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समाजवाद का चलते-फिरते स्कूल थे रवि राय – प्रो. (डॉ.) योगेन्द्र यादव

समाजवाद का चलते-फिरते स्कूल थे रवि राय – प्रो. (डॉ.) योगेन्द्र यादव
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(जनता की आवाज की ओर से स्व. रवि राय को श्रद्धापूर्वक श्रद्धांजलि देता यह आलेख )

समाजवादी चिंतक होने के नाते कई विभिन्न विषयों पर लिखे हुए रवि राय के लेखों को भी पढ़ा, उस पर गहन चिंतन किया। जब सोचता था, तो लगता था कि यह ऐसा राजीतिज्ञ है, जिसने अपने जीवन, व्यवहार, कार्य से आजीवन हमें समाजवाद का पाठ पढ़ाते रहे। मैं उन्हे समाजवाद की चलती फिरती पाठशाला का दिया करता था। पर आज जब वे इस दुनिया को छोड़ कर दूसरे लोक चले गए, तो अपने कहे इस कथन पर मैं दृढ़ हो गया। आइये उस पाठशाला के नींव की इंटे गिनने का काम करते हैं -

समाजवादी नेता रवि राय का जन्म 26 नवम्बर, 1926 को अत्यंत पिछड़े राज्य उड़ीसा के पुरी जिले के भानगढ़ गांव में हुआ था। उनकी प्रारम्भिक शिक्षा अपने गाँव मे ही हुई। उच्च शिक्षा रावेनशॉ कॉलेज, कटक मे हुई। यहीं से उन्होने इतिहास में स्नातक की उपाधि प्राप्त की । बाद में कटक के मधुसूदन लॉ कॉलेज में कानून की पढ़ाई पूरी की। राजनीतिक क्षेत्र मे उनकी रुचि कालेज टाइम से ही थी। 1948-49 में रावेनशॉ कॉलेज मे छात्र संघ के अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ा और जीते । इसके बाद 1949-50 में मधुसूदन लॉ कॉलेज मे छात्र संघ का चुनाव शुरू करवाया और प्रथम अध्यक्ष के रूप मे छात्रों ने इन्हे चुना । छात्र राजनीति के साथ-साथ देश को गुलामी से मुक्त कराने मे भी इन्होने प्रत्यक्ष रूप से भाग लिया। जिसकी वजह से ही ये छात्रों मे काफी लोकप्रिय थे । इन्होने कालेज परिसर मे तिरंगा फहराने की मांग की, जब वह मांग नहीं मानी गई, तो जबर्दस्त संघर्ष का ऐलान कर दिया। जिसकी वजह से कालेज की बिल्डिंग पर राष्ट्रीय ध्वज फहराने का भी इन्हे गौरव प्राप्त हुआ।

समाजवादी दर्शन के प्रति इनका कालेज जीवन से ही झुकाव रहा। इसी कारण 1948 मे इन्होने सोशलिस्ट पार्टी के सदस्य बने, और निष्ठा पूर्वक उसके हर एक कार्यक्रमों मे भाग लेने लगे। 1953 – 54 मे ये भारतीय युवक सभा के संयुक्त चुने गए। 1956 मे जब डॉ. राम मनोहर लोहिया ने सोशलिस्ट पार्टी की उड़ीसा मे इकाई गठित की, तो इनकी सेवाओं के कारण इन्हे राष्ट्रीय कार्यकारिणी का सदस्य बनाया । 1960 मे इन्हे राष्ट्रीय महासचिव भी बनाया गया । 1967 मे पार्टी ने इन्हे पूरी लोकसभा से टिकट दिया और ये जीत कर सांसद बने । इसके बाद 1974 मे उड़ीसा राज्य से राज्य सभा सदस्य नामित हुए । 1977 मे फिर लोकसभा का चुनाव लड़े और सांसद बने। 1977 मे जब मोरारजी के नेतृत्व मे सरकार बनी, तो उन्होने रवि राय को स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री बनाया । इस दौरान आपके ऊपर संगठन की भी ज़िम्मेदारी रही। आप संगठन मे राष्ट्रीय महासचिव बने और अपने दोनों दायित्वों को बखूबी निभाया ।

नौवीं लोकसभा मे आप लोकपड़ा से चुनाव लड़े और जीते । इसी लोकसभा मे जब त्रिशंकु सरकार बनी तो आपको लोकसभा का स्पीकर चुना गया । लोकसभा को दिये गए वचन के मुताबिक आप जब तक इस पद पर रहे, तब तक दलगत राजनीति से ऊपर उठ कर काम किया । आपकी निष्पक्षता की कसौटी पर तब कसे गए। जब 6 नवंबर, 1990 को जनता दल का विभाजन हो गया और 58 सांसदो ने अपने को जनता दल एस के नाम से पार्टी बना कर अलग हो गए। बिना किसी का पक्षपात किए आपने सारी जाँचे पूरी की और ऐसा निर्णय दिया, जो संविधान के अनुरूप था।

