भारत में कैशलेस अर्थव्यवस्था - सम्भावना या सच?
BY यामिनी सिंह30 Dec 2016 6:45 AM GMT
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यामिनी सिंह30 Dec 2016 6:45 AM GMT
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब 8 नवंबर 2016 की रात को जब अचानक 500 और 1000 रूपये के नोटों को बंद करने
की घोषणा की तो भारत के आर्थिक परिदृश्य में कई परिवर्तन आने लगे| अगले दिन यानि 9 नवंबर से ही बैंकों और
एटीएमों के सामने लम्बी लाईनें दिखने लगीं, लोग अपने रुपयों को लेकर आशंकित हो उठे, बाजार में मंदी आई
और इस निर्णय को लेकर तरह-तरह की चर्चाएँ होने लगीं| आम जनता और मीडिया में इसे नोटबंदी, विमुद्रीकरण
और काले धन पर सर्जिकल स्ट्राइक आदि नामों से जाना गया| केंद्र सरकार ने विमुद्रीकरण के इस निर्णय का
उद्देश्य काले धन पर नियंत्रण और जाली नोटों की समस्या से निपटना बताया| जब नकदी की कमी हो जाने से
लोगों को धन के लेन-देन में कठिनाईयां आने लगीं तब सरकार ने सलाह दी कि हमें लेन-देन के लिए मोबाईल
बैंकिंग, इंटरनेट बैंकिंग, कार्ड स्वाईप और डिजिटल वैलेट आदि सुविधाओं का उपयोग करना चाहिए| नवंबर का
महीना बीतते-बीतते सरकार के सुर बदले हुए नजर आने लगे और प्रधानमंत्री ने कहा कि विमुद्रीकरण करने के पीछे
उनका एक बड़ा उद्देश्य भारतीयों को कैशलेस लेन-देन के लिए प्रोत्साहित करना भी था|
भारत को कैशलेश अर्थव्यवस्था बनाने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक और सरकार द्वारा पहले कुछ कदम उठाये जा
चुके हैं| आधार कार्ड जारी करके भारतीय नागरिकों का एक डिजिटल रिकार्ड बनाने का विवादित अभियान इसी से
जुड़ा हुआ है| कुछ समय पूर्व भारतीय रिजर्व बैंक ने "भारत में भुगतान एवं निपटान प्रणालीः विजन-2018 शीर्षक
से एक दस्तावेज जारी किया था जिसमें रिजर्व बैंक ने इलेक्ट्रानिक पेमेंट को बढ़ावा देकर भारत को एक कैशलेस
अर्थव्यवस्था बनाने की ओर अग्रसर करने की अपनी मंशा जाहिर की थी| रिजर्व बैंक द्वारा पेमेंट बैंकों का
लाईसेंसीकरण भी इसी दिशा में एक प्रयास था| सरकार द्वारा आजकल मोबाईल वैलेट्स को बढ़ावा दिया जा रहा है
जिससे पैसे भेजने, बिजली का बिल जमा करने, मोबाईल रिचार्ज और मूवी टिकट बुक करने जैसे कार्य शीघ्रता से
किये जा सकते हैं| सरकार ई-कामर्स क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के उदारीकरण द्वारा भी इलेक्ट्रानिक लेन-देन को
बढ़ावा दे रही है| सरकार द्वारा युनिफाइड पेमेंट इंटरफेस (युपीआई) भी जारी किया गया है जिसका उद्देश्य
इलेक्ट्रानिक पेमेंट को आसान और तेज बनाना है| अब जबकि विमुद्रीकरण को केंद्र सरकार भारत को कैशलेस
अर्थव्यवस्था बनाने के दिशा में एक प्रयास की भांति प्रक्षेपित कर रही है तो हमारे लिए कैशलेस अर्थव्यवस्था का
अर्थ और भारत के सन्दर्भ में इसके मायने समझना आवश्यक है| आईये इसे समझने का प्रयास करते हैं|
