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Sanjay Gandhi Biography in Hindi | संजय गांधी का जीवन परिचय

Sanjay Gandhi Biography in Hindi | संजय गांधी भारत के एक राजनेता थे। वे भारत की प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी के छोटे पुत्र थे। मेनका गांधी उनकी पत्नी हैं और वरुण गांधी उनके पुत्र। भारत में आपातकाल के समय उनकी भूमिका बहुत विवादास्पद रही। अल्पायु में ही एक हेलिकॉप्टर दुर्घटना में उनकी मौत हो गयी।

Sanjay Gandhi Biography in Hindi
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Sanjay Gandhi Biography in Hindi | संजय गांधी का जीवन परिचय

  • नाम संजय गांधी
  • जन्म 14 दिसंबर 1946
  • जन्मस्थान नई दिल्ली, ब्रिटिश भारत
  • पिता फ़िरोज़ गांधी (पूर्व भारतीय राजनीतिज्ञ)
  • माता इदिरा गांधी (पूर्व भारतीय प्रधानमंत्री)
  • विवाह मेनका आनंद
  • राजनीतिक पार्टी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी
  • शिक्षा ऑटोमोटिव इंजीनियरिंग
  • व्यवसाय राजनीतिज्ञ
  • नागरिकता भारतीय

राजनेता संजय गांधी (Sanjay Gandhi biography in Hindi)

Sanjay Gandhi Biography in Hindi | संजय गांधी भारत के एक राजनेता थे। वे भारत की प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी के छोटे पुत्र थे। मेनका गांधी उनकी पत्नी हैं और वरुण गांधी उनके पुत्र। भारत में आपातकाल के समय उनकी भूमिका बहुत विवादास्पद रही। अल्पायु में ही एक हेलिकॉप्टर दुर्घटना में उनकी मौत हो गयी। संजय की विधवा पत्नी मेनका गांधी और उनका बेटा वरुण गांधी बीजेपी के मुख्य राजनेताओ में से एक है।

प्रारंभिक जीवन (Sanjay Gandhi Early Life)

संजय गांधी का जन्म 14 दिसम्बर 1946 को नयी दिल्ली में भूतपूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और फिरोज गांधी के बेटे के रूप में हुआ। संजय अपनी माँ के काफी करीबी थे।

शिक्षा (Sanjay Gandhi Education)

संजय गांधी ने भी देहरादून के उन्हीं दोनों स्कूल से अपनी स्कूली पढाई पूरी की, जहाँ से उनके भाई ने पढ़ाई की थी। वे दोनों स्कूल वेल्हम बॉयज स्कूल और दून स्कूल है। बाद में राहुल गांधी और प्रियंका गांधी जी ने भी इसी स्कूल से पढ़ाई की।

उन्होंने ऑटोमोटिव इंजिनियर को अपना करियर बनाने का निर्णय लिया और इंग्लैंड के क्रेवे में उन्होंने 3 साल तक अप्रेंटिसशिप भी की। स्पोर्ट कार में उन्हें काफी दिलचस्पी थी और साथ ही उन्होंने पायलट का लाइसेंस भी अर्जित कर रखा था।

निजी जिंदगी (Sanjay Gandhi Personal Life)

संजय गांधी का विवाह अपने से 10 साल छोटी मेनका आनंद से अक्टूबर 1974 को नयी दिल्ली में हुआ था। उनका एक बेटा वरुण गांधी भी है।

बाद में उन्होंने खुद की पार्टी संजय विचार मंच शुरू की। मेनका गांधी ने इसके बाद बहुत से अ-कांग्रेसीय दलों को सहायता की और कई सालो तक सरकार में बनी रही। वर्तमान में वह और उनका बेटा वरुण गांधी, बीजेपी के सदस्य है।

राजनीती करियर (Sanjay Gandhi Political Career)

संजय गाँधी का युग भारतीय राजनीति में परिवर्तन का युग था। आज़ादी के बाद देश की सपाट चलती राजनीति में उन्होंने उथल-पुथल मचा दिया और देश पर एकक्षत्र राज करती आ रही कांग्रेस पार्टी को देश की आम जनता का आक्रोश झेलना पड़ा था।

