Janskati Samachar
जीवनी

Madan Mohan Malviya Biography in Hindi | मदन मोहन मालवीय का जीवन परिचय

Madan Mohan Malviya Biography in Hindi | मदनमोहन मालवीय महान स्वतंत्रता सेनानी, राजनीतिज्ञ और शिक्षाविद ही नहीं, बल्कि एक बड़े समाज सुधारक भी थे। हिन्दू राष्ट्रवाद के समर्थक मदन मोहन मालवीय देश से जातिगत बेड़ियों को तोड़ना चाहते थे।

Madan Mohan Malviya Biography in Hindi | मदन मोहन मालवीय का जीवन परिचय
X

Madan Mohan Malviya Biography in Hindi | मदन मोहन मालवीय का जीवन परिचय

Madan Mohan Malviya Biography in Hindi | मदन मोहन मालवीय का जीवन परिचय

  • नाम मदन मोहन मालवीय
  • जन्म 25 दिसंबर 1861
  • जन्मस्थान इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश
  • पिता पंडित बृजनाथ
  • माता मून देवी
  • पत्नी कुमारी कुंदन देवी
  • पुत्र रमाकांत
  • पुत्री राधाकांत
  • व्यवसाय राजनेता, स्वतंत्रता सेनानी और शिक्षाविद
  • पुरस्कार भारत रत्न
  • नागरिकता भारतीय

भारतीय स्वतंत्रता सेनानी मदन मोहन मालवीय (Madan Mohan Malviya Biography in Hindi)

Madan Mohan Malviya Biography in Hindi | मदनमोहन मालवीय महान स्वतंत्रता सेनानी, राजनीतिज्ञ और शिक्षाविद ही नहीं, बल्कि एक बड़े समाज सुधारक भी थे। हिन्दू राष्ट्रवाद के समर्थक मदन मोहन मालवीय देश से जातिगत बेड़ियों को तोड़ना चाहते थे। उन्होंने दलितों के मन्दिरों में प्रवेश निषेध की बुराई के ख़िलाफ़ देशभर में आंदोलन चलाया। साथ ही वे भारतीय राष्ट्रिय कांग्रेस के चार बार अध्यक्ष भी रह चुके थे। आदर और सम्मान के साथ उन्हें पंडित मदन मोहन मालवीय और महामना के नाम से भी बुलाया जाता था।

मालवीय जी का प्रारंभिक जीवन (Madan Mohan Malviya Early Life)

मदन मोहन मालवीय का जन्म इलाहाबाद के एक ब्राह्मण परिवार में 25 दिसंबर 1861 को हुआ था। वह अपने पिता पंडित बैजनाथ और माता मीना देवी के आठ बच्चों में से एक थे। उनके पूर्वज मालवा के संस्कृत भाषा के विद्वान थे। और तभी से उनके परीवार को मालवीय भी कहा जाता है। उनका वास्तविक उपनाम चतुर्वेदी था। उनके पिता ने संस्कृत साहित्यों का अभ्यास कर रखा था और साथ ही संस्कृत भाषा का उन्हें बहोत ज्ञान था।

मालवीय जी कीशिक्षा (Madan Mohan Malviya Education)

5 वर्ष की उम्र में उनकी शिक्षा प्रारंभ हुई और उन्हें महाजनी स्कूल भेज दिया गया। इसके बाद वह धार्मिक विद्यालय चले गए जहां उनकी शिक्षा-दीक्षा हरादेव जी के मार्गदर्शन में हुई। यहीं से उनकी सोच पर हिंदू धर्म और भारतीय संस्कृति का प्रभाव पड़ा। 1868 में उन्होंने तब हाल ही में स्थापित हुए शासकीय हाईस्कूल में दाखिला लिया।

1879 में उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से मैट्रिक तक की पढ़ाई पूरी की। 1884 में उन्होंने कलकत्ता विश्वविद्यालय से बी.ए. की शिक्षा पूरी की और इलाहबाद की सरकारी हाई स्कूल से असिस्टेंट मास्टर के पद पर रहते हुए अपने करियर की शुरुवात की।