कैशलेस या नकदीरहित अर्थव्यवस्था वो होती है जिसमें वित्तीय लेन-देन का माध्यम नोट और सिक्के न होकर
अमूर्त या प्रतीकात्मक धन होता है| यद्यपि वस्तु विनिमय व्यवस्था के रूप में कैशलेस समाज पहले भी अस्तित्व
में रह चुके हैं, परन्तु वर्तमान में कैशलेस व्यवस्था का तात्पर्य डिजिटल या इलेक्ट्रानिक पेमेंट व्यवस्था से है|
इलेक्ट्रानिक लेन-देन का प्रचलन नब्बे के दशक में इलेक्ट्रानिक बैंकिंग लोकप्रिय होने के साथ आरम्भ हुआ था और
2010 तक बहुत से देशों में अनेक डिजिटल पेमेंट विधियाँ प्रचलित हो चुकी थीं| कई व्यापारिक संस्थाओं और
सरकारों ने वित्तीय गड़बड़ियों से बचाव के लिए डिजिटल पेमेंट का मार्ग चुना और नकदी इस्तेमाल लगभग बंद कर
दिया| इसे उस समय की मीडिया में वॉर ऑन कैश कहा गया| पर यहाँ पर ये समझना जरूरी है कि अब तक कोई
भी देश शत-प्रतिशत कैशलेस नहीं हो पाया है| जब हम भारत को कैशलेस अर्थव्यवस्था बनाने पर चर्चा करते हैं तो
उसका अर्थ यह नहीं होता कि शत-प्रतिशत लेन-देन इलेक्ट्रानिक रूप में हों| भारत को कैशलेस बनाने का वास्तविक
अर्थ भारत को लेस-कैश अर्थव्यवस्था बनाना है, अर्थात् एक ऐसी अर्थव्यवस्था जिसमें नकदी का कम से कम
प्रयोग हो|
वित्त मंत्री अरुण जेटली ने 2016 के अपने बजट-भाषण में भारत को एक कैशलेश अर्थव्यवस्था बनाने की बात कही
थी जिसका मुख्य उद्देश्य उन्होंने काले धन पर नियंत्रण बताया| यहाँ पर भारत में कैश और डिजिटल/इलेक्ट्रानिक
पेमेंट की वर्तमान स्थिति से अवगत होना उपयोगी होगा| हमारे देश में होने वाले कुल वित्तीय लेन-देन का 5% से भी
कम इलेक्ट्रानिक/डिजिटल माध्यम से होता है| भारत में 2014 में कैश और जीडीपी का अनुपात 12.42% था जबकि
चीन में ये 9.47% और ब्राजील में 4% था| इससे पता चलता है कि भारत में नकदी का बहुत महत्व है और अभी
भी हमारे देश में धन का आदान-प्रदान मुख्य रूप से नकदी यानि कैश में होता है|
कैशलेश अर्थव्यवस्था में धन का लेन-देन इलेक्ट्रानिक माध्यम से होता है और इसलिए उसका इलेक्ट्रानिक रिकार्ड
निर्मित हो जाता है| ई-रिकार्ड निर्मित होने से आर्थिक क्रियाओं में पारदर्शिता आती है जिसके अनेक प्रत्यक्ष व्
अप्रत्यक्ष लाभ होते हैं| धन प्राप्ति और व्यय का ई-रिकार्ड टैक्स चोरी को अत्यंत कठिन बना देता है जिससे कर-
संग्रह में बढ़ोतरी होती है| कर संग्रह बढ़ने से सरकार के पास विकास कार्यों और जनहित योजनाओं पर खर्च करने
के लिए अधिक धन उपलब्ध होता है| धन के आय-व्यय के ई-रिकार्ड मौजूद होने से काले धन पर भी नियंत्रण
स्थापित होता है जिसके परिणामस्वरूप जमीन जायदाद और सोने-चांदी आदि के दामों में भी गिरावट आती है
क्योंकि इनमें बड़ी मात्रा में काले धन का निवेश किया जाता है| इसके अतिरिक्त प्रत्येक वर्ष भारतीय रिजर्व बैंक
द्वारा करेंसी जारी करने और उसके प्रबंधन में होने वाला व्यय भी कैशलेस व्यवस्था में बच सकता है| इसका एक
