ दिया | वे कायमगंज से हैदराबाद चले गये | उस समय हैदराबाद निजाम की रियासत के राजधानी था | फ़िदा हुसैन ने वहा से वकालत शुरू की |

थोड़े समय में ही वे रियासत के चोटी के वकील बन गये | रूपये-पैसे की कोई कमी नही रही | हैदराबाद में 8 फरवरी 1897 को जाकिर हुसैन का जन्म हुआ था | वे सात भाइयो में तीसरे थे | उनकी शुरू की शिक्षा भी हैदराबाद में हुयी | उन्हें घर पर अंग्रेजी पढाने के लिए एक ख़ास अध्यापक का प्रबंध किया गया पर नौ वर्ष की आयु में उनके पिता का देहांत हो गया और परिवार को फिर कायमगंज आना पड़ा | यहा पांच साल प्लेग में माँ भी चल बसी | उस समय जाकिर हुसैन हाई स्कूल के बाद वजीफे के लिए परीक्षा देने आगरा गये हुए थे |

लोगो ने माँ से जाकिर हुसैन को बुलवाने को कहा , पर उन्होंने कहा नही बच्चे के इम्तिहान हो रहे है | इस दर्दनाक घटना के बारे में उन्होंने लिखा है कि "जिन दिनों मै आगरा परीक्षा देने गया था तब कायमगंज में प्लेग फ़ैली | हमारे घर की सभी औरते मर गयी | घर में कोई आदमी न था | मेरा छोटा भाई भी गुजर गया | जब मै आगरा से लौटा तो स्टेशन पर घर वालो में से कोई भी नही था और न कोई सवारी लेकर आया था मै पैदल घर गया तो देखा कि घर के दरवाजे बंद है सुनसान देखकर मै चौंका | मेरे सर से माँ का साया उठ गया था मैंने अपने को असहाय पाया | वह जिन्दा थी तभी से हम भाइयो ने अपने पैरो पर खड़ा होना सीखा | मेरी माँ कहा करती थी अपने आप काम करो , पुरखो का नाम करो | मै इस बबात को कभी नही भुला"|

माँ की मृत्यु के बाद उनकी प्रांरभिक शिक्षा इटावा में हुयी | इन दिनों जाकिर हुसैन सूफी हसनशाह के सम्पर्क में आये | वह एक विद्वान और पुस्तको के प्रेमी थे | नम्रता और सब धर्मो का आदर करना उनके गुण थे जिन्हें बालक जाकिर हुसैन ने भी अपनाया | इटावा से उन्होंने मैट्रिक किया और उसके बाद अलीगढ़ में मुस्लिम एंग्लो ओरिएण्टल कॉलेज में दाखिल हो गये |एम.ए. की परीक्षाये होने वाली थी | वह उन दिनों पढने के साथ पढाने का काम भी करते थे तभी महात्मा गांधी अलीगढ़ आये और उन्होंने असहयोग आन्दोलन का बिगुल फूंका |

गांधीजी के असहयोग आन्दोलन ने विशेष रूप से 1921 के आन्दोलन में अनेक भारतीय युवको के जीवन की धारा ही बदल दी | जाकिर हुसैन जिस कॉलेज में पढ़ते थे वहा के छात्रों में दो दल हो गये | एक असहयोग आन्दोलन के पक्ष में था दूसरा विरोध में | बड़ी गरमागरमी हुयी , बहस-मुबाहिसे हुए परन्तु जाकिर हुसैन कॉलेज छोड़ने के अपने निश्चय पर अटल रहे | प्रिंसिपल ने उन्हें बहुतेरा समझाया कि एम.ए. कर लो , उसके बाद तुम्हे बढिया नौकरी दिलवा दी जायेगी पर न तो किसी प्रलोभन में आये और न अपने निश्चय से डगे |

उन्होंने गांधीजी के आह्वान पर कॉलेज छोड़ दिया | इसके बाद उन्होंने अलीगढ़ में जामिया मिलिया इस्लामिया की नींव डाली | जाकिर हुसैन पहले ही गांधीजी , मौलाना मोहम्मद अली और मौलाना आजाद के विचारो से अत्यधिक प्रभावित हो चुके थे अत: उन्होंने ज्यादा सोचने की आवश्यकता नही समझी | अपने इस एतेहासिक निर्णय की चर्चा करते हुए बाद में एक बार उन्होंने कहा था "अपनी ख्वाहिश से किया गया मेरी जिन्दगी का यह पहला अहम फैसला था | ऐसा फैसला मैंने जिन्दगी में शायद ही कभी किया हो | मेरी बाकी जिन्दगी मेरे इस फैसले की बदौलत है "|

