देशद्रोह के झूठे आरोप में फंसाये गए मुस्लिम युवाओं की आपबीती रोंगटे खड़े कर देगी
BY Jan Shakti Bureau30 Jun 2017 11:33 AM GMT
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Jan Shakti Bureau30 Jun 2017 11:33 AM GMT
भोपाल। चैम्पियंस ट्रॉफी में भारत की हार के बाद पाकिस्तान के समर्थन में नारे लगाने और पटाखे चलाने के झूठे आरोप लगाकर जेल भेजे गए मध्यप्रदेश के बुरहानपुर गाँव के 15 मुस्लिम लोगों से सरकार को देशद्रोह का मुकदमा वापस लेना पड़ा। इस मामले में पुलिस के पास कोई सबूत उपलब्ध नहीं था। पुलिस ने इस मामले में एक व्यक्ति को गवाह बनाया था लेकिन उसने पुलिस की पोल खोल दी। देशद्रोह के झूठे आरोप लगाकर जेल भेजे गए लोगों का आरोप है कि उनके साथ जेल में भी दुर्व्यवहार किया गया।
उन्हें गद्दार और पाकिस्तानी कहने के अलावा उनसे जेल के टॉयलेट साफ़ करवाए गए। पीड़ित लोगों ने कहा कि कुछ कैदियों ने उन्हें जेल में थप्पड़ भी मारे। इन लोगों ने अपनी आपबीती सुनाते हुए कहा कि पुलिस ने तो उन्हें झूठे मामले में फंसाये जाने के बाद प्रताड़ित किया ही था साथ ही जेल में भी उन्हें अपमानित किया गया और उनके साथ बदसलूकी की गयी। पुलिस द्वारा गिरफ्तार किए गए अनीस बाबू मंसूरी ने हिन्दुस्तान टाइम्स को बताया कि जब उन लोगों को जेल ले जाया गया तो वहां के करीब एक दर्जन पुराने कैदियों ने हर किसी को थप्पड़ मारा और गालीगलौज की। मंसूरी पेशे से दर्जी हैं।
बता दें कि मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल से करीब 350 किलोमीटर दूर बुरहानपुर गांव के रहने वाले इन 15 लोगों पर 18 जून को हुए भारत पाकिस्तान मैच के बाद मुकदमा दर्ज किया गया था। पुलिस ने आरोप लगाया था कि इन लोगों ने भारत के हारने के बाद पटाखे जलाए थे और पाकिस्तान समर्थक नारे लगाए थे। जब पुलिस को कोई सबूत-गवाह नहीं मिला तो उसने सभी 15 लोगों पर के राजद्रोह (धारा 124-ए ) का केस हटाते हुए सांप्रदायिक विद्वेष फैलाने (धारा 53-ए) का मामला दर्ज कर दिया। सभी लोगों को 27 जून को अदालत से जमानत मिली। जिन 15 लोगों पर मामला दर्ज किया गया है उनमें से दो को छोड़कर बाकी अनपढ़ हैं और दिहाड़ी मजदूर के तौर पर काम करते हैं। कुछ के घर में न तो टीवी है और न ही मोबाइल।
गांववालों का आरोप है कि भारत और पाकिस्तान के क्रिकेट मैच के बाद पुलिस दो-तीन दिन गांव में घूमती रही और जिसे मन उसे उठा लिया। गिरफ्तार किए गए लोगों में कई तडवी उपनाम लगाते हैं। पडो़सी राज्य महाराष्ट्र में तडवी आदिवासी वर्ग में शामिल हैं लेकिन मध्य प्रदेश में वो अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के तहत आते हैं।
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