मालवीय की शुरुआती करियर (Madan Mohan Malviya Starting Career)

  • 1886 में कलकत्ता में इंडियन नेशनल कांग्रेस के दूसरे अधिवेशन में उन्होंने अपने ओजस्वी भाषण से दादभाई नैरोजी को प्रभावित कर दिया, जो कि उस सेशन के चेयरमैन थे। और प्रतापगढ़ जिले के राजा रामपाल सिंह पर भी प्रभाव डाला, प्रभावित होकर महाराज ने उनसे साप्ताहिक समाचार पत्र हिंदुस्तान का संपादक बनने और उसका प्रबंधन संभालने की पेशकश की।
  • 1887 में स्कूल में शिक्षक की नौकरी छोडकर संपादक का काम शुरू कर दिया। उन्होंने ये कार्य अगले ढाई वर्षों तक किया, उसके बाद वो इलाहबाद लौट आये और लॉ की डिग्री की पढ़ाई करने लगे।
  • 1891 में उन्होंने अपनी एल.एल.बी. की पढ़ाई पूरी की और इलाहाबाद जिला न्यायालय में प्रेक्टिस शुरू कर दी। 1893 में प्रगति करते हुए वह इलाहाबाद उच्च न्यायालय में प्रेक्टिस करने लगे।
  • 1907 में मदन मोहन ने "अभ्युदय" नामक हिंदी साप्ताहिक समाचार पत्र शुरू किया और 1915 में इसे दैनिक समाचार पत्र में तब्दील कर दिया। इसके आलावा कांग्रेस के प्रेसिडेंट रहते हुए 1911 से 1919 तक उन्होंने हिंदी पेपर मर्यादा भी शुरू किया।
  • 1924 में तो उन्होंने हिन्दुस्तान टाइम्स को बंद होने से बचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिसमें एम. आर जयकार, लाल लाजपत राय और घनश्याम दास बिरला ने उनका सहयोग किया।
  • 1936 में उन्होंने हिंदुस्तान टाइम्स का हिंदी एडिशन निकालना शुरू किया जिसका नाम "हिन्दुस्तान" रखा गया।

निजी जीवन (Madan Mohan Malviya Married Life)

16 वर्ष की उम्र में मदन मोहन मालवीय का विवाह मिर्जापुर की कुंदन देवी के साथ वर्ष 1878 में हो गया। उनकी पांच पुत्रियां और पांच पुत्र थे।

मालवीय की राजनीतिक करियर (Madan Mohan Malviya Political Career)

मालवीय को जीवन में 4 बार क्रमश: 1909, 1918,1930 और 1932 में इंडियन नेशनल कांग्रेस का प्रेसिडेंट चुना गया था। बतौर प्रेसिडेंट मालवीय जी ने बहुत से महत्वपूर्ण कार्य किये। इसी के साथ 1916 में नर्म दल के नेता गोपाल कृष्ण गोखले द्वारा प्रस्तावित लखनऊ पैक्ट का इन्होने विरोध भी किया था।

1922 में हुए चौरा-चौरी काण्ड के बाद 1924 में वो इलाहबाद हाई कोर्ट में गए थे और उन्होंने 177 क्रांतिकारियों को बचाया था। जिन्हें सेशन कोर्ट ने फांसी की सजा सूना दी थी और इनमें से 156 को वें निर्दोष साबित करने में भी सफल रहे थे।

बनारस में हुए भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के 21वें अधिवेशन में मदन मोहन ने एक हिंदू विश्वविद्यालय की स्थापना का विचार सबके सामने प्रस्तुत किया। 1915 में बनारस हिंदू विश्वविद्यालय विधेयक पास हो गया और 4 फरवरी 1916 को बनारस हिंदू विश्वविद्यालय की स्थापना हुई।

क्रांतिकारी जीवन (Freedom Fighter Madan Mohan Malviya)

1911 में स्वयं को पूरी तरह से शिक्षा के क्षेत्र में समर्पित करने के लिए मालवीयजी ने लॉ की प्रैक्टिस छोड दी और सन्यासी के समान जीवन जीना शुरू किया।