"जामिया मिलिया" अलीगढ़ में कुछ वर्ष काम करने के पश्चात जाकिर हुसैन आगे की पढाई के लिए जर्मनी गये परन्तु हिंदुस्तान वहा भी उनके मन-मस्तिष्क पर छाया रहा | जर्मनी के लोगो को जर्मन भाषा में गांधीजी के जीवन ,कार्यो और सफलताओं पर लेख लिखकर समझाते रहे | गांधीवादी विचारधारा के व्याख्याता डा.जाकिर हुसैन जर्मनी में बहुत लोकप्रिय हुए | बर्लिन यूनिवर्सिटी के अर्थशास्त्र में डॉक्टरेट प्राप्त करके लौटे तो जामिया की हालत बहुत खराब थी | अत: डा.अंसारी , हकीम अजमल खा ,गांधीजी और नेहरु जी आदि नेताओं के आग्रह पर जामिया मिलिया की व्यवस्था और विकास में लग गये | बाद में अलीगढ़ की बजाय जामिया मिलिया दिल्ली में लाया गया | डा.जाकिर हुसैन ने इसे साम्प्रदायिक राजनीति का अखाड़ा कभी नही बनने दिया |

डॉक्टर जाकिर हुसैन 22 साल तक जामिया मिलिया के कुलपति रहे | उपकुलपति होते हुए भी वे दफ्तर का सारा काम खुद करते थे | अपनी मदद के लिए उन्होंने कोई क्लर्क नही रखा | यहा तक कि चपरासी नही रखा क्योंकि जामिया की आर्थिक हालत अच्छी नही थी इसलिए वे कोई ऐसा खर्चा नही करना चाहते थे जिसके बिना गुजारा हो सकता हो | शुरू में वे 300 रूपये मासिक वेतन पाते थे | विदेश से ऊँची शिक्षा पाकर लौटने वाले आदमी के लिए यह वेतन नगण्य था लेकिन उन्होंने देखा कि जामिया में इतने पैसे भी देने ही हालत नही है इसलिए उन्होंने अपना वेतन घटाकर 200 रूपये कर दिया और बाद में 200 रूपये से घटाकर 150 रूपये |

जब उन्होंने जामिया छोड़ा तो वह 100 रूपये से भी कम वेतन पा रहे थे | उनके सिर पर जामिया की देखभाल का काम बहुत अधिक था | यह सब होते हुए भी वे छात्रों को पढाने के लिए समय जरुर निकालते थे | छात्र छोटे हो या बड़े ,वे सभी को बड़े चाव से पढाते थे | एक दिन बड़ी क्लास के एक अध्यापक को कहा गया कि वह छोटी क्लास के बच्चो को पढाये | इसमें उसने अपनी बेइज्जती समझी | वह बोले "मैंने बहुत ऊँची शिक्षा पाई है | मै केवल बड़ी क्लास के बच्चो को पढाने के लिए हु" | यह बात सुनकर डॉक्टर जाकिर हुसैन खुद छोटी क्लास को पढाने चले गये |

वास्तव में छोटे बच्चो को पढाना उन्हें बहुत अच्छा लगता था | वे कहा करते थे कि अगर नींव मजबूत हो तो इमारत भी पक्की होगी इसलिए बच्चो को शुरू में ही अच्छी शिक्षा मिलनी चाहिए "अगर पहली इंट सही हो तो उस पर सीधी दीवार नहीं खडी की जा सकती |" डॉक्टर जाकिर हुसैन गन्दगी के बहुत खिलाफ थे | वे छात्रों को हमेशा साफ़ रहने का पाठ पढाते थे | वे चाहते थे कि छात्र खुद साफ़ रहे ,अपनी क्लास को साफ रखे और रहने के कमरे को भी साफ़ रखे | एक दिन वे क्लास में घुसे तो नाराज से नजर आ रहे थे |

आते ही उन्होंने अपनी अचकन की जेब में हाथ डाला | बच्चे एकटक देख रहे थे | देखते ही देखते उन्होंने जेब से दसियों कागज के टुकड़े निकाल डाले | अंत में छात्रों से बोले "यह सब कूड़ा मुझे घर से यहा आते हुए रस्ते में मिला है मुझे बेहद दुःख हुआ यह स्थान ज्ञान का मन्दिर है इसे साफ़ रखना आपका पहला कर्तव्य है " | एक बार उन्होंने छात्रों से कहा कि स्कूल आने वे पहले वे अपना जूता पालिश किया करे | अगले दिन वे सुबह सुबह ब्रश और पोलिश लेकर स्कूल के फाटक पर बैठ गये |

आने वाले हर छात्र का जूता देखा | जिसका जूता साफ़ नहीं था उसे वही रोककर उसका जूता उतरवा दिया | खुद पॉलिश करके उसे अंदर भेजा | चात्रोके लिए यह एक बहुत बड़ा सबक था | उस दिन के बाद से सभी लडके जूते पॉलिश करके आने लगे | राजनीति में साम्प्रदायिक भावनाए तथा कांग्रेस और मुस्लिम लीग के तीव्र मतभेद को देख जाकिर हुसैन को बड़ा दुःख होता था | 1946 में आयोजित जामिया की रजत जयंती के अवसर पर देश के बड़े नेता उपस्थित थे | गांधीजी ,नेहरु और आजाद उपस्थित थे और राजाजी , जिन्ना और लियाकत अली खा भी |

