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एडीआर सर्वे रिपोर्ट: शहरी मतदाताओं का बदलता रुझान दे सकता है बीजेपी को बड़ा टेंशन

एडीआर सर्वे रिपोर्ट: शहरी मतदाताओं का बदलता रुझान दे सकता है बीजेपी को बड़ा टेंशन
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नई दिल्ली। शहरी मतदाताओं का तेजी से बदलता रुझान बीजेपी के लिए टेंशन देने वाला है। 2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान शहरी इलाको में बाजी मारने वाली बीजेपी के लिए इस बार राह आसान नहीं है। राजनीतिक सुधारों पर नजर रखने वाली संस्था एडीआर (एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स) के एक सर्वे में सामने आया है कि शहरी इलाको में लोगों के रुझान में तेजी से बदलाव हुआ है। एडीआर ने आम जन से जुड़े 24 प्रमुख मुद्दों को लेकर शहरी मतदाताओं के बीच एक सर्वे किया था।


इस सर्वे में शहरी वोटर (अर्बन वोटर) ने रोजगार, स्वास्थ्य, पानी, प्रदूषण और शिक्षा समेत तमाम मोर्चे पर मोदी सरकार के कामकाज को लेकर निराशा जताई गयी है और औसत से भी कम यानी बिलो एवरेज रेटिंग दी है। एडीआर (एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स) के सर्वे के मुताबिक शहरी मतदाताओं के लिए रोजगार सबसे बड़ा मुद्दा है। सर्वे में 51.60 फीसद मतदाताओं ने कहा है कि रोजगार का अवसर उनकी प्राथमिकता है। वहीं, 39.41 फीसद मतदाताओं ने स्वास्थ्य, 37.17 फीसद मतदाताओं ने यातायात व्यवस्था, 35.03 फीसद मतदाताओं ने पीने का पानी, 34.91 फीसद मतदाताओं ने अच्छी सड़क और 34.14 फीसद मतदाताओं ने पानी और वायु प्रदूषण को अपना प्रमुख मुद्दा बताया है।


मोदी सरकार भले ही नई नौकरियां पैदा करने का दावा कर रही हो, लेकिन सर्वे में सामने आया है कि शहरी मतदाताओं के लिए रोजगार सबसे बड़ा मुद्दा है, और उन्होंने इस फ्रंट पर मोदी सरकार के कामकाज को पूरी तरह नकार दिया है। इतना ही नहीं ,मूलभूत सुविधाएँ जैसे स्वास्थ्य, पीने का पानी, सड़क, शिक्षा, अतिक्रमण और बिजली जैसे मुद्दों पर भी शहरी मतदाता मोदी सरकार के कामकाज से संतुष्ट नहीं हैं।


जहाँ एक तरफ मोदी सरकार स्मार्ट सिटी बनाने के दावे कर रही हैं वहीँ दूसरी तरफ ज़मीनी हकीकत पर सरकार के दावे खरे न बैठने से शहरी मतदाताओं ने सरकार के कामकाज पर नाखुशी ज़ाहिर की है और 5 में से 2.64 से भी कम यानी औसत से भी कम अंक दिए है।हालाँकि एडीआर के सर्वे में ग्रामीण इलाको में रहने वाले मतदाता भी मोदी सरकार के कामकाज से सतुष्ट नज़र नहीं आये हैं। सर्वे के मुताबिक ग्रामीण मतदाताओं के लिए भी रोजगार सबसे बड़ा मुद्दा है और 44.21 फीसद ग्रामीण मतदाता इसके पक्ष में हैं, लेकिन उनका भी मानना है कि मोदी सरकार ने इस फ्रंट पर खास काम नहीं किया है।

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