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राजनीति

EXCLUSIVE | सिमटता जा रहा NDA का कुनबा, 6 वर्षों में इन 19 दलों ने छोड़ा BJP का साथ

2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान नरेंद्र मोदी को पीएम पद का चेहरा घोषित करने के साथ ही भाजपा ने एनडीए को व्यापक रूप दिया था। चुनाव के दौरान एनडीए ने कांग्रेस को करारा झटका देते हुए मोदी की अगुवाई में शानदार जीत हासिल की थी मगर उसके बाद से लगातार एनडीए के सहयोगी दल उसे छोड़ते रहे हैं।

EXCLUSIVE | सिमटता जा रहा NDA का कुनबा, 6 वर्षों में इन 19 दलों ने छोड़ा BJP का साथ
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EXCLUSIVE | सिमटता जा रहा NDA का कुनबा, 6 वर्षों में इन 19 दलों ने छोड़ा BJP का साथ

जनशक्ति: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की दूसरी पारी के दौरान एनडीए का कुनबा लगातार कमजोर होता जा रहा है। किसान बिल पर मोदी सरकार के रवैए से नाराज होकर राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी (आरएलपी) ने भी एनडीए से किनारा कर लिया है। राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी को राजस्थान में भाजपा का मजबूत सहयोगी माना जाता रहा है। आरएलपी के अध्यक्ष हनुमान प्रसाद बेनीवाल किसान बिल पर केंद्र सरकार के समय से खासे नाराज हैं। आरएलपी से पहले भाजपा के सबसे भरोसेमंद साथी माने जाने वाले अकाली दल ने भी सितंबर के आखिरी हफ्ते में एनडीए से अलग होने का एलान किया था। पिछले चार महीने के दौरान चार सियासी दलों में एनडीए छोड़कर भाजपा को गहरा झटका दिया है। यदि पिछले 6 वर्षों के सियासी दौर को देखा जाए तो इस अवधि के दौरान 19 छोटी-बड़ी पार्टियां एनडीए से अलग हो चुकी हैं।

इस तरह हुई झटका लगने की शुरुआत

2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान नरेंद्र मोदी को पीएम पद का चेहरा घोषित करने के साथ ही भाजपा ने एनडीए को व्यापक रूप दिया था। चुनाव के दौरान एनडीए ने कांग्रेस को करारा झटका देते हुए मोदी की अगुवाई में शानदार जीत हासिल की थी मगर उसके बाद से लगातार एनडीए के सहयोगी दल उसे छोड़ते रहे हैं। इस दौरान भाजपा को सबसे पहले हरियाणा जनहित कांग्रेस ने झटका दिया था। लोकसभा चुनाव के कुछ महीने बाद ही कुलदीप बिश्नोई ने एनडीए से अलग होने का एलान कर दिया था।

तमिलनाडु में भी सहयोगी अलग

कुछ ही समय बाद तमिलनाडु की एमडीएमके पार्टी ने भी भाजपा पर तमिल हितों के खिलाफ काम करने का आरोप लगाते हुए एनडीए से अलग रास्ता चुन लिया था। आंध्र प्रदेश में जनसेना भी 2014 में भाजपा से छिटक गई थी। दो साल बाद 2016 में तमिलनाडु की दो अन्य पार्टियों डीएमडीके और पीएमके ने भी एनडीए से दूरी बना ली थी। 2016 के दौरान केरल रिवॉल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी ने भी भाजपा का साथ छोड़ दिया था।

इन दलों ने भी दिया एनडीए को झटका

तीन साल पहले 2017 में महाराष्ट्र में स्वाभिमान पक्ष नामक पार्टी ने मोदी सरकार पर किसान विरोधी होने का आरोप लगाया था और इसी आधार पर पार्टी ने एनडीए से अलग राह चुन ली थी। बाद में नागालैंड में नगा पीपुल्स फ्रंट और बिहार में पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी की पार्टी हम ने भी एनडीए से किनारा कर लिया था। वैसे बिहार विधानसभा चुनाव से ठीक पहले मांझी की पार्टी हम और मुकेश साहनी की पार्टी वीआईपी फिर से एनडीए के कुनबे में लौट आई हैं।