अध्यक्ष रहते हुए आपने लोकहित के मुद्दों को तरजीह दी। इसके लिए शून्यकाल के अंतर्गत उठाए जाने वाले मुद्दों के लिए कुछ व्यवस्थाएं दी। ताकि सदन के इस समय का बेहतर उपयोग किया जा सके । विश्व के देशों के बीच बढ़ती हुई जटिलताओं के मद्देनज़र विभिन्न विषयों पर आधारित समितियों का गठन किया, ताकि प्रशासनिक कार्य-निष्पादन की गहन व लगातार जांच-पड़ताल हो सके। कृषि, पर्यावरण और वन तथा विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के गठन की सिफारिश की। जिससे इन क्षेत्रों मे उल्लेखनीय और जमीनी समस्याओं का निस्तारण हो सके।

सार्वजनिक वितरण व्यवस्था के माध्यम से खाद्य पदार्थों की उपलब्धता, पीने के पानी की सुविधा, आवास, स्वास्थ्य सुविधाएं, जोत जमीन,कृषि संबंधी आयात, रोजगार, कुटीर एवं लघु उद्योगों का विकास, प्राथमिक शिक्षा, शोषण के विरूद्ध संरक्षण तथा गरीब एवं कमजोर वर्गों के उत्पीड़न आदि जैसे आम आदमी को प्रभावित करने वाले मामलों को अधिक से अधिक उठाए जाने के अवसर प्रदान किया। इसके अलावा साप्रदायिक दंगों, महंगाई, योजना और विकास, राष्ट्र सुरक्षा को सुदृढ़ करने आदि जैसे मामलों को भी तरजीह दी। एक ही दिन मे तत्कालीन प्रधानमंत्री के निवेदन पर बहस करवाई। विश्वास मत अस्वीकृत होने के कारण उनकी सरकार गिर गई । संसद की कार्रवाई टीवी पर दिखाने की शुरुआत भी आपके कार्यकाल की बड़ी उपलब्धि है। इसके पहले लोकसभा या राज्यसभा मे चैनल वालों का प्रवेश प्रतिबंधित था। 20 नवंबर 1989 का वह दिन आज भी मीडिया हल्कों मे याद किया जाता है। इसके अलावा कई संसदीय समितियों के सदस्य बन कर आप विदेश भी गए, उन कार्यक्रमों मे भाग लिया।

देश की आजादी मे महत्त्वपूर्ण योगदान देने वाले डॉ. राम मनोहर लोहिया, डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी, पंडित नीलकंठ दास, पनमपिल्ली गोविंद मेनन, भूपेश गुप्त, डॉ. राजेन्द्र प्रसाद, शेख मुहम्मद अब्दुल्ला, डॉ. बी.आर. अम्बेडकर, डॉ. सी.डी. देशमुख, जयसुख लाल हाथी,वी.के. कृष्णा मेनन, एम. अनंतस्यनम आयंगर, एस.एम. जोशी, डॉ. लंका सुंदरम्, राजकुमारी अमृत कौर तथा पंडित मुकुट बिहारी लाल भार्गव आदि के आपके प्रयासों से ही मोनोग्राफ निकाले गए।

इसके अलावा आप 1974 में केन्द्रीय रेशम बोर्ड के सदस्य, 1977-78 के दौरान प्रेस काउंसिल के चेयरमैन, 1975 में वे लोक लेखा समिति के सदस्य, 1977-78 के दौरान लोकपाल विधेयक पर बनी संयुक्त प्रवर समिति के सदस्य, लोहिया अकादमी तथा ग्राम विकास फाउंडेशन के अध्यक्ष भी रहे।

आपने लोगों के इस भ्रम का निवारण किया कि समाजवाद सिर्फ बौद्धिक जुगाली का मध्यम ही नही है, अपितु इसे व्यावहारिक जीवन मे हूबहू उतारा जा सकता है।

आप मानते थे कि शोषित वर्ग की दशा को सुधारने के लिए समाजवाद बहुत ही प्रभावशाली साधन है। इसी कारण आपने अध्ययन केन्द्र तथा युवा क्लब शुरू किए, ताकि समाजवादी पद्धति के आधार पर एक सुदृढ़ तथा व्यापक विचरवान युवाओं का निर्माण किया जा सके । आप पर गांधीजी के रचनात्मक कार्यों एवं उद्दात्त जीवन का भी व्यापक प्रभाव था। इसी कारण आप नियमित रूप से पत्र – पत्रिकाओं मे भी लिखते रहते थे। जिसको पढ़ कर समाजवादी युवा किसी भी विषय पर बहस कर सकें।

(नोट : यह मौलिक लेख हैं, लेखक या जनता की अनुमति के बिना इसका प्रकाशन आपको कानूनी पचड़े मे डाल सकता है। )

प्रो. (डॉ.) योगेन्द्र यादव

विश्लेषक, भाषाविद, वरिष्ठ गांधीवादी – समाजवादी चिंतक व पत्रकार

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