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उत्तर प्रदेश : योगी राज में नाबालिग लड़कियों पर हो रहे हैं जुल्‍म, 5 साल में 9703 से रेप और 25 हज़ार का अपहरण

सीएम योगी आदित्यनाथ (CM Yogi Adityanath) लगातार जुबानी दाव करते हैं कि अपराधियों पर नकेल कसने की कोशिश हो रही है. लेकिन यूपी पुलिस (UP Police) की ज़मीनी हकीकत कुछ और ही है.

उत्तर प्रदेश : योगी राज में नाबालिग लड़कियों पर हो रहे हैं जुल्‍म, 5 साल में 9703 से रेप और 25 हज़ार का अपहरण
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नई दिल्ली. यूपी में अपराधियों के लगातार ताबड़तोड़ एनकाउंटर (Encounter) हो रहे हैं. बावजूद इसके यूपी में अपराधी महिलाओं और बच्चियों को नहीं बख्श रहे हैं. खासकर नाबालिग बच्चियां (Minner girls) बड़ी संख्या में अपराधियों का शिकार बन रही हैं. विधानसभा में रखे गए यूपी क्राइम (Crime in UP) के आंकड़े चौंकाने और परेशान करने वाले हैं. बच्चियों के साथ होने वाले रेप और अपहरण के केस हजारों की संख्या में पहुंच गए हैं. सीएम योगी आदित्यनाथ लगातार अपराधियों पर नकेल कसने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन ज़मीनी हकीकत कुछ और है. पुलिस अफसरों पर ही अब अपराधियों संग साठगांठ के आरोप लगने लगे हैं.

17 दिसम्बर 2019 को यूपी के विधानसभा सत्र के दौरान भी प्रदेश में बच्चियों के साथ होने वाले क्राइम का मामला उठा था. विधायक सुषमा पटेल ने यह मामला उठाया था. विधायक द्वारा उठाए गए सवाल के जवाब में यूपी सरकार ने बच्चियों के साथ होने वाले क्राइम के आंकड़े पेश किए थे.

यूपी में एक जनवरी, 2015 से 30 अक्टूबर, 2019 तक 18 साल से कम उम्र की बच्चियों के मर्डर के 988, रेप 9703, अपहरण 25615 और दूसरे गंभीर अपराध के 2607 मामले दर्ज किए गए थे. दर्ज मामलों में से हत्या में शामिल 121, रेप में 1105, अपहरण में 786 और दूसरे गंभीर अपराधों में शामिल 118 आरोपियों को कोर्ट द्वारा दोषी करार दिया गया है. वहीं हत्या के 20, रेप 189, अपहरण 1704 और दूसरे गम्भीर अपराधों में दर्ज 76 मामलों की जांच चल रही है.

एक साल में बढ़ गए 11 हजार केस

अगर यूपी में महिलाओं और बच्चियों के साथ होने वाले अपराधों की बात करें तो कमी यहां भी नहीं आई है. एक साल में ही महिलाओं और बच्चियों के साथ हुए अपराधों में 11208 केसों की बढ़ोतरी हो गई. मार्च 2018 में विधायक नाहिद हसन ने यह मामला विधानसभा में उठाया था.

विधायक ने 1 अप्रैल 2016 से लेकर 31 जनवरी 2017 तक महिलाओं और बच्चियों के साथ हुए रेप, अपहरण, छेड़छाड़, दहेज हत्या और शीलभंग से जुड़े मामलों की जानकारी मांगी थी. वहीं इसकी तुलना में 1 अप्रैल 2017 से लेकर 31 जनवरी 2018 में भी हुए इस तरह के मामलों का आंकड़ा सदन में रखा गया था.

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