जौनपुर का कालीन बुनकर प्रेम प्रकाश सिंह कैसे बना कांट्रैक्ट किलर मुन्ना बजरंगी

Update: 2018-07-09 10:18 GMT

जौनपुर। इमरती के लिए विख्यात जौनपुर को जरायम की दुनिया में प्रेम प्रकाश सिंह उर्फ मुन्ना बजरंगी ने भी बड़ी पहचान दी। कालीन बुनकर से आठ लाख के ईनामी कांट्रैक्ट किलर मुन्ना बजरंगी ने 34 वर्ष पहले जरायम की दुनिया में कदम रखा था और फिर पलटकर नहीं देखा। मुन्ना बजरंगी ऐसे परिवार से था, जो बेहद सामान्य था और किसी तरह से मुफलिसी में अपना जीवन गुजारता था। मुन्ना बजरंगी ने कभी कालीन बुनकर का काम तो कभी वाहन चलाकर दो जून की रोटी का जुगाड़ किया था। इसके बाद पस्थितियों और सोहबत ने उस किनारे पर लाकर खड़ा कर दिया कि मजबूरी और तंगहाली का शिकार यह साधारण व्यक्ति पूरे प्रदेश में आतंक का पर्याय बन गया। मामूली बात को लेकर हत्या हुई तो फिर जरायम का सिलसिला चल पड़ा। इसके बाद भाड़े पर हत्याएं, गैंगवार, अपहरण, लूट, रंगदारी जैसे संगीन अपराधों ने माफियाराज में मुन्ना बजरंगी एक खतरनाक नाम दिया।


मूलरूप से जौनपुर के सुररी थानांतर्गत पूरेदयाल कसेरू गांव के पारसनाथ सिंह के चार बेटों में सबसे बड़े प्रेम प्रकाश सिंह उर्फ मुन्ना का जन्म 1967 में हुआ। परिवार की माली हालत ठीक नहीं थी, लिहाजा मुन्ना ने क्षेत्र में ही व्यवसायी के यहां कालीन बुनकर का काम करना शुरू किया। हालांकि यहां की परिस्थितियां उसे रास नहीं आ रही थीं। यहां कुछ ऐसे लोग भी मिलते जिनका अपराध की दुनिया से रिश्ता था। वक्त के साथ मुन्ना भी उसी संगत में आ गया। अपराध की कहानी उनकी जुबानी सुन उसे भी गैंगस्टर बनने का शौक लगने लगा। अब मुन्ना इस दुनिया में रूचि लेने लगा था। इसी दौरान 1984 में ही कालीन व्यवसायी की हत्या हो गई और इसका आरोप मुन्ना पर लगा। इसके बाद गोपालापुर में कई साथियों के साथ मिलकर एक बड़ी लूट को अंजाम देने का आरोप लगा। अब तक मुन्ना पुलिस की आंख की किरकिरी बन चुका था। दबाव बढ़ा तो उसे क्षेत्र छोडऩा पड़ा। जानकारों की मानें तो उसने फैजाबाद का रूख किया। यहां तो उसे अपराधियों का एक बड़ा गैंग ही मिल गया। फिर उनके साथ मिल कर ताबड़तोड़ वारदात को अंजाम देने लगा।


अब तक कई जिलों की पुलिस के लिए सिरदर्द बन चुके प्रेम प्रकाश सिंह उर्फ मुन्ना को अपना नाम बदलना पड़ा। फैजाबाद में ही उसने खुद को बजरंगी नाम से प्रचारित किया। फिर जौनपुर की कई घटनाओं से उसका नाम जुड़ा। आरोप लगा कि यहां सक्रिय गैंग के साथ रह कर उसने कई सनसनीखेज वारदातों को अंजाम दिया। वह तब बहुचर्चित हुआ जब मई 1993 में बक्शा थानांतर्गत भुतहां निवासी भाजपा नेता रामचंद्र सिंह, सहयोगी भानुप्रताप सिंह व सरकारी गनर आलमगीर की कचहरी रोड पर भरी भीड़ में ताबड़तोड़ गोली मार कर हत्या कर दी गई। हत्या के बाद गनर की कार्बाइन भी लूट ली गई। इसका आरोप भी मुन्ना बजरंगी और अन्य कुछ लोगों पर लगा। अदालत ने बाद में मुन्ना को बरी कर दिया और अपराध जगत में यहीं से उसका दबदबा कायम हो गया। 24 जनवरी 1996 में रामपुर थानांतर्गत जमालापुर बाजार में तत्कालीन ब्लाक प्रमुख कैलाश दुबे, जिला पंचायत सदस्य राजकुमार सिंह व अमीन बांके तिवारी की सरेशाम हत्या कर दी गई। इस वारदात के बाद मुन्ना पूरे पूर्वांचल में न केवल आतंक का पर्याय बन गया बल्कि छोटे-छोटे अपराधियों की फौज भी खड़ी कर ली। अब तो आए दिन कहीं न कहीं सनसनीखेज हत्याएं होती रहतीं और बजरंगी चर्चाए खास बनता रहा। किसी मामले में उस पर मुकदमे दर्ज होते तो किसी में वह सिर्फ चर्चा तक ही सिमट कर रह जाता। इस खतरनाक घटना के बाद लखनऊ, वाराणसी, इलाहाबाद, दिल्ली, मुंबई आदि जगहों पर भी किसी बड़े अपराध के समय पुलिस की जुबान पर सिर्फ एक ही नाम होता, मुन्ना बजरंगी।