सबसे बडा झटका

एनडीए को सबसे बड़ा झटका तेलुगू देशम, शिवसेना और अकाली दल के साथ छोड़ने से लगा है। आंध्र प्रदेश में भाजपा की बड़ी सहयोगी पार्टी मानी जाने वाली तेलुगू देशम ने 2018 में एनडीए से किनारा कर लिया था। आंध्र प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और पार्टी के मुखिया चंद्रबाबू नायडू आंध्र प्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा नहीं दिए जाने से नाराज थे और इसी कारण उन्होंने इंडिया छोड़ने का एलान किया था।

शिवसेना ने इस कारण छोड़ा साथ

महाराष्ट्र में पिछले विधानसभा चुनाव के दौरान भाजपा और शिवसेना ने मिलकर चुनाव लड़ा था, लेकिन चुनाव के बाद मुख्यमंत्री पद को लेकर दोनों दलों में खींचतान शुरू हो गई। शिवसेना मुख्यमंत्री के पद पर पार्टी के मुखिया उद्धव ठाकरे को बैठाना चाहती थी जबकि भाजपा इसके लिए तैयार नहीं थी। इसे लेकर दोनों दलों के बीच में कुछ दिनों तक खींचतान चलती रही और आखिरकार शिवसेना ने कांग्रेस और एनसीपी के साथ मिलकर महाराष्ट्र में सरकार का गठन किया और इस तरह भाजपा की सबसे विश्वसनीय सहयोगी माने जाने वाली शिवसेना की राहें जुदा हो गईं।

भाजपा को लगा सबसे बड़ा झटका

सितंबर के महीने में अकाली दल के एनडीए से अलग होने के कारण भाजपा को जबर्दस्त झटका लगा था। अकाली दल ने कृषि बिल को किसान विरोधी बताते हुए सरकार से अलग रास्ता चुन लिया। मोदी सरकार में अकाली दल की प्रतिनिधि हरिसिमरत कौर ने इस्तीफा देकर मोदी सरकार को भारी झटका दिया। अकाली दल के प्रमुख सुखबीर बादल एनडीए से अलग होने के बाद लगातार मोदी सरकार पर हमला करने में जुटे हैं और उन्होंने मोदी सरकार को किसान विरोधी बताया है। उनका कहना है कि हमें कृषि बिलों की वापसी से कम कुछ भी मंजूर नहीं है।

इन दलों ने भी छोड़ा साथ

शिवसेना और अकाली दल के अलावा पश्चिम बंगाल में भाजपा के सहयोगी रहे गोरखा जनमुक्ति मोर्चा ने भी एनडीए से किनारा कर लिया है। कर्नाटक में प्रज्ञान वथा पार्टी ने भी एनडीए से अलग राह चुन ली है। इन दोनों के अलावा बिहार में उपेंद्र कुशवाहा की अगुवाई वाली आरएलएसपी और उत्तर प्रदेश में ओमप्रकाश राजभर की अगुवाई वाली सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी ने भी एनडीए को झटका दिया है। उधर जम्मू-कश्मीर में मुफ्ती की पार्टी पीडीपी से भाजपा खुद ही अलग हो गई है। भाजपा के अलग हो जाने के कारण जम्मू-कश्मीर में महबूबा सरकार भी गिर गई थी।

अटल-आडवाणी ने किया था गठन

पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी ने 1998 में एनडीए के गठन का फैसला किया था। उस समय प्रकाश सिंह बादल के नेतृत्व वाले अकाली दल, बाल ठाकरे की शिवसेना, जॉर्ज फर्नांडिस की समता पार्टी और जयललिता की पार्टी अन्नाद्रमुक ने सबसे पहले एनडीए को ज्वाइन किया था मगर पिछले छह वर्षों के दौरान एनडीए छोड़ने वालों की संख्या में लगातार बढ़ोतरी दर्ज की जा रही है।

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