SC ने किया साफ, वोट के लिए धर्म का इस्तेमाल गैरकानूनी
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसले में कहा है कि वोट और चुनाव प्रचार के लिए धर्म का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है। कोर्ट ने कहा है कि प्रचार के दौरान इस तरह से धर्म का इस्तेमाल करना गैरकानूनी है। अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि धर्म, भाषा, समुदाय और जाति के आधार पर कोई उम्मीदवार या उसका प्रतिनिधि प्रचार नहीं कर सकता है। 7 जजों की संवैधानिक पीठ ने ये फैसला सुनाया है।
सुप्रीम कोर्ट की पीठ में 4 जजों ने इस फैसले पर अपनी सहमति दी जबकि 3 इसके विरोध में थे। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ईश्वर और मनुष्य के बीच संबंध व्यक्तिगत चुनाव है। धर्म से जुड़े मसलों का पालन करने की आजादी का राष्ट्र के सेक्युलर चरित्र से कुछ लेना-देना नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट ने बहुमत के आधार पर अपने फैसले में कहा कि धर्म के आधार पर वोट देने की कोई भी अपील चुनावी कानूनों के तहत भ्रष्ट आचरण के बराबर है। शीर्ष न्यायालय ने बहुमत के आधार पर व्यवस्था दी कि चुनाव कानून में 'उनका' शब्द का अर्थ व्यापक है और यह उम्मीदवारों, मतदाताओं, एजेंटों आदि के धर्म के संदर्भ में है।
बहुमत का विचार हालांकि यह था कि चुनाव कानून में 'उनका' शब्द केवल उम्मीदवार के संदर्भ में है। शीर्ष न्यायालय में बहुमत का विचार प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति टी एस ठाकुर, न्यायमूर्ति एम बी लोकुर, न्यायमूर्ति एल एन राव, न्यायमूर्ति एस ए बोबडे का था, जबकि अल्पमत का विचार न्यायमूर्ति यू यू ललित, न्यायमूर्ति ए के गोयल और न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ का था।
चुनाव आयोग के मुताबिक धर्म के नाम पर चुनाव प्रचार नहीं किया जा सकता है। आयोग ने पहले ही इसे लेकर नियम तय किया हुआ है लेकिन फिर भी ऐसा होता है क्योंकि इस पर कानून साफ नहीं था। सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने इसे ही परिभाषित किया।
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