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आनंद मोहन सिंह जीवन परिचय | Anand Mohan Singh Biography in Hindi

आनंद मोहन सिंह जीवन परिचय | Anand Mohan Singh Biography in Hindi
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आनंद मोहन सिंह जीवन परिचय | Anand Mohan Singh Biography in Hindi

नाम : आनंद मोहन सिंह

जनम तिथि : 28 जनवरी 1954 आयु 66 वर्षे

स्थान : सहरसा

पत्नी : लवली आनंद

संतान : चेतन आनंद, सूरभि आनंद, अंशूमान आनंद

व्यावसाय : राजनेता, कवि, लेखक

प्रारंभिक जिवनी :

आनंद मोहन सिंह का जन्म 28 जनवरी 1954 को बिहार के सहरसा जिेले के पचगछिया गाँव मे हुआ था | वे भारतीय स्वतंत्रता सेनानी राम बहादूर सिंग के पोते है | उनका राजनितिमे पश्चिय जयप्रकाश नारायण के सम्पूर्ण क्रांति आंदोलन से जुडने के माघ्याम से हुआ | जिससे उन्हें 1964 मे कॉलेज छोडना पडा | उनकी शादी लवली आनंद से हुई थी | और उन्हें तीन बच्चे थे उनके नाम चेतन आनंद, सुरभि आनंद और अंशूमन आनंद यह है |

सिंह का दावा है कि उन्होंने अपने करियर की शुरुआत 17 साल की उम्र मे की थी | और यह गरीब लोंगों के इलाज के जवाब मे था, जिसे वे अपने मूलराजया बिहार मे राजनितिक अपराधियों के रुप मे वर्णित करते है | बिहार की राजनिति कई वर्षो से जातिगत विभाजन से प्रभावित है | और सिंह को रा्जय मे राजपूत समुदाय के नेता के रुप मे चित्रित किया गया है | सत्ता मे परिवर्तन, विशेष रुप से 1990 के बाद से राजपूतों जो परंपरागत रुप से एक शासक वर्ग है , ने अधीनस्था स्थिति मे कमी कर दी है |

कार्य :

आनंद मोहन सिंह एक राजनेता एक लेखक कवी भी है और अबदलबदलू बिहार पीपुल्सा पार्टी बीपीपी के संस्थापक थे | सिंह ने अपने तरीकेां का कोई रहस्या नही बनाया है | जो कम से कम 1978 से जाँच के अधीन है | यह उस समय के आसपास था, जब उन्होंने भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई के खिलाफ काले झंडे लहराते हुए विरोध किया था | उन्होंने समाजवादी क्रांति सेना की स्थापना की जो निम्ना जातियों के उत्थान का मुकाबला करने वाले बिहारी सिंगठनों मे से एक थी | उन्हें एक डाकू के रुप मे वर्गीकृत किया गया था | और उनकी गिरफतारी के लिए समय समय पर पूरस्कार दिए गए थे |

सिंह ने 1983 मे तीन महिने की जेल की सजा काट ली थी, लेकिन 1990 मे जनता दल जद पार्टी के प्रतिनिधी के रुप मे महिषी निर्वाचन क्षेत्र से बिहार विधानसभा के लिए चून गए | उन्होंने अपनी अपराधिक गतिविधीयों को जारी रखा जबकी 1990 के दशक मे विधानसभा एमएलए के सदस्या, ने एक कुख्यात सांप्रदायिक गिरोह का नेतृत्वा किया | जिसे हिंदूस्तान टाइम्सा ने निजी सेना के रुप मे वर्णित किया |