                   

ऐसे बना कुख्यात                    

जब 1984 के दौरान मुन्ना बजरंगी की अपराध में रूचि बढ़ी तो उसे क्षेत्र के ही निवासी दबंग गजराज सिंह का संरक्षण प्राप्त हो गया। वहीं से उसका नेटवर्क बढ़ता गया। यहां तक कि जब 1996 में जमालापुर तिहरा हत्याकांड हुआ तो गजराज के बेटे विजय उर्फ आलम सिंह को भी आरोपित किया गया। जिसे इस केस में फांसी की सजा सुनाई गई, जो हाईकोर्ट में विचाराधीन है।                     


तब आया चर्चा में                    

उत्तर प्रदेश सहित कई प्रांतों की पुलिस के लिए सिरदर्द बन चुका मुन्ना बजरंगी तब चर्चा में आया जब दिल्ली के समयपुर बादली क्षेत्र में एसटीएफ ने मुठभेड़ में उसे ताबड़तोड़ गोलियां मारीं। 21 गोलियां लगने के बाद भी गंभीर रूप से घायल मुन्ना का करीब एक सप्ताह उपचार चला। हालत सुधरते ही वह रहस्यमय तरीके से अस्पताल से फरार हो गया। इसके बाद 2005 में गाजीपुर के भांवरकोल में मुख्तार अंसारी के सानिध्य में हुई विधायक कृष्णानंद राय की हत्या के कारण चर्चा में आया। इसके बाद वह नाटकीय ढंग से 2009 में मुंबई के मलाड क्षेत्र से गिरफ्तार हुआ।                     


सात लाख तक पहुंचा था इनाम                   

उत्तर प्रदेश सहित महाराष्ट्र व दिल्ली में मोस्ट वांटेड होने, खास तौर से कृष्णानंद राय की हत्या के बाद मुन्ना पर कुल सात लाख रूपये का इनाम घोषित हो चुका था। उसे पकडऩे के लिए कई प्रदेशों की पुलिस और एसटीएफ को इंटरपोल की भी मदद लेनी पड़ती थी।                    


माफिया से माननीय बनने की चाहत                   

अपराध में अपना सिक्का जमाने के बाद मुन्ना की राजनीतिक इच्छा जागृत होने लगी। 2012 के विधानसभा चुनाव में उसने अपना दल से अपने जौनपुर के मडिय़ाहूं विधानसभा क्षेत्र से भाग्य आजमाया, किंतु 35 हजार वोट पाकर तीसरे स्थान पर संतोष करना पड़ा। 2017 के चुनाव में इसी क्षेत्र से उनकी पत्नी सीमा सिंह भी अपना दल कृष्णा पटेल गुट से चुनाव लड़ीं, पर सफल नहीं हुईं।                    


तब जिले में पहली बार तड़तड़ाई एके-47               

जमालापुर तिहरा हत्याकांड जौनपुर में अपराध जगत के लिए बिल्कुल अलग और सनसनीखेज वारदात थी। यह पहला मौका था जब हत्या के लिए यहां एके-47 जैसे अत्याधुनिक और खतरनाक हथियार का प्रयोग हुआ था। पूरी तरह फिल्मी अंदाज में बाबतपुर की ओर से मारूति वैन में आए करीब छह बदमाशों ने ब्रस्ट फायर कर 40 राउंड से अधिक गोलियां चलाईं। जिनको मौत के घाट उतारा गया उनसे उसी समय तत्कालीन थानाध्यक्ष लोहा सिंह खड़े होकर बात भी कर रहे थे। अचानक यह स्थिति देख थानाध्यक्ष जमीन पर लेट गए। घटना को अंजाम देने के बाद अपराधी वापस बाबतपुर रोड स्थित बैरियर पर पहुंचे। गोलियों से निशाना बनाते हुए बंद हो रहे बैरियर की रस्सी काट कर वाराणसी की तरफ निकल गए।                     


गांव में सन्नाटा, परिवार के लोग गए बागपत                    

मुन्ना की हत्या की खबर सुबह ही घर पहुंची तो परिवार के सभी सदस्य ताला बंद कर वहां रवाना हो गए। गांव में मातम का माहौल है।             

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