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Milkha Singh Biography in Hindi | मिल्खा सिंह का जीवन परिचय

Milkha Singh Biography in Hindi | मिलखा सिंह Milkha Singh भारत के सबसे प्रसिद्ध और सम्मानित रनर हैं। इन्होने रोम के 1960 ग्रीष्म ओलंपिक और टोक्यो के 1964 ग्रीष्म ओलंपिक में देश का प्रतिनिधित्व किया था। उनको “उड़न सिख” का उपनाम दिया गया था।

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Milkha Singh Biography in Hindi मिल्खा सिंह का जीवन परिचय

Milkha Singh Biography in Hindi | मिल्खा सिंह का जीवन परिचय

  • पूरा नाम मिल्खा सिंह
  • जन्म 20 नवम्बर 1929
  • जन्मस्थान गोविन्दपुरा, पंजाब
  • पत्नी निर्मल कौर
  • पुत्र जीव
  • पुत्री सोनिया
  • व्यवसाय भारतीय ट्रैक और फील्ड एथलीट
  • नागरिकता भारतीय

भारतीय ट्रैक एथलीट मिल्खा सिंह (Milkha Singh Biography in Hindi)

मिलखा सिंह Milkha Singh भारत के सबसे प्रसिद्ध और सम्मानित रनर हैं। इन्होने रोम के 1960 ग्रीष्म ओलंपिक और टोक्यो के 1964 ग्रीष्म ओलंपिक में देश का प्रतिनिधित्व किया था। उनको "उड़न सिख" का उपनाम दिया गया था। 1960 के रोम ओलंपिक खेलों में उन्होंने पूर्व ओलंपिक कीर्तिमान को नष्ट किया लेकिन पदक से वंचित रह गए। इस दौड़ के दौरान उन्होंने ऐसा राष्ट्रिय कीर्तिमान स्थापित किया जो लगभग 40 साल बाद जाकर टूटा।

प्रारंभिक जीवन और शिक्षा (Milkha Singh Early Life and Education)

मिल्खा सिंह का जन्म 20 नवम्बर 1929 में भारत के पंजाब में एक सिख राठौर परिवार में हुआ था। अपने माँ-बाप की कुल 15 संतानों में वह एक थे। उनके कई भाई-बहन बाल्यकाल में ही गुजर गए थे। भारत के विभाजन के बाद हुए दंगों में मिलखा सिंह ने अपने माँ-बाप और भाई-बहन खो दिया। वे शरणार्थी बन के ट्रेन द्वारा पाकिस्तान से दिल्ली आए।

दिल्ली में वह अपनी शादी शुदा बहन के घर पर कुछ दिन रहे। कुछ समय शरणार्थी शिविरों में रहने के बाद वह दिल्ली के शाहदरा इलाके में एक पुनर्स्थापित बस्ती में भी रहे। ऐसे भयानक हादसे के बाद उनके ह्रदय पर गहरा आघात लगा था। अपने भाई मलखान के कहने पर उन्होंने सेना में भर्ती होने का निर्णय लिया और चौथी कोशिश के बाद 1951 में सेना में भर्ती हो गए।

बचपन में वह घर से स्कूल और स्कूल से घर की 10 किलोमीटर की दूरी दौड़ कर पूरी करते थे और भर्ती के वक़्त क्रॉस-कंट्री रेस में 6ठे स्थान पर आये थे इसलिए सेना ने उन्हें खेलकूद में स्पेशल ट्रेनिंग के लिए चुना था।

शादी और बच्चे (Milkha Singh Marriage)

मिल्खा सिंह ने भारतीय महिला वॉलीबॉल के पूर्व कप्तान निर्मल कौर से 1962 में विवाह किया।इनके तीन बेटियां और एक बेटा है। इनका बेटा जीव मिल्खा सिंह एक मशहूर गोल्फ खिलाडी है।1999 में मिल्खा ने शहीद हवलदार बिक्रम सिंह के 7 वर्षीय पुत्र को गोद लिया था।

एथलीट करियर (Milkha Singh Athletes Career)

सेना में उन्होंने कड़ी मेहनत की और 200 मी और 400 मी में अपने आप को स्थापित किया और कई प्रतियोगिताओं में सफलता हांसिल की। उन्होंने 1956 के मेर्लबोन्न ओलिंपिक खेलों में 200 और 400 मीटर में भारत का प्रतिनिधित्व किया पर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अनुभव न होने के कारण सफल नहीं हो पाए लेकिन 400 मीटर प्रतियोगिता के विजेता चार्ल्स जेंकिंस के साथ हुई मुलाकात ने उन्हें न सिर्फ प्रेरित किया बल्कि ट्रेनिंग के नए तरीकों से अवगत भी कराया।