जब मंडल आयोग के समर्थन मे जेडी खूद को जोडते हुए दिखाई दिए | जिसने आरक्षण प्रणाली को और विस्तार देने का प्रस्ताव रखा, तो सिंह ने अलग होने का फैसला किया | 1993 मे उन्होंने बीपीपी की स्थापना की और 1995 के रा्जय विधानसभा चुनावों मे व्याक्तिगत रुप से चुनाव लडा और हार गए | बीपीपी बाद मे समता पार्टी मे शामिल हो गया, जिसके लिए वह 1996 के आम चुनावों मे लोकसभा के उम्मीदवार के रुप मे शेहर सीट पर सफलतापूर्वक खडे हूए | उन चुनावों मे उनकी सफलता अभियान के दौरान जेल मे रहने के बावजूद आई | उन्हें 1997 के आम चुनाव मे राष्ट्रीय जनता पार्टी व्दारा समर्थित राष्ट्रीय जनता पार्टी के उम्मीदवार के रुप मे निर्वाचन क्षेत्र से फिर से चुना गया |

1999 तक सिंह ने लालू यादव के रा्जय से भारतीय जनता पार्टी के बीपीपी का समर्थन हासिल कर लिया | भाजपा उन्हें और बिहार के कई अन्या अपराधिक नेताओं को बर्खास्ता कर रही थी क्योंकी उन्होंने अटल बिहारी वाजपेयी की राष्ट्रीय सरकार के लीए समर्थन मागा था| सिंह 1999 के आम चुनावों मे भाजपा के अनवारुल हक से अपनी शेहर सीट हार गए | इसके बाद, उन्होंने बीपीपी को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस आईएनसी मे विलय कर लिया | और उम्मीद जताई कि वह फिर से शेहर मे चुनाव के लिए खडे होंगे हालांकि आईएनसी के पास उनके लिए अन्या प्रस्ताव थे |

सिंह पर उनके खिलाफ कई बार कई तरह के आरोप लगे है, जिनमे से कई तो हटा दिए गए या बरी हो गए | वह उनकी पत्नी लवली आनंद सहित छह अन्या लोगों को 1994 मे गोपालगंज के एक दलित जिला मिस्ट्रेट जी कृष्णैया की हत्या के संबंध मे आरोपी बनाया गया था | जिन्हें अंतिम संस्कार के लिए मुजफरपूर के पास एक प्रमूख राजमार्ग पर रखा गया था | बीपीपी सदस्या और गैंगस्टार, छोटन शुक्ला को 2007 मे पटना उच्चा न्यायालय ने अपराध को समाप्ता करने के लिए उसे मौत की सजा सुनाई|

2008 मे कठोर आजीवन कारावास की सजा कम कर दी गई थी , जब साक्ष्या के अभाव मे छह अन्या आरोपियों को भी बरी कर दिया गया था | यह कमी इसलिए थी क्योंकि सिंह के वास्ताविक हमलावार होने का कोई सबूत नही था | 2012 मे सिंह कम सजा के खिलाफ भारत के सर्वोच्चा न्यायालय मे अपनी अपील मे विफल रहे |

2007 मे मूल सजा के समय सिंह स्वातंत्रता के बाद से पहले भारतीय राजनीतिज्ञ थै | जिन्हें मृत्यूदंड दिया गया था | उस सजा के तुरंत बाद, पटना के बेडर जेल से भागलपूर मे स्थानांतरित होने के बाद सिंह ने सुविधाओं के विरोध मे भूख हडताल की और अखलाफ अहमद और अरुण कुमार से अलग हो गए, जिन्हें उसी मामले मे मृत्यूदंड मिला था | जेल प्रशासन बेपरवाह था, यह देखते हुए की नियमों ने मौत की सजा देने वालों को फर्श पर सोना चाहिए और केवल साधारण भोजन की अनुमति देनी चाहिए |

पूस्तके :

उन्होंने कैद रहते हुए दो कविताओं की कविताएँ लिखी है

1) कैद मेई आजाद कलाम कलम सलाखों के पिछे 2011

2) स्वाधीन अभिवाणी 2014

3) 2015 मे केंद्रीय माध्यामिक शिक्षा बोर्ड सीबीएसई ने दशरथ मांझी के जीवन और संघर्ष पर उनकी लधुकहानी को आठवी कक्षा के पाठयक्रम मे जोडा |

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