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मोदी सरकार की गलत नीतियों की बदौलत, पटरी से उतर चुकी है भारत की विदेश नीति

मोदी सरकार की गलत नीतियों की बदौलत, पटरी से उतर चुकी है भारत की विदेश नीति
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भारत का विदेशी और सामरिक माहौल बदतर होता दिखाई दे रहा है और यह केवल "दो-प्लस-दो" वार्तालाप को तीसरी बार "स्थगित" करके अमेरिका के अपमान के कारण नहीं है। जो हमने एक साल पहले तक देखा, उसमें और आज की तस्वीर कोई समानता नहीं है। तब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक राजधानी से दूसरी राजधानी की यात्रा करते थे, और राज्यों के प्रमुखों को गले लगाते थे। भारत एक बढ़ती हुई शक्ति था और मोदी, इसके शक्तिशाली, मिलनसार, ऊर्जावान नये नेता और एक स्टार थे। उदाहरण के तौर पर उन्होंने पेरिस जलवायु समझौते पर अपने निर्णायक और सकारात्मक हस्तक्षेप के साथ दुनिया को बहुत प्रभावित किया। पिछले छह महीनों में इनमें से ज्यादातर प्रयास असफल रहे हैं। वैश्विक चेतना से भारत का पतन उतना ही कठोर रहा है जितना कि इसका उत्थान स्थिर और आसान था। मोदी समर्थक विरोध करेंगे। लेकिन, जब महा शक्तिशाली राष्ट्र के राजनीतिक दल भ्रमित हो सकते हैं, तो वास्तविकता को छिपाया नहीं जा सकता है। हमें यह जांचने की ज़रूरत है कि बहुत अच्छा चल रहा अभियान कैसे असफल हो गया। कुछ कारक भारत के नियंत्रण से बाहर हैं, जैसे डोनाल्ड ट्रम्प के उदय जैसी असंभव घटना। साथ ही, हाल ही में हुई गलतियों ने भारत के विदेशी संबंधों को मानव निर्मित आपदा बना दिया है। कूटनीति के लिए नेता अपना पसंदीदा दृष्टिकोण अपनाते हैं।


साउथ ब्लॉक में मोदी के समर्थक इस बात का जश्न मनाते हैं कि उनकी कूटनीति की शैली लेनदेनपूर्ण है। यह भाजपा और रणनीतिक समुदाय के वर्गों के अनुकूल है, आज के समय में सभी वर्ग इसके अनुकूल हैं कुछ को छोड़ कर। नतीजतन, हमने उनकी सरकार के पहले तीन वर्षों में एक के बाद एक "महान राजनयिक जीत" मानते रहे। भारत को तीन वैश्विक मिसाइल-परमाणु प्रौद्योगिकी समूहों में एक जिम्मेदार शक्ति के रूप में स्वीकार किया गया था। उपमहाद्वीप में अमेरिकी नीति पूरी तरह से असंवेदनशील थी। महत्वपूर्ण रिश्ते वास्तविक दिखने लगे। बिल क्लिंटन के दूसरे कार्यकाल के बाद से भारत का विदेशी संबंधों का माहौल सबसे जादा सुधर रहा था। 15 वर्षों के आर्थिक विकास से प्रेरित नीति निरंतरता ने दिशा निर्धारित की थी। मोदी ने अपनी ऊर्जा, व्यक्तिगत शैली और पूर्ण बहुमत के साथ इसे अच्छी तरह से गति प्रदान की। तो फिर असफलताओं का कारण क्या रहा ? दो विदेशी प्रतिकूल कार्य मोदी सरकार की गलती नहीं थे: ट्रम्प का उदय और चीन का बल प्रदर्शन। ट्रम्प के कार्य, विशेष रूप से ईरान नीति में परिवर्तन ने सीधे तेल की कीमतों में वृद्धि की, जिसने भारत की घरेलू अर्थव्यवस्था और राजनीति को अस्थिर कर दिया। सीपीईसी के लिए चीनी दबाव, भारतीय चिंताओं से अनभिज्ञता और श्रीलंका, नेपाल, मालदीव एवं बांग्लादेश में इसकी चाल से पता चला कि चीन अब उपमहाद्वीप को भारत के पूर्व-प्रतिष्ठा के क्षेत्र के रूप में छोड़ने को तैयार नहीं है। वह दिन जब जॉर्ज डब्ल्यू बुश भारत को एनएसजी छूट दिलाने के लिए हू जिंताओ से फोन पर बात करते थे ख़त्म हो चुके हैं और वापस नहीं अएगे। ज़ी नहीं सुनेंगे, लेकिन इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि ट्रम्प ऐसा नहीं करेंगे, क्योंकि, यदि मोदी सिर्फ़ लेनदेन में भरोसा करते हैं, तो ट्रम्प उनसे भी एक कदम आगे हैं।


