Janskati Samachar
ज्योतिष ज्ञान

आखिर किसानों की दुर्दशा का जिम्मेदार कौन? चौधरी शम्स

कोई जल्दी अपना परिचय भारतीय या किसान के रूप में देता नहीं मिलेगा । किसान को जो इस देश का सबसे शक्तिशाली वर्ग है साजिशन धर्म, जाति एवं उपजातियों में बांटकर सबसे कमजोर, मजबूर व लाचार बना दिया गया है । किसान का वजूद लगभग समाप्त के कागार पर है । किसान स्वयं अपना वजूद मिटाने पर आमादा है वरन् यदि किसान अगर धर्म, जाति व उपजातियों में बंटना नहीं चाहता और संगठित होकर किसान के रूप में रहना चाहता तो था किसी का मज़ाल जो उसे बांटकर अपना काम बना लेता । किसान सिर्फ अपनी समस्याओं को लेकर किसान बनता है, धरना-प्रदर्शन करता है, सड़कें जाम करता है । नतीजतन पुलिस-प्रशासन डंडे से पिटती है और राजनीतिक दलों के लिए शोर-शराबा का एक मुद्दा मिल जाता है । किसान अपने संख्याबल का लाभ उठाने में हमेशा असफल रहा है । जिसके कारण वह अपने को सबसे कमजोर वर्ग बना लिया है । जिसकी समस्याएं कोई सुनने को तैयार नहीं । सरकारों के किसान विरोधी रवैये के कारण किसान आत्महत्यायें करने को मजबूर होते हैं । किसानों के इन्हीं व्यवहारिक कमजोरियों के कारण वामपंथी विचारक कामरेड मार्क्स ने किसानों को सामन्तवाद का एजेंट बताकर Proletarian ( निम्न सामाजिक वर्ग, सर्वहारा, Man of the poorest class ) के गणित से बाहर कर दिया था।


वहीं कॉमरेड माओ ने किसानों को अपने संघर्ष में सम्मिलित कर तरज़ीह दी थी परन्तु किसान अपने व्यवहार के कारण चीन की मुख्यधारा में अपने को स्थापित नहीं कर सका है । यहीं नहीं जब वर्ष-1945 में राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी ने पण्डित जवाहर लाल नेहरू जी को पत्र लिखा था कि "अब हम सबको ग्रामस्वराज का क्रियान्वन आरम्भ करना चाहिए, जिससे गाँव, गरीब, किसान का सशक्तिकरण हो सके" । पण्डित जवाहर लाल नेहरू ने गाँधी जी की यह राय यह कहते हुए अस्वीकार कर दिया था कि गाँव व गाँव का किसान स्वयं अँधेरे में हैं वे देश को क्या उजाला देंगे, देश का क्या विकास करेंगे । यह सत्य है कि देश के किसान अपने महत्व को नहीं समझ सके हैं, उन्हें अपने शक्ति का एहसास नहीं हो सका है । उन्होंने अपने आपको अँधेरे से बाहर निकालने का कभी प्रयास ही नहीं किया । उनकी सबसे बड़ी कमजोरी धर्म व सम्प्रदाय रहा जिसका जमकर फायदा साम्प्रदायिक राजनीति करने वालों ने उठाया । आज किसान धर्म, सम्प्रदाय व जाति में बंटे होने के कारण सबसे कमजोर वर्ग बन गया है और अपने व्यवहार से वह साम्प्रदायिक ताकतों का मोहरा बना हुआ है और किसान वजूद को स्वयं अपने हाथों मिटाने पर आमादा है।


यही कारण है कि सत्ता पर काबिज़ केंद्र की सरकार हों या राज्यों की सरकारें किसानों को महत्व नहीं देतीं और उनके मांगों को गम्भीरतापूर्वक नहीं लेती । अपनी समस्याओं को लेकर जब भी किसान आंदोलन करता है या धरना-प्रदर्शन करता है तो सरकारें क्रूरतापूर्वक किसानों के साथ पेश आती हैं और पुलिस-प्रशासन से पिटवाती है यहां तक कि किसानों के साथ ज़ालिम अंग्रेजों जैसा दमनकारी ढंग अपनाते हुए गोली चलवाकर किसानों को मौत के घाट उतारने से भी परहेज नहीं करतीं । देश का किसान यदि अपने हितों की उम्मीद यदि केंद्र की मोदी सरकार से लगा रखा है तो उसके भाजपा को वोट देने के निर्णयों जैसा पुनः वह एक भारी भूल कर रहा है क्यों कि भाजपा के पार्टी संविधान में किसान शब्द है ही नहीं । उनका पूरा का पूरा पार्टी संविधान हिन्दू बनाम मुसलमान का है, धर्म, सम्प्रदाय व जाति आधारित है जिसके आधार पर वे अपना वर्चस्व बनाये हुए हैं और भविष्य के लिए भी बराबर प्रयासरत रहते हैं । यह सभी जानते हैं कि यदि देश के किसानों ने खेती करना छोड़ दिया तो यह अकाट्य सत्य है कि तपस्वी का तप, उधोगपतियों के कारखाने, नेताओं के भाषण और देश के विकास की बातें सब धरे के धरे रह जायेंगे । देश का किसान साम्प्रदायिक शक्तियों के चँगुल में फंसा छटपटा तो रहा है लेकिन चँगुल से निकल नहीं पा रहा है । अभी भी उसकी आत्मज्ञान व आत्मबल की कमी उसकी आज़ादी में बाधा उतपन्न कर रही है ।


देश में किसान जागरण की सुगबुगाहट शुरू हो चुकी है । देश किसानक्रांति का दर्शन करने वाला है । किसान क्रांति से ही देश में कोढ़ रूपी साम्प्रदायिक शक्तियां व वर्चस्ववाद का अंत होना तय है । जब-जब धरती पर अत्याचार व अन्याय बढ़ा है तब-तब उसके अंत के लिए अवतार हुए हैं । कलियुग में वर्चस्ववाद व साम्प्रदायिक ताकतों के अत्याचार, अन्याय के अंत के लिए किसान जागरण व किसान क्रांति का आगाज़ एक अवतार के रूप में होगा और इसका वेग समुद्री तूफ़ान सुनामी व कैटरिना से भी भयंकर होगा । परिणाम स्वरूप देश से वर्चस्ववाद, दक्षिणपंथियों व साम्प्रदायिक शक्तियों का नाश होकर किसान हित में देश में समाजवादी लोकतन्त्र स्थापित होगा।

लेखक 'युनिवर्सल टुडे' संपादक हैं

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