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महर्षि वाल्मीकि की जीवनी | Maharishi Valmiki Biography in Hindi

Maharishi Valmiki Biography in Hindi: वाल्मीकि ऋषि वैदिक काल के महान ऋषि हैं। धार्मिक ग्रंथ और पुराण अनुसार वाल्मीकि नें कठोर तप अनुष्ठान सिद्ध कर के महर्षि पद प्राप्त किया था। परमपिता ब्रह्मा जी की प्रेरणा और आशीर्वाद पा कर वाल्मीकि ऋषि नें भगवान श्री राम के जीवनचरित्र पर आधारित महाकाव्य रामायण की रचना की थी।

महर्षि वाल्मीकि की जीवनी | Maharishi Valmiki Biography in Hindi
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महर्षि वाल्मीकि की जीवनी | Maharishi Valmiki Biography in Hindi

  • नाम महर्षि वाल्मीकि
  • जन्म त्रेता युग (भगवान् राम के काल में)
  • अन्य नाम रत्नाकर, अग्नि शर्मा
  • पिता प्रचेता
  • माता चर्षणी
  • उपलब्धि आदि कवी, वाल्मीकि रामयण के रचयिता
  • नागरिकता भारतीय

रामायण के रचयिता महर्षि वाल्मीकि (Maharishi Valmiki Biography in Hindi)

Maharishi Valmiki Biography in Hindi: वाल्मीकि ऋषि वैदिक काल के महान ऋषि हैं। धार्मिक ग्रंथ और पुराण अनुसार वाल्मीकि नें कठोर तप अनुष्ठान सिद्ध कर के महर्षि पद प्राप्त किया था। परमपिता ब्रह्मा जी की प्रेरणा और आशीर्वाद पा कर वाल्मीकि ऋषि नें भगवान श्री राम के जीवनचरित्र पर आधारित महाकाव्य रामायण की रचना की थी। ऐतिहासिक तथ्यों के मतानुसार आदिकाव्य श्रीमद वाल्मीकि रामायण जगत का सर्वप्रथम काव्य था।महर्षि वाल्मीकि नें महाकाव्य रामायण की रचना संस्कृत भाषा में की थी।

रामायण, असल में वाल्मीकि ने लिखी थी, जिसमे कुल 24,000 श्लोक और 7 कंदों का समावेश है जिसमे उत्तरा कंदा भी शामिल है। रामायण असल में 480,002 शब्दों के मेल से बनी है, जो तक़रीबन महाभारत के कुल 1/3 भाग के बराबर है।

रामायण हमें एक राजकुमार, अयोध्या के राम की कहानी के बारे में बताती है, जिसमे राम की पत्नी को लंका का राक्षस राजा रावण उठाकर ले जाता है। कहा जाता है की वाल्मीकि ने रामायण 500 BC से 100 BC के दरमियाँ लिखी थी। दुसरे पारंपरिक महाकाव्यों की तरह यह भी प्रक्षेप प्रक्रिया से गुजरा हुआ है, इसीलिए इस महाकाव्य के रचना की सही तारीख बता पाना काफी मुश्किल है।

प्रारंभिक जीवन (Maharishi Valmiki Early Life)

वाल्मीकि का जन्म भ्रिगुगोत्र में अग्नि शर्मा के नाम से एक ब्राह्मण प्रचेता (उर्फ़ सुमाली) के घर हुआ था, किंवदंतीयो के अनुसार एक बार वे महान ऋषि नारद से मिले थे और उनसे उन्होंने उनके कामो के बारे में चर्चा भी की थी। काफी सालो तक तपस्या करने के बाद, उनके लिये 'राम' ही भगवान 'विष्णु' का नाम बना।

इसके बाद उन्होंने एकांत में ध्यान लगाना शुरू किया जिसके चलते उन्हें अग्नि शर्मा का नाम बदलकर वाल्मीकि का नाम भी दिया गया था। और नारद से भी उन्होंने आध्यात्मिक ज्ञान सिखा और उस दशक में भिक्षुओ के प्रमुख भी बने, जिनका सभी सम्मान करते थे।

वाल्मीकि को राम के समकालीन होने का श्रेय भी दिया जाता है। माना जाता है की राम अपने वनवास के समय में वाल्मीकि से मिले थे और उन्होंने उनसे बाते भी की थी। जब राम ने सीता को अपने महल से निकाल दिया था तब वाल्मीकि ने ही उन्हें अपने आश्रम में पनाह दी थी।

इसी आश्रम में श्री राम के दो जुड़वाँ बेटो कुश और लव का भी जन्म हुआ था, जिन्होंने बाद में अश्वामेधयाजना मंडली के समय अयोध्या की दिव्य कहानी भी सुनाई थी, जिसने लोगो को काफी आकर्षित किया था और यह सब सुनने के बाद ही राजा राम ने उनके बारे में पूछा था की वे लोग कौन है? और इसके बाद ही वे वाल्मीकि के आश्रम में सीता और अपने दो बेटो को देखने के लिए गये थे।

बाद में राजा राम ने उन्होंने शाही महल में भी बुलाया था। वहाँ कुश और लव ने भगवान राम की कहानी भी सुनाई और तभी राजा राम को भी यकीन हुआ की वे दोनों जो भी गा रहे है वो पूरी तरह से सच है।

वाल्मीकि नाम कैसे पड़ा? (How was the name Valmiki?)

तप करते समय दीमकों ने इनके ऊपर अपनी बांबी बना ली थी। तपस्या समाप्त होने पर जब ये दीमक की बांबी जिसे 'वाल्मीकि' भी कहते हैं, तोड़कर निकले तो लोग इन्हें वाल्मीकि कहने लगे।

महाकाव्य रामायण लिखने की प्रेरणा (Inspiration to Write Epic Ramayana)

पाप कर्म में लिप्त रत्नाकर को हृदय परवर्तन होने पर नारद जी नें राम नाम जपने की सलाह दी थी। तब रत्नाकर समाधि में बैठ कर राम नाम जप करते करते गलती से मरा-मरा जप करने लगे। इसी कारण उनका देह दुर्बल होता चला गया। उनके शरीर पर चीटीयां रेंगने लगी। यह सब उनके पूर्व समय के पाप कर्मों का भुगतान था। घोर तपस्या के बाद जब उनहोंनें ब्रह्माजी को प्रसन्न किया तब स्वयं ब्रह्मा जी नें वाल्मीकि को रामायण महाकाव्य लिखने की प्रेरणा दी।

महर्षि वाल्मीकि मंदिर (Maharishi Valmiki Temple at Thiruvanmiyur)

चेन्नई के एक क्षेत्र तिरुवंमियुर का नाम उन्ही के नाम साधू वाल्मीकि, थिरु वाल्मीकि ऊर पर ही रखा गया है। इस जगह पर वाल्मीकि का एक मंदिर भी है, माना जाता है की वह मंदिर 1300 साल पुराना है। भारत में वाल्मीकि को श्लोको का जनक भी माना जाता है, कहा जाता है की श्लोक लिखने की शुरुवात उन्ही ने की थी।

कहा जाता है की वाल्मीकि ने रत्नाकर वन में कई वर्षों तक तप किया था, उनके शरीर पर चीटिंयों ने अपना घर भी बना लिया था। ऐसी कठिन परिस्थितियों में भी उन्होंने अपने हौसले को गिरने नहीं दिया। हमें भी उनकी इस सीख से प्रेरणा लेते हुए, कैसी भी विषम परिस्थितियां आएं हमेशा अपनी बुद्धि और विवेक से उसका सामना करना चाहिए। |

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