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उत्तर प्रदेश

जानिए कौन है सहारनपुर हिंसा में उभरी 'भीम आर्मी' ?

जानिए कौन है सहारनपुर हिंसा में उभरी भीम आर्मी ?
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लखनऊ: सहारनपुर के शब्बीरपुर में हुई जातीय हिंसा के बाद एक ऐसा नाम सामने आया। जिसके नाम से पुलिस-प्रशासन में खलबली मच गई। वहीं जैसे-जैसे ये नाम सोशल मीडिया के जरिए दलितों में फैला तो वेस्ट यूपी के दलितों ने भी इसका समर्थन किया। इतना ही नहीं बल्कि दलितों ने हिंदू-धर्म को त्यागने तक का ऐलान कर दिया। धर्म-परिवर्तन करने की शुरूआत भी सहारनपुर से हुई। वहां पिछले सप्ताह पहले तीन गांवों के 180 दलित परिवारों ने हिंदू-धर्म को त्यागकर बौद्ध-धर्म अपनाया। इसके बाद सहारनपुर के ही पांच गांवों के 50 लोगों ने बौद्ध-धर्म अपनाया।


भीम आर्मी क्या है

आपको बता दें कि भीम आर्मी संगठन ही वो नाम है जिसे दलित पूर्ण समर्थन कर रहे हैं। इसके अलावा दलित इस संगठन से तेजी के साथ जुड़ भी रहे हैं। जैसा कि पहले से ऐलान किया गया था कि भीम आर्मी सेना 21 मई को दिल्ली के जंतर-मंतर पर धरना प्रदर्शन करेगी। खास बात यह है कि रविवार को दिल्ली के जंतर-मंतर पर कई हजारों की संख्या में युवा पहुंचे और भीम आर्मी का पूर्ण समर्थन किया। जंतर-मंतर पर भीम आर्मी की भीड़ को देख राजनीतिक पार्टियां भी हैरान रह गई। पहली बार में ही इतनी भीड़ को साथ लाना कोई आसान काम नहीं है इससे साफ अंदाजा लगाया जा सकता है कि दलित अधिक संख्या में इस संगठन से जुड़ेंगे।


कौन है भीम आर्मी का अध्यक्ष

अब आप यह जानकर भी चौंक जाएंगे कि भीम आर्मी संगठन का संस्थापक कौन है। इस संगठन का अध्यक्ष कोई नेता नहीं बल्कि पेशे से वकील चंद्रशेखर आजाद उर्फ रावण है। चंद्रशेखर ने सोशल मीडिया के जरिए काफी सुर्खियां बटोरी है और दलितों को एकत्रित करने का सबसे अच्छा तरीका अपनाया। चंद्रशेखर ने फेसबुक और व्हाट्सअप के जरिए लोगों को भीम आर्मी से जोड़ने का काम किया। इसका असर देखने को भी मिला क्योंकि रविवार को जब दिल्ली के जंतर-मंतर पर भीम आर्मी सेना ने धरना प्रदर्शन किया तो युवा काफी संख्या में पहुंचे। यह संगठन करीब छह साल पहले बनाया गया था।


मायावती के लिए चुनौती

राजनैतिक विशेषज्ञों का मानना है कि यह संगठन यूपी में मायावती की राजनीति के लिए संकट बन सकता है। बता दें कि इस संगठन के अध्यक्ष चंद्रशेखर आजाद की लोकप्रियता दलित युवाओं में तेजी से बढ़ी है। जंतर-मंतर पर हुए प्रदर्शन में इसका सबूत भी मिला जब चंद्रशेखर आजाद के मुखौटों में कई युवा दिखाई दिए।


वोटबैंक की राजनीति से दलितों का मन उचटा

बताया जा रहा है कि दलितों के बीच मायावती का तिलिस्म टूटता जा रहा है। हाल के समय में जिस तरह से दलितों ने अन्य पार्टियों को बसपा पर तरजीह दी है, उससे यह साबित होता है कि दलित अब वोटबैंक बनकर ऊब गए हैं और असल में समाज का विकास चाहते हैं। भीम आर्मी ने जिस तरह से दलितों की दबी कुचली आवाज को समर्थन दिया है

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