Exclusive:बिहार के 'सियासी राण' में अब शुरू हो रही है दूसरी लड़ाई, नितीश होंगे बाहर!
BY Jan Shakti Bureau31 July 2017 5:56 AM GMT
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Jan Shakti Bureau31 July 2017 5:56 AM GMT
पटना। नीतीश कुमार के नेतृत्व में राजग की नई सरकार के गठन के बाद बिहार की राजनीति फिर नई ऊंचाई पर है। महागठबंधन सरकार के 20 महीने बाद सत्ता का फार्मूला बदला तो सियासत का समीकरण भी उलट-पलट गया। 2019 के लोकसभा चुनाव में अभी करीब 20 महीने शेष हैं। हालात बता रहे हैं कि इस दौरान सूबे की राजनीति में दूसरे दौर का घमासान होगा।
विधानसभा चुनाव के पहले राजद, जदयू और कांग्रेस ने मिलकर भाजपा के खिलाफ महागठबंधन बनाया था। तब तीनों दलों के संयुक्त निशाने पर लोकसभा चुनाव में प्रचंड बहुमत लेकर आए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह थे। भाजपा ने भी जंगलराज और भ्रष्टाचार का मुद्दा उछाला था। दोनों ओर से खूब बयानबाजी हुई। आरोप-प्रत्यारोप ने शुचिता की सारी हदें तोड़ दीं। अब महागठबंधन का एक बड़ा घटक दल खेमा बदल लिया तो सियासत में दोस्ती-दुश्मनी के मायने बदल गए। अपने-पराये की परिभाषा बदल गई। फिलहाल, दोनों खेमों की तैयारियां बता रही हैं कि अगले कुछ दिनों में अपने रंग में होगी बिहार की राजनीति। हमले का अंदाज और आक्रामक होगा। उसी हिसाब से सभी दलों रणनीतियां भी बदलेंगी।
लालू का पांसा
सत्ता से बेदखल लालू प्रसाद की कोशिश नीतीश मंत्रिमंडल में शामिल होने से वंचित रह गए राजग के असंतुष्ट सहयोगियों को अपने पाले में करने की होगी। पांच दलों के राजग के कुनबे में हम और रालोसपा को मंत्रिमंडल में जगह नहीं मिली है। नए समीकरण में लालू नीतीश कुमार पर हमले को और तीखा करेंगे ताकि राजद का आधार वोट बरकरार रहे। नीतीश की पूर्व सरकार के अहम सहयोगी लालू 27 जुलाई के पहले तक महागठबंधन के अटूट-एकजुट रहने का रïट्टा लगाते थे, लेकिन अब उनके निशाने पर भाजपा के साथ-साथ नीतीश भी प्रमुख रूप से होंगे।
भाजपा का दांव
राज्य में नीतीश कुमार के नेतृत्व में राजग की नई सरकार बनाने के बाद भाजपा का सारा ध्यान अब लोकसभा चुनाव पर है। 2014 के परिणाम को दोहराने के लिए लालू प्रसाद के जातीय आधार को ध्वस्त करना जरूरी होगा। साथ ही तेजस्वी यादव की बढ़ती लोकप्रियता को भी थामने की कोशिश करनी होगी ताकि लालू के बाद भाजपा के रास्ते में कोई नया अवरोध न आए।भाजपा के सामने चारा घोटाले में वैधानिक पचड़े में फंसे लालू प्रसाद से ज्यादा बड़ी चुनौती तेजस्वी के रूप में है। इसलिए भाजपा की पहली कोशिश तेजस्वी के बढ़ते कदम को रोकने की होगी।
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