1974 तक संजय के पास राजनीति में करने के लिए कुछ खास नहीं था, परन्तु इसी वर्ष जब देश में सरकार के विरुद्ध एकजुट विपक्ष ने देशव्यापी हड़ताल, विरोध-प्रदर्शन का सिलसिला शुरू किया तो इससे न केवल इंदिरा सरकार को झटका लगा बल्कि देश की अर्थव्यवस्था में भी हिचकोले आने शुरू हो गए। इतना ही नहीं इंदिरा सरकार को एक बड़ा झटका तब लगा, जब 25 जून 1975 को सरकार के काम-काज पर कोर्ट ने एक कड़ी टिप्पणी की और सरकार असहज हो गई।

अधिकारिक रूप से किसी भी पद पर उनकी नियुक्ती नही की गयी थी, लेकिन फिर भी संजय गांधी कैबिनेट मिनिस्टर, उच्च लेवल के सरकारी अफसरों और पुलिस ऑफिसर पर अपना प्रभाव डालने में सक्षम थे। जबकि दुसरे कैबिनेट मिनिस्टर और अधिकारी इसका विरोध कर रहे थे, क्योकि उनके अनुसार संजय गांधी, इंदिरा गांधी के उत्तराधिकारी के रूप में रौब जमा रहे थे।

परिस्थितियों को अपने विरुद्ध जाते देख इंदिरा गाँधी ने आनन-फानन में देश में आपातकाल लगा दिया। राष्ट्रीय सुरक्षा का हवाला देते हुए जल्द ही होनेवाले लोकसभा के चुनाव को टाल दिया गया, राज्यों के गैर-कांग्रेसी सरकार को बर्खास्त कर दिया गया, प्रेस में सेंसरशिप लागू कर दिया गया और जनता को मिलने वाले कई संवैधानिक अधिकारों को निरस्त कर दिया गया। आपातकाल का विरोध करने वाले नेताओं, कलाकारों, बुद्धिजीवियों सहित हजारों लोगों को गिरफ्तार कर या तो उन्हें जेल भेज दिया गया या फिर नज़रबंद कर दिया गया।

आपातकाल का यह दौर युवा संजय गाँधी के लिए राजनीतिक वरदान साबित हुआ। राजनीति में कुछ अलग कर दिखाने के लिए उतावले संजय ने इंदिरा के सलाहकार की भूमिका निभाते-निभाते पूरी सत्ता को अपने कब्जे में कर लिया और पूरे आपातकाल के दौरान अपनी मर्ज़ी चलाते रहे। यह भी कहा जाता है कि आपातकाल के दौरान सरकार द्वारा लिए गए सारे कठोर निर्णय इंदिरा और उनकी कैबिनेट के नहीं वरन संजय गाँधी के थे।

इस दौरान इंदिरा गाँधी ने जहाँ देश के आर्थिक विकास के लिए 20 सूत्री कार्यक्रम की घोषणा की थी वहीँ संजय ने इससे अलग स्वंय द्वारा प्रतिपादित 5 सूत्री कार्यक्रम को जोर-शोर से पूरे देश में लागू किया था। ये कार्यक्रम थे-शिक्षा, परिवार नियोजन, वृक्षारोपण, जातिवाद के बंधन को तोड़ना और दहेज़ प्रथा का खात्मा। हालाँकि बाद के दिनों में संजय के कार्यक्रम को इंदिरा के 20 सूत्री कार्यक्रम के साथ सम्बद्ध कर दिया गया और इसे 25 सूत्री कार्यक्रम के तौर पर लागू किया गया।

मार्च 1977 में आनी-बानी का फायदा उठाते हुए संजय गांधी भी भारतीय पार्लिमेंट के चुनाव में पहली बार खड़े हुए। लेकिन इस चुनाव में केवल संजय को ही बुरी हार का सामना नही करना पड़ा बल्कि अमेठी में इंदिरा की कांग्रेस पार्टी को भी बुरी हार का सामना करना पड़ा था। जबकि अगले चुनाव ने जनवरी 1980 को संजय ने अमेठी से कांग्रेस को जीता दिया था। राजनीति के जानकारों का मानना है कि कांग्रेस की इस वापसी में संजय गाँधी का बहुत बड़ा योगदान था।

