खुलासा: छत्तीसगढ़ के भाजपा-मंत्री का उजागर हुआ भरष्टाचार, किसान ने दान में दी जमीन, मंत्री ने लिखवा दीया अपनी पत्नी के नाम: पढ़ें पूरी खबर
BY Jan Shakti Bureau31 July 2017 3:54 PM GMT
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Jan Shakti Bureau23 Nov 2020 9:51 AM GMT
छत्तीसगढ़: बीजेपी मंत्री रमन सिंह सरकार के कद्दावर मंत्री की वजह पूरी सरकार की खूब फजीहत हो रही है। विवाद इतना बड़ा है कि खुद मुख्यमंत्री रमन सिंह ने मामले की जांच के आदेश दे दिए हैं। कृषि मंत्री बृजमोहन अग्रवाल की पत्नी पर सरकारी जमीन पर कब्जा करके उस पर रिसॉर्ट बनवाने का आरोप लगा है। ये जमीन वन विभाग की है। सरकारी दस्तावेजों के मुताबिक वन विभाग की 4.12 एकड़ जमीन पर बृजमोहन अग्रवाल की पत्नी सविता अग्रवाल और उनके बेटे रिसॉर्ट बनवा रहे हैं। साल 2015 में महासमुंद जिले के किसान मजदूर संघ के सदस्य ललित चन्द्र साहू ने जिला कलेक्टर उमेश कुमार अग्रवाल और तत्कालीन रायपुर कमिशनर अशोक अग्रवाल को पत्र लिख कर मामले को उठाया। सितंबर 2009 में खरीदी गई इस जमीन के बारे में रमन सिंह सरकार के कई अधिकारियों ने भी सवाल उठाए थे।
किसान ने जनहित में ज़मीन सरकार को दी थी दान
ज़मीन मूल रूप से सिरपुर के नज़दीकी झलकी गांव के किसान विष्णुराम साहू की थी. उन्होंने दो मार्च 1994 को पांच अन्य किसानों के साथ मिलकर अपनी ज़मीन जनहित में विकास कार्यों के लिए अविभाजित मध्य प्रदेश की सरकार को 'दानपट्टे' में दी थी. शुरू में इस ज़मीन का मालिकाना राज्य के जलसंसाधन विभाग को मिला लेकिन दो माह बाद ही यह वन विभाग को सौंप दी गई.बाद में पता चला मंत्री ने खरीदी 1994 में अविभाजित मध्य प्रदेश की सरकार के अफसरों ने मुझसे कहा था कि मेरी ज़मीन पर सरकारी योजना चलेगी. उन्होंने मुझे और मेरे बच्चों को ज़मीन के बदले सरकारी नौकरी देने का वादा किया था. मैं बच्चों को स्कूल भेजना चाहता था और वे भी गांव में रहकर खेती करने के बजाय सरकारी नौकरी करना चाहते थे. इसलिए मैं उनकी बातों में आ गया. हालांकि उन अफसरों ने मुझसे लिखित में कोई वादा नहीं किया. फिर भी मैंने कागजों पर दस्तखत कर दिए. लेकिन उन्होंने वादा पूरा नहीं किया. मेरी ज़मीन पर न तो कोई सरकारी योजना आई और न हमें नौकरी मिली. इस दौरान हर साल ज़मीन का लगान मैं ही भरता रहा.
मैं इसे अपनी क्यूं न मानूं? फिर कई साल बाद (2009 में) कुछ दलाल आए थे. उन्होंने बताया कि वे मुझसे मेरी ज़मीन ख़रीदेंगे. चूंकि अब तक भी राजस्व रिकॉर्ड में बदलाव नहीं हुआ था इसलिए मैंने ज़मीन बेच दी. बाद में मुझे पता चला कि यह ज़मीन मंत्री जी (अग्रवाल) ने ख़रीदी है.' राजस्व रिकॉर्ड में यह दर्ज़ ही नहीं हुआ कि यह ज़मीन वन विभाग को हस्तांतरित की जा चुकी है. यानी इतने साल बाद भी राजस्व रिकॉर्ड में यही दर्ज़ था कि ज़मीन के मालिक विष्णुराम साहू हैं जिन्होंने दानपट्टे पर ज़मीन सरकार के जलसंसाधन विभाग को दे रखी है. बृजमोहन अग्रवाल का कहना है- हमने हर काम नियमों के मुताबिक किया. जिस ज़मीन की बात की जा रही है उसे मेरी पत्नी और बेटे ने ख़रीदा है. वह जिस किसान के नाम पर थी उसी से ख़रीदी गई है. मुझे नहीं लगता कि इसमें कोई ग़लती हुई है. और अगर कोई ग़लती है भी तो बेचने वाले की तरफ से है. अन्यथा कोई मसला ही नहीं है. रजिस्ट्री कराई गई. उसे पूरा भुगतान किया गया. इस ज़मीन का ज़िक्र मैंने चुनाव घोषणा पत्र में भी किया है. मैं या मेरे परिवार का कोई सदस्य किसी तरह की अनियमितता में शामिल नहीं है.
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