मोदी सरकार की सबसे बड़ी गलती अपनी घरेलू राजनीति में संवेदनशील बाहरी (विदेशी) संबंधों का लाभ उठाना है। इतिहास में सबसे सफल नेताओं की पहली आवश्यक विशेषता सामरिक धैर्य है। वे दृढ़तापूर्वक आगे तो बढ़ते हैं लेकिन इतना प्रतिबद्ध नहीं होते हैं की उन्हें कुछ गलती होने पर सास लेने का भी मौका ना मिले। सामरिक संबंध बनाने में, एक सर्वश्रेष्ठ नेता सुनील गावस्कर की तरह बल्लेबाजी करता है वीरेन्द्र सहवाग की तरह नहीं। मोदी ने अपने लिए सास लेने भर की जगह नहीं छोड़ी है। सभी प्रमुख राज्य चुनावों के प्रचार में उन्होंने अपनी विदेश नीति को प्रमुखता से दर्शाया है और उनकी इस चाल ने काम भी की है। लेकिन जल्द ही जीत घोषित करने में खतरे हैं। यह आपके रणनीतिक (सामरिक) स्थान को संकुचित करता है। पिछली सरकारों की तरह शांत रहने के बजाय, इन्होंने स्थानीय, सामरिक और सीमित "सर्जिकल" स्ट्राइक को ऐसा दर्शाया जैसे की वह 1984 के सियाचिन के पर पाई गयी विजय के बराबर हो। इंदिरा गाँधी ने भी कभी इसके बारे में बात नहीं की थी और इसके बारे में बात ना करके वह बेवकूफ या गैर-राजनैतिक नहीं हो रहीं थीं। यदि आप तत्काल राजनीतिक लाभ प्राप्त करने के लिए रणनीतिक कार्यवाइयों का उपयोग करते हैं तो आप अपने अगले विकल्पों को बंद कर देते हैं। इससे भी बुरी बात यह है कि आपके दुश्मन यह सब जानते हैं। उत्तर प्रदेश चुनावों में लोकप्रिय प्रतिक्रिया से उत्साहित होने की वजह से, गैर जिम्मेदाराना बातें शुरू हो गयीं पर इस तरह का कोई कदम 2018 के अंत में होने वाले राष्ट्रीय चुनावों पर बड़ा असर डाल सकता है। एक छोटी और तीव्र झड़प जो आप जीत की घोषणा करके समाप्त कर सकते हैं। डोकलाम और इसी तरह की अन्य चालों से सतर्क चीन ने यह स्पष्ट कर दिया कि वह भारत को अपनी सैन्य शक्ति को प्रदर्शित करने का जादा मौक़ा नहीं देगा ।


अब इसमें कोई संदेह नहीं रह गया था कि पाकिस्तान चीन के संरक्षण में है। व्यापार पर भी इसी तरह के गलत फैसले लिए गए थे। चिकित्सा उपकरणों की कीमतों पर कड़ा नियंत्रण विशेष रूप से स्टेंट (एक चिकित्सा उपकरण) को भी चुनावी भाषण का हिस्सा बना लिया गया था। जब ट्रम्प ने एस पर प्रतिक्रिया की तो इसने आपके विकल्पों को और भी बंद कर दिया। हार्ले डेविडसन बाइक पर कम शुल्क (ड्यूटी) के लिए उनकी लड़ाई अत्यधिक हास्यजनक है। भारत में बहुत कम संख्या में यह बड़े इंजन वाली बाइकें बेचीं जाती हैं और इसके आयात से कोई भी भारतीय निर्माता परेशान नहीं होता। आपको वाइट हाउस को यह छोटी ख़ुशी दे देनी चाहिए थी और परिस्थितियों को संभाल लेना चाहिए था। जब आप अपनी राजनीति को आर्थिक राष्ट्रवाद पर केन्द्रित करते हैं तो आप ऐसा नहीं कर सकते हैं। निश्चित रूप से तब नहीं जब भारत की अर्थव्यवस्था धीमी और विमुद्रीकरण से उबरने में असमर्थ है। भारत ने करीब एक दशक के संघर्ष से प्राप्त 8 फीसदी की वृद्धि को गंवा दिया है। राजनयिक क्षेत्र में 13 नवम्बर 2017 को मनीला में मोदी और ट्रम्प के बीच हुई खुश्ख मुलाकात को एक गुप्त रहस्य की तरह रखा गया। ट्रम्प का व्यवहार और बॉडी लैंग्वेज पहले जैसा नहीं था और उनका आचरण भी अपमानजनक था। यह सब तब हुआ जब पहले से ट्रम्प का एक वीडियो लीक हो चुका था जिसमें वह मोदी के बोलने के तरीके का मजाक उड़ा रहे थे। फिर ट्रम्प ने भारत को व्यापर छेत्र में झटका दिया। साथ ही संयोगवश वीजा पर ब्रिटेन की कार्रवाई भी हो गयी। जब आप भारतीय पासपोर्ट के लिए अपनी बड़ी उपलब्धि के रूप में बढ़ते सम्मान की सराहना करते हैं तो यह बहुत कष्ट पहुँचाने वाला होता है। अपनी क्षमता से अधिक कार्य करना जोखिम भरा है, जैसा हाल ही में भारत कर रहा है।