लाभ ये भी है कि जनकल्याण कार्यक्रमों का लोगों को अधिक लाभ मिलता है| विभिन्न प्रकार की आर्थिक सहायताएँ
जैसे गैस सब्सिडी और स्कालरशिप इत्यादि को डिजिटल पेमेंट व्यवस्था का प्रयोग करके सीधे लाभार्थी के खाते में
पहुँचाया जा सकता है| इससे लाभार्थियों को अपने ही लाभों को पाने के लिए रिश्वत देने की आवश्यकता नहीं पड़ती
है| ऋण सुविधायें प्रदान करने और वित्तीय समावेशन में भी कैशलेस व्यवस्था सहयोगी है| ऋण की उपलब्धता और
वित्तीय समावेशन अंततः लघु एवं मध्य उद्योगों के विकास में सहायक होते हैं| भारत में नकली नोटों की समस्या
भी एक बड़ी समस्या है जिसका निदान कैशलेस व्यवस्था द्वारा संभव है| कुछ समय पहले क्रेडिट रेटिंग एजेंसी
मूडीज की एक रिपोर्ट में सामने आया था कि कैशलेस व्यवस्था अपनाने से विकासशील अर्थव्यवस्थाओं की जीडीपी
में 0.8% और विकसित अर्थव्यवस्थाओं की जीडीपी में 0.3% का उछाल आता है|
उपर्युक्त चर्चा से स्पष्ट है कि कैशलेश अर्थव्यवस्था के अनेक लाभ हैं पर इसमें चुनौतियाँ भी अनेक हैं| भारत जैसे
देश को कैशलेश अर्थव्यवस्था बनाने में कई बाधाएं हैं जैसे इंटरनेट का ख़राब नेटवर्क, वित्तीय तथा डिजिटल साक्षरता
की कमी और साईबर सुरक्षा की अपर्याप्त सुविधा आदि| भारतीय बाजारों में अधिकांश छोटे-छोटे विक्रेता हैं जिनके
पास इलेक्ट्रानिक पेमेंट लेने की व्यवस्था करने के लिए पर्याप्त धन नहीं होता है| इसी प्रकार अधिकांश ग्राहकों के
पास स्मार्टफोन न होने के कारण वो इंटरनेट बैंकिंग, मोबाईल बैंकिंग और डिजिटल वैलेट्स का उपयोग करने में
सक्षम नहीं हैं| एक समस्या यह भी है कि अधिकतर लोग अभी कैशलेस लेन-देन को ठीक से समझते ही नहीं हैं
और उन्हें नकदी ही लेन-देन के लिए सबसे अच्छा माध्यम लगता है| भारत ने ई-कामर्स में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को
अनुमति दे दी है पर विदेशी कंपनियों द्वारा किये जा रहे आनलाईन व्यापार पर ठीक से नजर रखने और उससे
होने वाली समस्याओं के निराकरण की उचित व्यवस्था अभी तक नहीं हो पायी है| अधिकांश आनलाईन ग्राहकों को
ये पता ही नहीं होता है कि यदि उनके साथ कुछ धोखाधड़ी हो जाए तो वो कहाँ शिकायत करें| सरकार को इन
समस्याओं का समाधान खोजना चाहिए| डिजिटल व्यापार करने वाली कंपनियों के लिए स्पष्ट नियम-कानून, ग्राहकों
के धन की सुरक्षा के पर्याप्त उपाय और तीव्र शिकायत निवारण प्रणाली के बिना डिजिटल इंडिया का सपना पूरा
नहीं हो सकता है| इसके अतिरिक्त डेबिट/क्रेडिट कार्ड से पेमेंट करने पर ट्रांजैक्शन चार्ज न लगाना और कैशलेस
ट्रांजैक्शन पर कर में छूट देने जैसे उपायों द्वारा डिजिटल पेमेंट को लोकप्रिय बनाया जा सकता है| वित्तीय नियामकों
को बैंकों की उन गतिविधियों पर भी नजर रखनी चाहिए जिनके द्वारा बैंक आसान और वैकल्पिक पेमेंट
व्यवस्थाओं को बाधित करके अर्थव्यवस्था में अपना प्रभुत्व बनाये रखना चाहते हैं|
- यामिनी सिंह
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