Janskati Samachar
जीवनी

V.V.Giri Biography in Hindi | पूर्व राष्ट्रपति वी.वी.गिरी की जीवनी

V.V.Giri Biography in Hindi | भारतीय उद्योगों और अन्य क्षेत्रों में आज श्रमिकों के अधिकारों की जो बढ़ी हुई ताकत दिखाई देती है उसका श्रेय करिश्माई कार्यकर्ता और सामाज सुधारक वी.वी. गिरि को जाता है. हमें उनको धन्यवाद देना चाहिए कि उनके संघर्ष और नेतृत्व में श्रम-शक्ति ने एक नई दिशा और ताकत पायी, जिसके परिणामश्वरूप श्रमिकों के अधिकारों को आज कुचला नहीं जा सकता है.

V.V.Giri Biography in Hindi | पूर्व राष्ट्रपति वी.वी.गिरी की जीवनी
X

 V.V.Giri Biography in Hindi | पूर्व राष्ट्रपति वी.वी.गिरी की जीवनी

Biography of V V Giri, Know interesting facts about former President of India, #BharatRatna

  • पूरा नाम वराहगिरी वेंकट गिरी
  • जन्म 10 अगस्त 1894
  • जन्म स्थान ब्रह्मपुर, ओड़िशा
  • माता सुभ्द्राम्मा
  • पिता वी.वी. जोगिआह पंतुलु
  • पत्नी सरस्वती बाई

वी.वी. गिरी की बायोग्राफी (V V Giri Biography In Hindi)

भारतीय उद्योगों और अन्य क्षेत्रों में आज श्रमिकों के अधिकारों की जो बढ़ी हुई ताकत दिखाई देती है उसका श्रेय करिश्माई कार्यकर्ता और सामाज सुधारक वी.वी. गिरि को जाता है. हमें उनको धन्यवाद देना चाहिए कि उनके संघर्ष और नेतृत्व में श्रम-शक्ति ने एक नई दिशा और ताकत पायी, जिसके परिणामश्वरूप श्रमिकों के अधिकारों को आज कुचला नहीं जा सकता है.

वराहगिरि वेंकट गिरी को पूरी दुनिया में वी वी गिरी V.V Giri के रूप में जानती है। वह भारत के चौथे राष्ट्रपति बने थे। 'भारत रत्न' से सम्मानित वी. वी. गिरि भारत के राष्ट्रपति पद के आलावा उत्तर प्रदेश, केरल और कर्णाटक के राज्यपाल भी रहे। राष्ट्रपति के रूप में, गिरी ने राष्ट्रपति के कार्यालय को प्रधानमंत्री के अधीन कर दिया था और उस समय वे "रबर स्टेम्प प्रेसिडेंट" के रूप में पहचाने जाने लगे थे।

वी.वी. गिरी का प्रारंभिक जीवन

गिरी का जन्म 10 अगस्त 1894 को ओडिशा के गंजम जिले के बेरहामपुर में एक तेलगु ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके पिता वी.वी. जोग्या पंतुलु एक सफल वकील और भारतीय राष्ट्रिय कांग्रेस के प्रसिद्ध राजनीतिक कार्यकर्ता थे। गिरी की माता सुभाद्रम्मा असहकार और असहयोग आंदोलन के समय में बेरहामपुर की एक सक्रीय स्वतंत्रता सेनानी थी। लेकिन आंदोलन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेने की वजह से उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया था। गिरी ने सरस्वती बाई से शादी कर ली थी और उनके कुल 14 बच्चे थे।

वी.वी. गिरी की शिक्षा

गिरी की आरंभिक शिक्षा कालिकोट तथा बरहमपुर में हुई। इसके बाद उन्होंने मद्रास में सीनियर कैंब्रिज का इम्तिहान दिया और 1913 में आगे की पढ़ाई के लिए इंग्लैंड चले गए। वह अगस्त 1913 में आयरलैंड के राष्ट्रीय विश्वविद्यालय में नामजद हुए तथा अक्टूबर 1913 कानून की पढ़ाई करने हेतु चयनित हुए। उस समय वहां अन्य विषयों को भी पढ़ाया जाता था। उन्होंने साहित्य, अर्थशास्त्र, राजनीति के विज्ञान, संवैधानिक कानून और अंतर्राष्ट्रीय कानून जैसे विषय स्नातक स्तर की परीक्षा हेतु लिए।