1958 में कटक में आयोजित राष्ट्रिय खेलों में उन्होंने 200 मी और 400 मी प्रतियोगिता में राष्ट्रिय कीर्तिमान स्थापित किया और एशियन खेलों में भी इन दोनों प्रतियोगिताओं में स्वर्ण पदक हासिल किया। 1958 में उन्हें एक और महत्वपूर्ण सफलता मिली जब उन्होंने ब्रिटिश राष्ट्रमंडल खेलों में 400 मीटर प्रतियोगिता में स्वर्ण पदक हासिल किया।

इस प्रकार वह राष्ट्रमंडल खेलों के व्यक्तिगत स्पर्धा में स्वर्ण पदक जीतने वाले स्वतंत्र भारत के पहले खिलाडी बन गए। इसके बाद उन्होंने 1960 में पाकिस्तान प्रसिद्ध धावक अब्दुल बासित को पाकिस्तान में पिछाडा जिसके बाद जनरल अयूब खान ने उन्हें 'उड़न सिख' कह कर पुकारा।

रोम ओलिंपिक 1960 (Milkha Singh Rome Olympics)

रोम ओलिंपिक खेल शुरू होने से कुछ वर्ष पूर्व से ही मिल्खा अपने खेल जीवन के सर्वश्रेष्ठ फॉर्म में थे और ऐसा माना जा रहा था की इन खेलों में मिल्खा पदक जरूर प्राप्त करेंगे। रोम खेलों से कुछ समय पूर्व मिल्खा ने फ्रांस में 45.8 सेकंड्स का कीर्तिमान भी बनाया था।

400 में दौड़ में मिल्खा सिंह ने पूर्व ओलिंपिक रिकॉर्ड तो जरूर तोड़ा पर 4थे स्थान के साथ पदक से वंचित रह गए। 250 मीटर की दूरी तक दौड़ में सबसे आगे रहने वाले मिल्खा ने एक ऐसी भूल कर दी जिसका पछतावा उन्हें आज भी है।

1962 के जकार्ता में आयोजित एशियन खेलों में मिल्खा ने 400 मीटर और 4 X 400 मीटर रिले दौड़ में स्वर्ण पदक जीता। उन्होंने 1964 के टोक्यो ओलिंपिक खेलों में भाग लिया और उन्हें तीन स्पर्धाओं में भाग लेने के लिए चुना गया पर उन्होंने 4 X 400 मीटर रिले में भाग लिया पर यह टीम फाइनल दौड़ के लिए क्वालीफाई भी नहीं कर पाए।

करियर बाद का जीवन (Milkha Singh Before Life of Career)

1958 के एशियाई खेलों में सफलता के बाद सेना ने मिल्खा को 'जूनियर कमीशंड ऑफिसर' के तौर पर पदोन्नति कर सम्मानित किया और बाद में पंजाब सरकार ने उन्हें राज्य के शिक्षा विभाग में 'खेल निदेशक' के पद पर नियुक्त किया। इसी पद पर मिल्खा 1998 में सेवानिवृत्त हुए।

मिल्खा सिंह ने अपने जीवन में जीते सारे पदकों को राष्ट्र के नाम कर दिया। शुरू में उन्हें जवाहर लाल नेहरु स्टेडियम में रखा गया था पर बाद में उन्हें पटियाला के एक खेल म्यूजियम में स्थानांतरित कर दिया गया। 2012 में उन्होंने रोम ओलिंपिक के 400 मीटर दौड़ में पहने जूते एक चैरिटी की नीलामी में दे दिया।

मिल्खा सिंह पर बनी फिल्म (Bhag Milkha Bhag Film on Milkha Singh)

2013 में मिल्खा ने अपनी बेटी सोनिया संवलका के साथ मिलकर अपनी आत्मकथा 'The Race of My Life' लिखी। इसी पुस्तक से प्रेरित होकर हिंदी फिल्मों के मशहूर निर्देशक राकेश ओम प्रकाश मेहरा ने 'भाग मिल्खा भाग' नामक फिल्म बनायी। इस फिल्म में मिल्खा का किरदार मशहूर अभिनेता फरहान अख्तर ने निभाया।

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