वह "लखनऊ पैक्ट" के तहत मुस्लिमों के लिए पृथक निर्वाचक मंडल के पक्ष में नहीं थे और 1920 के दशक में खिलाफत आंदोलन में कांग्रेस की भागीदारी के भी विरोध में थे।

1920 में महात्मा गांधी द्वारा शुरू किए गए असहयोग आंदोलन में उन्होंने मुख्य भूमिका निभाई और भारतीय इतिहास की दिग्गज हस्तियों जैसे लाला लाजपत राय, जवाहरलाल नेहरू समेत कई अन्य के साथ साइमन कमीशन का विरोध किया।

1931 में उन्होंने पहले गोलमेज सम्मेलन में भारत का प्रतिनिधित्व किया। उन्हें "सत्य की ही जीत होगी" नारे को प्रसिद्ध करने वाले के तौर पर भी जाना जाता है।

30 मई 1932 को मदन मोहन ने घोषणा पत्र जारी कर "भारतीय खरीदो, स्वदेशी खरीदो" आंदोलन पर ध्यान केंद्रित करने की सिफारिश की। जब स्वतंत्रता लगभग मिलने ही वाली थी तब उन्होंने महात्मा गांधी को देश के विभाजन की कीमत पर स्वतंत्रता स्वीकार न करने की राय दी।

25 अप्रैल, 1932 को मालवीयाजी के साथ लगभग 450 कांग्रेस स्वयंसेवकों को दिल्ली में गिरफ्तार किया गया था। 25 सितंबर, 1932 को उनके और डॉ. आम्बेडकर के मध्य "पूना पैक्ट एग्रीमेंट" पर हस्ताक्षर किए गए थे, इसने अलग मतदाताओं के निर्माण के बजाय प्रांतीय विधायिकाओं में सामान्य मतदाताओं में निराश वर्गों के लिए आरक्षित सीटें प्रदान कीं। इसके बाद कांग्रेस के भीतर उनके मतभेद बढ़ जाने से वो कांग्रेस से अलग हो गए।

1934 में उन्होंने माधव श्रीहरी आने के साथ मिलकर कांग्रेस नेशनलिस्ट पार्टी की स्थापना की, उस साल पार्टी ने इलेक्शन में सेन्ट्रल लेजिस्लेचर में 12 सीट्स जीती हैं। 1937 में उन्होंने राजनीतिक जीवन से सन्यास ले लिया।

इन्हे महात्मा गांधी ने महामना की उपाधि से सम्मानित किया था, वो पंडितजी को अपने बड़े भाई के जैसा सम्मान देते थे। गांधीजी ने उन्हें "मेकर्स ऑफ़ इंडिया" भी कहा था. भारत के दुसरे राष्ट्रपति डॉ. राधकृष्णन ने उनके निस्वार्थ काम के लिए करम योगी का टाईटल भी दिया था।

विरासत और उपलब्धियां (Madan Mohan Malviya Achievement)

  • मदनमोहन मालवीय के नाम पर इलाहाबाद, लखनऊ, दिल्ली, भोपाल और जयपुर में रिहायशी क्षेत्रों को मालवीय नगर नाम दिया गया।
  • उनके सम्मान में भारत सरकार ने एक डाक टिकट जारी किया।
  • उनके नाम पर "मालवीय नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्टनोलॉजी जयपुर" और "मदन मोहन इंजीनियर कॉलेज गोरखपुर" उत्तरप्रदेश का नामकरण किया गया।
  • बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में असेंबली हॉल के मुख्य द्वार पर और पोर्च के बाहर पंडित मदन मोहन मालवीय की अर्द्ध प्रतिमाएं हैं।
  • मालवीय को उनकी 153 वी जन्म तिथि के एक दिन पहले 24 दिसंबर 2014 को भारत के सर्वोच्च पुरस्कार "भारत रत्न" से सम्मानित किया गया था।

मृत्यु (Madan Mohan Malviya Death)

जीवन के अंतिम वर्षों में बीमारी के चलते मदन मोहन मालवीय का निधन 12 नवंबर 1946 को 85 वर्ष की उम्र में बनारस में निधन हो गया।

Next Story
Share it