गिरी स्वतंत्र विचार वाले उदार व्यक्ति थे और रुढ़िवादी विचारों से दूर रहते थे। लेकिन विदेश में रहते हुए उनके विचारों में मौलिक परिवर्तन हुआ। वहां जाने के बाद वह एमोन-डी-वालेरा के संपर्क में आए जो ज्वलंत विचारों वाले राष्ट्रवादी थे और आयरलैंड की स्वतंत्रता के लिए संघर्ष कर रहे थे।

मजदूर यूनियन से जुड़े

गिरी ने नागपुर एवं बंगाल रेलवे में मजदूर यूनियनो का गठन किया जो अपने विशाल रूप में अखिल भारतीय कर्मचारी संघ कहलाया। सरकार ने रेलवे मजदूरों की छंटनी की। गिरी इस अन्याय को कैसे सहन कर सकते थे। पहले तो उन्होंने सरकार को विन्रमता से समझाया लेकिन कोई नतीजा नही निकला तो हडताल घोषित कर दी।

उनका यह आंदोलन सफल रहा और ब्रिटिश इंडियन गवर्नमेंट और रेलवे मैनेजमेंट कंपनी को मजदूरो की साड़ी शर्तो को मानना पड़ा था और यह अभियान भारत के इतिहास में एक माइलस्टोन बनकर रह गया। अंतत: निकाले गये कर्मचारियों को वापस लेना पड़ा। इस घटना ने गिरी को चर्चित हस्ती बना दिया।

राजनीतिक करियर (V V Giri Political Career)

विद्यार्थी जीवन में ही वी वी गिरी की मुलाकात महात्मा गांधी से लंदन में हुई थी। इन दिनों वह अपना ग्रीष्मकालीन अवकाश गुजारने के लिए लंदन आए हुए थे। वहाँ गाँधी जी से वी. वी. गिरी के अनेक मुलाक़ातें हुई। उन दिनों सुभाष चंद्र बोस सहित कई भारतीयों का मानना था कि अंग्रेजों का साथ किसी भी कार्य में नहीं देना चाहिए।

लेकिन गांधीजी ने इंग्लैंड में रह रहे भारतीयों से अपील की कि वे रेड क्रॉस सोसाइटी के सदस्य बने। इस से प्रेरित होकर वी वी गिरी ने रेड क्रोस को सप्ताह में एक दिन अपना सेवाएं देने आरंभ कर दिया। उन्होंने आयरलैंड में भारतीय विद्यार्थी संघ की स्थापना कर दी फिर वो आयरलैंड में रहने तक उसके सेक्रेटरी बने रहें।

प्रथम विश्वयुद्ध आरंभ होने के कारण वी वी गिरी 10 सितंबर 1916 को भारत लौट आए। 22 वर्ष की कम उम्र में उन्होंने बलरामपुर में वकालत आरंभ कर दिया और राष्ट्रीय गतिविधियों में भाग लेने लगे। 1916 में वी वी गिरी ने कांग्रेस की सदस्यता ले ली और स्वदेशी शासन का आंदोलन से जुड़ गए जो श्रीमती एनी बेसेंट द्वारा चलाया जा रहा था।

इसके बाद 1920 में महात्मा गांधी बुलाये गये असहकार आंदोलन में हिस्सा लेने के लिए गिरी ने अपना वकिली का करियर दाव पर लगाया था। 1922 में मदिरा बेचने वालो के खिलाफ आंदोलन करने की वजह से उन्हें पहली बार गिरफ्तार किया गया था। 1922 तक वी.वी. गिरि श्रमिकों के हित में काम करने वाले एन.एम. जोशी के एक विश्वसनीय सहयोगी बन गए थे और अपने गुरु के समर्थन से उन्होंने मजदूर वर्ग की भलाई के लिए कार्य कर रहे संगठनों के साथ खुद को जोड़ा।

ट्रेड यूनियन आंदोलन के लिए अपनी प्रतिबद्धता और मेहनत के कारण वे 'आल इंडिया रेलवेमेन्स फेडरेशन' के अध्यक्ष निर्वाचित किये गए। उन्होंने राष्ट्रवादी आंदोलन की दिशा में विभिन्न ट्रेड यूनियनों में अपनी पहुंच के कारण महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