अपनी मृत्यु से केवल एक महीने पहले ही, मई 1980 में उनकी नियुक्ती कांग्रेस पार्टी के जनरल सेक्रेटरी के पद पर की गयी थी। |

विवाद (Sanjay Gandhi Controversy)

1971 में, इंदिरा गांधी की अगुवाई वाली सरकार ने एक स्वदेशी कार का निर्माण करने का प्रस्ताव रखा, जिसे मध्यवर्गीय भारतीय खरीद सकें। जिसके चलते इसका नाम पीपल्स कार रखा गया और उसी वर्ष जून में मारुति लिमिटेड नामक एक मोटर वाहन कंपनी को कंपनी अधिनियम के तहत शामिल किया गया।

जिसमें संजय गांधी को फर्म के प्रबंध निदेशक के रूप में नियुक्त किया गया, जिसकी व्यापक रूप से आलोचना की गई, क्योंकि उन्हें इस क्षेत्र में कोई पूर्व अनुभव नहीं था। आपातकाल से पहले और उसके बाद संजय गांधी इंदिरा गांधी के सलाहकार के रूप में नियुक्त किए गए। पुराने वफादारों के दलबदल करने से संजय गांधी का इंदिरा गांधी और उनकी सरकार पर प्रभाव एकदम बढ़ गया था, हालांकि वह ऐसे कोई भी आधिकारिक और चयनित पद पर कार्यरत नहीं थे।

इसके बाद लोगो की सोच भी संजय गांधी के खिलाफ ही जाने लगी और बहुत से लोग उनपर भ्रष्टाचार का आरोप भी लगाने लगे थे। इसके बाद संजय ने किसी भी तरह के सहयोग के लिए वॉक्सवैगन AG से भी बात की, क्योकि कुछ हद तक उन्हें भरोसा था की वॉक्सवैगन उनके इस प्रस्ताव में उनकी सहायता जरुर करेगी।

उस समय संजय गांधी का अपनी माँ इंदिरा गांधी पर पूर्ण नियन्त्रण था। इसके चलते उन्होंने पार्टी में अनेक युवा लोगों को शामिल किया, जिसमें गुंडा-माफिया जैसे लोग शामिल थे, जो लोगों को डराने-धमकाने का काम करते थे, जिसके चलते उन्हें कड़ी आलोचनाओं का सामना करना पड़ा।

आपातकाल के दौरान देश में लागू किए गए कठोर कानूनों में जो सबसे विवादित कानून रहा, वह था परिवार नियोजन कार्यक्रम को सख्ती से लागू करने के लिए चलाया गया नसबंदी का अभियान। देश की बढ़ती जनसंख्या को रोकने के लिए संजय गाँधी ने इसे कड़ाई से लागू करने का आदेश जारी किया था।

इसके तहत नसबंदी को अनिवार्य कर दिया गया और साफ़-सफाई के लिए शहरी इलाकों से झुग्गियों को हटाने का कार्यक्रम चलाया गया, परन्तु संजय की यह पहल आम जनता के लिए एक त्रासदी साबित हुई। कार्यक्रम को कड़ाई से लागू कराने के चक्कर में 'संजय गाँधी ब्रिगेड' के सदस्यों ने अति कर दी थी।

संजय को खुश करने के लिए यूथ कांग्रेस के नेता पुलिस के सहयोग से लोगों को जबरन पकड़कर नसबंदी कैंप तक ले जाते थे और उन्हें नसबंदी कराने के लिए मजबूर करते थे। माना जाता है कि उस दौरान लगभग 4 लाख लोगों की जबरन नसबंदी की गई थी। सरकार की इस जोर-जबरदस्ती से आम जनता में भारी असंतोष पैदा हुआ और देशभर में इस कार्यक्रम का विरोध शुरू हो गया।

मृत्यु (Sanjay Gandhi Death)

संजय गाँधी हवाई जहाज उड़ाने के शौक़ीन थे। 23 जून 1980 को वह दिल्ली के सफदरजंग एयरपोर्ट पर दिल्ली फ्लाइंग क्लब के नए जहाज को उड़ा रहे थे। जहाज को हवा में कलाबाजी दिखाने के दौरान वे नियंत्रण खो बैठे और जहाज दुर्घटनाग्रस्त हो गया। इस दुर्घटना में वह अकाल मृत्यु के शिकार हो गए।

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