Janskati Samachar
देश

गाँव के विकास के बिना देश का विकास संभव नहीं - संदीप यादव

बेलवा पंचायत के युवा मुखिया प्रत्यासी संदीप यादव ने कहा कि आजादी के बाद विकास की जो संकल्पना की गई थी, उसमें रोजगार के अवसरों के विकेंद्रीकरण का विचार प्रमुख था। उद्योग-धंधे केवल महानगरों तक सीमित न हों।

गाँव के विकास के बिना देश का विकास संभव नहीं - संदीप यादव
X

पटना : बेलवा पंचायत के युवा मुखिया प्रत्यासी संदीप यादव ने कहा कि आजादी के बाद विकास की जो संकल्पना की गई थी, उसमें रोजगार के अवसरों के विकेंद्रीकरण का विचार प्रमुख था। उद्योग-धंधे केवल महानगरों तक सीमित न हों। उन्हें दूर-दराज के इलाकों में स्थापित किया जाए, ताकि उन इलाकों तक अच्छी सड़कें पहुंच सकें, शिक्षा की अच्छी सुविधा उपलब्ध हो सके, स्थानीय लोगों को रोजगार के लिए दूर-दूर शहरों में न भागना पड़े। मगर यह विचार पल्लवित नहीं हो सका। विकास की चकाचौंध महानगरों तक सिमटती गई, जहां रेल और हवाई सेवाओं का संजाल हो, शिक्षा और चिकित्सा की बेहतर सुविधाएं उपलब्ध हों। इसका नतीजा यह हुआ है कि दिल्ली, मुंबई, बंगलुरू जैसे महानगरों में रिहाइशी मकानों, सड़कों पर सुचारू रूप से चलने की मुश्किलें बढ़ती गई हैं।

अगर विकास का पैमाना भागती-दौड़ती जिंदगी हो, बहुमंजिले मकान हों और अच्छी-खासी चौड़ी सड़कों पर दौड़ते वाहन हों या सड़क पार करने के लिए जान की बाजी लगा कर कलाबाजी करनी हो, तो इस तरह बड़े से लेकर छोटे, मंझोले शहरों ने खूब तरक्की की है। पर यह विकास का एक अधूरा चेहरा है। यह हम सबका सपना नहीं हो सकता। आज विकास के जो सपने देखे जा रहे हैं, उनमें गांव कितना है, यह देखना जरूरी है। गांव क्यों बदहाल हो रहे हैं, वहां रोजगार की संभावनाएं पैदा क्यों नहीं हो पा रही हैं, लोग पारंपरिक रोजगार और खेती से विमुख क्यों हो रहे हैं, इन सबका भी आकलन होना चाहिए।

जबकि वैश्विक स्थितियों में हकीकत यह है कि अब विकास के विचार को किसी भी केंद्र से साकार किया जा सकता है। आज जो विकास की संरचना बन रही है वह केवल भागती हुई गति के साथ नहीं, बल्कि एक संजाल की गति से भी निर्धारित हो सकती है। इंटरनेट ने दुनिया को एक गांव में बदल दिया है। कहीं से भी रोजगार को संचालित किया जा सकता है। अब विकास का केंद्र कहीं भी हो सकता है। गांव से लेकर शहर, हर कहीं से विकास के द्वीप को देखा और जांचा जा सकता है। फिर गांवों में क्यों नहीं विकास की ऐसी योजनाएं तैयार की जा रहीं, जिनसे युवाओं को गांवों से जोड़े रखा जा सके, उनका पलायन रोका जा सके। शहरों में ही सारी योजनाएं क्यों आकार पा रही हैं?

आज कुछ भी नया बनाने की जरूरत नहीं है। जो है उसे नए तरीके से देखने की जरूरत है। आज हमारे सोचने का तरीका बदल गया है। विचार के लिए एक केंद्र की जरूरत नहीं है, बल्कि अनंत केंद्रों से जीवन को संचालित किया जा सकता है। किसी एक बंधे-बंधाए जीवन से ही संसार को नहीं समझा जा सकता। अब तो विचार को समझने के लिए हमारे ताने-बाने में अनेक नए केंद्र बन रहे हैं। इन केंद्रों से ही जीवन को समझने की जरूरत है। अब विकास की मनोभूमि को केवल सत्ता के केंद्र से नहीं चलाया जा सकता, बल्कि सत्ता के अलावा भी जीवन के जितने प्रसारण केंद्र हैं, वे अब तकनीक की गति से कार्य कर रहे हैं- इसलिए कहीं से भी तकनीकी गति के साथ चलने और चलाने की कोशिश की जा सकती है।

अपने घर के करीब जीने और बेहतर ढंग से जीने का संसाधन मिलेगा तो कोई भी दूर क्यों जाना चाहेगा ! इस स्थिति में गांव सामाजिकता और रोजगार दोनों के केंद्र होंगे, तो लोगों को अपनी ओर खींचेंगे। वैसे भी भारत का सामाजिक और सांस्कृतिक विकास कृषि आधारित रहा है, इसलिए यहां लोग स्वभाव से ही गांव के जीवन और ढांचे को पसंद करते हैं। इस क्रम में स्वाभाविक है कि गांव भी बड़े केंद्र बनेंगे। सही मायने में वे जीवन के, विकास के भागीदार बनेंगे। गांव में पूंजी आए तो गांवों का भी विकास और चमक-दमक से रिश्ता हो सकता है। मगर स्थिति यह है कि ग्राम प्रशासन को भ्रष्टाचार की जकड़बंदी से निकालना कठिन बना हुआ है। अगर ग्राम प्रशासन छोटी-छोटी इकाइयों के रूप में विकास के नए आयाम रचें तो सचमुच विकास का सपना काफी हद तक पूरा हो सकेगा।

अब तकनीकी संजाल के साथ गांव-शहर की दूरी को खत्म करते हुए विकास को ग्रामीण संरचना में लेकर चलने की जरूरत है। गांव, हमारे सामाजिक और नैतिक जीवन की धुरी हैं। गांव के किनारे से सभ्यता और संस्कृति का पाठ हम सदियों से पढ़ते आ रहे हैं। बस विचार की दिशा को मोड़ने की जरूरत है। गांव की ओर रोजगार हो, यह सबसे बड़ा प्रश्न है। कृषि आधारित सपने देखने की जरूरत है। जो पीढ़ी आ रही है उसे कैसे अपने सामाजिक केंद्र गांव की ओर मोड़ा जाए, उन सुविधाओं पर ध्यान देने की जरूरत है।

हमे इस बात को बिल्कुल भूलना नहीं चाहिए कि गाँव के विकास के बिना देश का विकास होना बिल्कुल भी संभव नहीं है. थोड़ी सी सफाई या कुछ सुविधाएँ प्रदान कर देने मात्र से गांवों का उद्धार होना बहुत मुश्किल है. बदलते वक्त के साथ अगर भारतीय गांवों पर ध्यान नहीं दिया गया तो इनका अस्तित्व खतरें में पड़ सकता है।

Next Story
Share it