1931-1932 में एक प्रतिनिधि के रूप में उन्होंने लंदन में आयोजित द्वितीय गोलमेज सम्मेलन में भाग लिया। वे 1934 में 'इम्पीरियल लेजिस्लेटिव असेंबली' के सदस्य के रूप में चुने गए। वे कांग्रेस के उम्मीदवार के रूप में वर्ष 1936 के आम चुनाव में खड़े हुए। उन्होंने चुनाव जीता और अगले वर्ष मद्रास प्रेसीडेंसी में उन्हें श्रम और उद्योग मंत्री बना दिया।

इसके बाद 1938 में भारतीय राष्ट्रिय कांग्रेस के राष्ट्रिय निति आयोग में उनकी नियुक्ती गवर्नर के पद पर की गयी थी। 1939 में कांग्रेस के सभी मिनिस्टरो ने द्वितीय विश्व युद्ध में भारत को बचाने के लिए रिजाइन कर दिया। और फिर जब गिरी दोबारा मजदुर आंदोलन करने लगे तो ब्रिटिश अधिकारियो ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया था और इसके बाद मार्च 1941 तक पुरे 15 महीनो तक उन्हें जेल में ही रहना पड़ा था।

जब ब्रिटिश शासन में कांग्रेस सरकार ने वर्ष 1942 में इस्तीफा दे दिया, तो वी.वी. गिरी 'भारत छोड़ो आंदोलन' में भाग लेने के लिए श्रमिक आंदोलन में लौट आए। उन्हें गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया। इसके बाद वर्ष 1946 के आम चुनाव के बाद वे श्रम मंत्री बनाए गए। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का हिस्सा बन वह पूर्ण रूप से स्वतंत्रता के लिए सक्रिय हो गए थे।

भारत की स्वतंत्रता के बाद वी.वी. गिरी को उच्चायुक्त के रूप में श्रीलंका भेजा गया था। वहाँ से अपना कार्यकाल पूरा करने के बाद वे भारत लौट आए और पहली लोकसभा के लिए वर्ष 1952 में चुने गए तथा वर्ष 1957 तक कार्य किया। इस दौरान गिरी को केंद्रीय मंत्रिमंडल का सदस्य बनाया गया और वे भारत के श्रम मंत्री बने।

बाद में उन्हें प्रतिष्ठित शिक्षाविदों के समूह का नेतृत्व करने, श्रम एवं औद्योगों से संबंधित मामलों के अध्ययन और प्रचार-प्रसार को बढ़ावा देने का कार्य सौंपा गया। उनके प्रयासों के फलस्वरूप वर्ष 1957 में 'द इंडियन सोसाइटी ऑफ लेबर इकोनॉमिक्स' की स्थापना की गयी।

भारत के राष्ट्रपति बने (V V Giri As a President of India)

24 अगस्त 1969 को गिरी भारत के चौथे राष्ट्रपति बने और 24 अगस्त 1974 तक वे भारत के राष्ट्रपति के पद पर कार्यरत थे। चुनाव में गिरी की नियुक्ती राष्ट्रपति के पद पर की गयी थी लेकिन वे केवल एक्टिंग प्रेसिडेंट का ही काम कर रहे थे और वे एकमात्र ऐसे राष्ट्रपति थे जिनकी नियुक्ती एक स्वतंत्र उम्मेदवार के रूप में की गयी थी। राष्ट्रपति के रूप में उन्होंने उस समय में भारत की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के निर्णयों को भी सुना था।

गिरी को भारत के उन राष्ट्रपतियों में गिना जाता है जिन्होंने अपने अधिकारों को प्रधानमंत्री के अधीन कर दिया था और वे स्वयं को प्रधानमंत्री का राष्ट्रपति कहते थे। 1974 में जब गिरी का कार्यकाल समाप्त हुआ तब प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने उनकी पुनर्नियुक्ति करने की बजाए फखरुद्दीन अली अहमद को 1974 में राष्ट्रपति पद के लिए चुना।

भारत रत्न से सन्मान

गिरी को भारत के सर्वोच्च अवार्ड "भारत रत्न" से सम्मानित किया गया था।

मृत्यु (V V Giri Death)

23 जून 1980 को हार्ट अटैक की वजह से 85 वर्ष की आयु में गिरी की मृत्यु हुई थी। मृत्यु के अगले दिन पुरे राज्य ने उन्हें अंतिम विदाई दी थी और भारत सरकार ने उनके सम्मान में सुबह का मौन भी घोषित किया था। इसके साथ ही उन्हें सम्मान देते हुए भारत सरकार ने दो दिन की राज्य सभा भी स्थगित कर दी थी। | V V Giri Biography In Hindi

Next Story
Share it