आपको सावधान रहना चाहिए, लापरवाह नहीं होना चाहिए, बोसवेलियन मीडिया द्वारा उकसाया जाना, टिप्पणी और निर्विवाद विचार मंच होना चाहिए। खुद की ही तारीफ करना आपके खुद के लिए सबसे हानिकारक जाल है। चार वर्षों तक भारत अमेरिका के साथ " सच्चा रणनीतिक सहयोगी" होने का जश्न मना रहा था, लेकिन वहीँ अपनी सेना का के विषय में नहीं सोचा। आप तब तक उच्च रणनीति की योजना नहीं बना सकते हैं जब तक आपकी सेना व्यवहार कुशल बनी हुई है और केवल सीमा रक्षा उन्मुख है। चार साल में प्रभावी रूप से चार रक्षा मंत्रियों को देखा गया है, और वर्तमान में एक अप्रभावी और केवल फोटो खिचवाने वाला चेहरा है। हमारा सैन्य पेंशन बजट दो साल में वेतन बजट से अधिक हो जाएगा और दोनों बजट पहले से ही पूंजीगत बजट से ज्यादा हैं। यह एक विचित्र, भार स्वरुप, पुरानी सैन्य शक्ति है, न कि कोई निफ्टी की तरह का असरदार निवेश। आप अमेरिकियों द्वारा एशिया-प्रशांत को भारत-प्रशांत के रूप में घोषित करने का जश्न मना सकते हैं, लेकिन आप केवल दो जहाजों को दिखावटी सहयोगी नौसेना के अभ्यास में भेजकर रणनीतिक लाभ नहीं ले पाएंगे। चीनी प्रति वर्ष तीन युद्धपोत बनाते हैं। हमको तीन साल में एक युद्धपोत बनाने में मुश्किल होती है और कुछ और साल उसकी मिसाइलें और सेंसर फिट करने में लग जाते हैं। मेक इन इंडिया और निजी क्षेत्र पर ज्यादा शोर के बाद, हमारी उपलब्धि एक बड़ा सिफर (शून्य) है। मेरे यह कहने के पर आप मुझ पर सामान फेंक सकते हैं, लेकिन दुनिया इस सच को जानती है। आर्थिक मंदी भी एक मुख्य कारण है कमजोर होती सैन्य शक्ति का। आप अपने जीडीपी की गणना के तरीको में बदलाव करके अपने लोगों को मूर्ख बना सकते हैं। पर जब आप इस पर विश्वास करना शुरू करते हैं तो यह और भी खतरनाक हो जाता है।


यहाँ भारत के उदय पर धारा प्रवाह बाते हो रही हैं, कि किस तरह ज्ञान और दिशा के लिए दुनिया हमें देखती है, कि किस तरह योग दिवस अब भारतीय नम्र शक्ति का प्रतीक और क्रिसमस की जगह पर आध्यात्मिकता का वैश्विक उत्सव बन गया है। आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत (प्रणव मुखर्जी समारोह में) द्वारा दिए गए उस भाषण को देखें जहां उन्होंने विजेता के रूप से घोषित किया कि भारत एक विश्वगुरु (दुनिया का शिक्षक) बनने के रास्ते पर है। फिर हमारे "सर्वश्रेष्ठ, सदाबहार मित्र" अमेरिका के साथ हमारा संबंध क्यों खराब हुए, और बांग्लादेश को छोड़ कर सारे पड़ोसियों का चीन के पक्ष में होने क्या प्रतिकूल और संदिग्ध नहीं है ? इस विश्वगुरू के प्रधानमंत्री के साथ ट्रम्प कैसे बेअदबी से पेश आ सकते हैं? कैसे निक्की हैली, जो कि ट्रम्प प्रशासन में वास्तव में किसी एहम पद पर नहीं हैं, भारत आकर हमें अपनी ईरान पर नीति बदलने के लिए आदेश दे सकती हैं? और देखने वाली बात यह है कि 'शी' के साथ समझौते में मोदी की शारीरिक भाषा कैसे बदल गई है। कितना समय हुआ है जब से भारतीय नेताओं ने विरोध प्रदर्शन करना बंद कर दिया है कि सिपीइसी पीओके में भारतीय सर जमीं से गुजर रही है? यह समय धाराप्रवाह चल रहे उत्सव को रोकने का है। गहरी सांस लेना, वास्तविकता की जांच करना और आत्मनिरीक्षण करना बुद्धिमानी होगी।

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