इस अवसर पर अपने भाषण में आपने कहा था "खुदा के लिए आप अपने बीच नफरत भुला एक हो जाए यह वक्त देखने का नहीं की मौजूदा हालात के लिए कौन जिम्मेदार है सवाल यह है कि नफरत की आज जो कि हमारे चारो ओर भडक रही है उसे हमे बुझाना है | इस वक्त मसला किसी एक फिरके के जिन्दा रहने का नही बल्कि यह कि हमने अपने लिए मोह्ज्ज्ब अथवा बहशी जीवनयापन में से एक को चुनना है | मेरी आपसे यही इल्तजा है कि हम सब एक होकर इस देश से तहजीब को खत्म होने से बचाए "

सन 1937 में पहली बार प्रान्तों में लोकप्रिय सरकारे बनी | गांधीजी ने सोचा कि नई सरकारों को शिक्षा में सुधार करना चाहिए | बच्चो को ऐसी शिक्षा दी जानी चाहिए जो उनका पुरी तरह मानसिक और शारीरिक विकास करे | गांधीजी शिक्षा को किताबो तक सिमित रखने के खिलाफ थे | उनका विचार था कि बच्चो को किसी काम-धंधे द्वारा शिक्षा मिलनी चाहिए | इस शिक्षा को वे "बुनियादी शिक्षा" का नाम देते थे | उन्होंने एक कमेटी बनाई | इस कमेटी का काम था बुनियादी शिक्षा का पाठ्यक्रम बनाना | डॉक्टर जाकिर हुसैन को उन्होंने इस कमेटी का अध्यक्ष बनाया |

डॉक्टर जाकिर हुसैन ने बड़ी लगन से रिपोर्ट तैयार की | सारे देश में रिपोर्ट की बहुत चर्चा हुयी | यह अपनी किस्म की रिपोर्ट थी | गांधीजी ने रिपोर्ट पसंद की और इसका समर्थन किया | गांधीजी डॉक्टर जाकिर हुसैन की योग्यता से प्रभावित हुए | उन्होंने एक हिन्दुस्तानी तालीमी संघ बनाया और डॉक्टर जाकिर हुसैन को इसका प्रधान नियुक्त किया | डा.जाकिर हुसैन जो भी कार्य करते उस पर अपने कुछ विशिष्ट गुणों के कारण उस पर अपनी छाप छोड़ते |

1957 में वो बिहार के राज्यपाल बने | अपनी सहृदयता , वाकपटुता , शिष्टता और उन्मुक्त स्वभाव से लोगो का दिल जीत लिया | 1962 से 1967 तक वह भारत के उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के सदस्य रहे और उन्होंने सत्तारूढ़ दल और विरोधी पक्ष के बीच किसी तरह का पक्षपात नही बरता और न सत्तारूढ़ दल को अनुचित लाभ उठाने दिया | चौथे आम चुनावों के बाद राष्ट्रपति का चुनाव होना था तो लगभग सबने स्वाभाविक रूप से उनका नाम लिया यद्यपि विरोध के बाद इस पद के लिए चुनाव कराना पड़ा परन्तु डा.जाकिर हुसैन भारी बहुमत से निर्वाचित हुए |

डा.जाकिर हुसैन ने 13 मई 1967 को भारत के राष्ट्रपति पद का कार्यभार सम्भाला | उन्हें चुनकर भारत के लोगो ने एक बार फिर धर्म निरपेक्षता में अपना विश्वास दोहराया | संसार भर में विशेषकर जर्मनी में उनके निर्वाचन का बहुत स्वागत किया गया | वो बड़े विनोदी स्वभाव के थे और अपने साथियो से काम करान के उनके अनूठे ढंग थे | एक बार स्कूल के बच्चे की टोपी मैली थी उसे स्वयं धोकर उन्हें साफ़ कपड़े पहनने का सबक सिखाया | एक बार कमरे की खिड़कियो के शीशे मैले थे तो गुस्से में उन्हें तोड़ डाला |

डा.जाकिर हुसैन को सुन्दरता और सुंदर चीजो से बेहद प्यार था | फूलो और नई किस्म के पत्थरों ,जवाहरात और चित्रों का उन्हें बेहद शौक था | इन चीजो का तो एक संग्रहालय ही तैयार हो गया है उनके संग्रह का | डा.जाकिर हुसैन ने कुछ ग्रंथो का भी प्रतिपादन किया है | अनेक गुणों से सम्पन्न , राष्ट्रीयता और धर्मनिरपेक्षता के प्रतीक इस सौभाग्यशाली व्यक्ति को भारत सरकार ने 1963 में भारत रत्न अलंकार से सम्मानित किया | वह तो सौभाग्यशाली थे ही , पर देश भी ऐसे व्यक्तियों से अपने आप को सौभाग्यवान समझता है | 3 मई 1969 को भारत के इस महान सपूत और राष्ट्रपति का देहावसान हो गया पर उनके आदर्श और प्रेरणापूर्ण जीवन देशवासियों का सदैव मार्गदर्शन करता रहेगा |

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