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बड़ी खबर: पुतिन के साथ अनौपचारिक शिखर वार्ता के लिए सोची पहुंचे मोदी, जानिए क्यों खास है यह मुलाकात

बड़ी खबर: पुतिन के साथ अनौपचारिक शिखर वार्ता के लिए सोची पहुंचे मोदी, जानिए क्यों खास है यह मुलाकात
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के साथ अनौपचारिक शिखर वार्ता के लिए सोमवार (21 मई) को काला सागर के तटीय शहर सोची पहुंच गए। वार्ता का केंद्र ईरान परमाणु समझौते से अमेरिका के पीछे हटने के निर्णय के प्रभाव सहित विभिन्न वैश्विक एवं क्षेत्रीय मुद्दे रहेंगे। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रवीश कुमार ने कहा, ''इन नौं घंटो में, उच्च स्तरीय वार्ता की परंपरा जारी रखते हुए प्रधानमंत्री मोदी पुतिन के साथ अनौपचारिक शिखर वार्ता के लिए सोची पहुंचे, जहां वह बोचारेव क्रीक में दोपहर का भोजन करेंगे और वहां से रवाना होने से पहले दोनों नेता एकांत में बातचीत करेंगे।'' समाचार एजेंसी भाषा के मुताबिक आधिकारिक सूत्रों ने बताया कि अनौपचारिक वार्ता का उद्देश्य दोनों देशों के बीच आपसी मैत्री और विश्वास के आधार पर महत्वपूर्ण वैश्विक एवं क्षेत्रीय मुद्दों पर साझा राय बनाना है।



उन्होंने कहा दोनों नेता 'बिना किसी एजेंडे' के चार से छह घंटे वार्ता करेंगे जहां द्विपक्षीय मुद्दों पर विचार-विमर्श बहुत सीमित होने की संभावना है। पीएम मोदी ने कल ट्वीट किया था, ''रूस के मित्रवत लोगों को नमस्कार। मैं सोची के कल के अपने दौरे और राष्ट्रपति पुतिन के साथ अपनी मुलाकात के प्रति आशान्वित हूं। उनसे मिलना मेरे लिये हमेशा सुखदायी रहा है।'' उन्होंने लिखा, ''मुझे विश्वास है कि राष्ट्रपति पुतिन के साथ बातचीत भारत और रूस के बीच विशेष एवं विशेषाधिकार युक्त सामरिक भागीदारी को और अधिक मजबूत होगी।''


इस दौरान दोनों नेताओं के बीच बातचीत के मुद्दों में ईरान के साथ परमाणु समझौते से अमेरिका के हटने से भारत और रूस पर पड़ने वाले आर्थिक असर, सीरिया और अफगानिस्तान के हालात, आतंकवाद के खतरे तथा आगामी शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) और ब्रिक्स सम्मेलन से संबंधित मामलों के शामिल होने की संभावना है। सूत्रों ने कहा कि 'काउंटरिंग अमेरिका एडवेर्सरीज थ्रू सेंक्शन्स एक्ट' (सीएएटीएसए) के तहत रूस पर लगाए अमेरिकी प्रतिबंधों के भारत- रूस रक्षा सहयोग पर पड़ने वाले प्रभावों के मुद्दे पर भी इस बातचीत के दौरान चर्चा हो सकती है। इस तरह की आशंका बनी हुयी है कि अमेरिका के ईरान परमाणु समझौते से हटने का फारस की खाड़ी के देश से नई दिल्ली के तेल आयात और 'चाबहार बंदरगाह परियोजना' पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।


सऊदी अरब और इराक के बाद भारत को कच्चा तेल आयात करने वाला ईरान तीसरा सबसे बड़ा देश है। दोनों नेता तीसरे देशों में भारत-रूस असैनिक परमाणु सहयोग, अंतरराष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारा (आईएनएसटीसी) परियोजना में सहयोग के संभावित क्षेत्रों, पांच 'राष्ट्र यूरेशियन आर्थिक संघ' (ईएईयू) में भारत की भूमिका और कोरियाई प्रायद्वीप में मौजूदा स्थिति पर भी विचार-विमर्श कर सकते हैं।

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