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कृषि कानून पर किसान आर पार के मूड में, पढ़ें, क्यों देश का अन्नदाता कर रहा है विरोध?

मौजूदा समय में किसानों को अपनी उपज की बिक्री के लिए कई तरह के मुश्किलों का सामना करना होता है। अधिसूचित कृषि उत्पाद विपणन समिति (APMC) वाले बाज़ार से बाहर उपज बेचने पर कई तरह की पाबंदियां हैं। किसान राज्य सरकारों की ओर से रजिस्टर्ड लाइसेंसधारियों को ही उपज बेच सकते हैं। साथ ही राज्य सरकारों द्वारा लागू विभिन्न APMC नियमों के चलते एक राज्य के किसान अपना अनाज दूसरे राज्य में बेच भेज पाते।

Why is the countrys farmers opposing the agriculture law?
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नई दिल्ली: राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली से लगे पंजाब-हरियाणा बॉर्डर और देश के चुनिंदा इलाकों में किसान बुरी तरह खफा हैं। किसान आंदोलन को लेकर गतिरोध बढ़ता ही जा रहा है। चार दिन हो गए और किसान किसी भी सूरत में दिल्ली सीमा छोड़कर जाना नहीं चाहते। बातचीत का न्यौता मिला है, लेकिन जब तक तसल्ली न हो जाय किसान झुकने के मूड में नहीं हैं। सरकार बार बार तोहमत लगाती है कि विपक्ष किसानों को भड़का रहा है, साथ ही किसानों को समझाने की कोशिश में है कि तीनों नए कृषि संशोधन कानून (agri laws) किसानों के हित में हैं। हम इसी स्थिति को बेहतर और आसान भाषा में समझने की कोशिश करते हैं कि आखिर किसानों का गुस्सा किस हद तक जायज है? क्या सरकार वाकई किसानों के साथ ज्यादती पर उतर आई है? नए कृषि कानून के फायदे और नुकसान क्या है?

मौजूदा समय में किसानों को अपनी उपज की बिक्री के लिए कई तरह के मुश्किलों का सामना करना होता है। अधिसूचित कृषि उत्पाद विपणन समिति (APMC) वाले बाज़ार से बाहर उपज बेचने पर कई तरह की पाबंदियां हैं। किसान राज्य सरकारों की ओर से रजिस्टर्ड लाइसेंसधारियों को ही उपज बेच सकते हैं। साथ ही राज्य सरकारों द्वारा लागू विभिन्न APMC नियमों के चलते एक राज्य के किसान अपना अनाज दूसरे राज्य में बेच भेज पाते। हद स्थिति ये कि राज्य के भीतर भी एक शहर से दूसरे शहर तक किसानों को अपनी उपज बेचने में तमाम परेशानियों से दो चार होना पड़ता है। मंडियों में 5-7 आढ़तिये ही मिलकर किसानों की फसल की कीमत तय करते हैं जिसमें किसानों की कोई भागीदारी नहीं होती थी।

नये कानून से किसानों को क्या फायदा मिलेगा?

नये कृषि कानूनों का सीधा मकसद विनियमित मंडियों के बाहर बिना किसी दिक्कत के विभिन्न राज्यों तक किसान सीधे उत्पाद को बेच सकें। किसानों के लिए अच्छी बात ये है कि नए प्रावधानों के तहत उन्हें खरीद बेच करने के ज्यादा बेहतर ऑप्शन्स मिलने वाले हैं। अगर किसान अधिसूचित मंडियों (APMC) को अपनी उपज नहीं बेचना चाहता तो उस पर कोई दबाव नहीं होगा। वो कहीं भी ऊंचे दामों पर अपना उत्पाद बेच सकता है। साथ ही कीमत तय करने की भी उसे आजादी होगी। अगर किसी खास राज्य में उपज बेहतर हुई है, और उस राज्य में किसान को उचित मुनाफा नहीं मिल पा रहा है, तो वो अपना उत्पाद ऐसे राज्य में जाकर बेच सकेगा जहां इसकी किल्लत है। नए कानूनों के तहत बिचौलियों की भूमिका गौण हो जाती है। साथ ही डिजिटल ऑनलाइन ट्रेडिंग के लिए भी नए संशोधन में प्रावधान है। किसानों को उनकी उपज बिक्री के फायदे से कोई भी कर चुकाना नहीं होगा। अगर सरकारी मशीनरी किसी किसान को परेशान करती है तो वो प्रस्तावित विवाद समाधान तंत्र में इसकी शिकायत कर सकता है।

नए कानूनों से क्या हो सकती है दिक्कतें?

नया कानून कई मायनों में किसानों को फायदा दिलाने वाला है। बावजूद इसके स्थानीय बाज़ार में किसानों को अपनी उपज का न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की गारंटी नहीं होगी। ऐसा इसलिए क्योंकि किसानों के उत्पाद की कीमत बाजार भाव ही तय करेगा। अगर बाजार सुस्त रहा तो किसानों को भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है। देश के विभिन्न राज्यों में अधिकांश किसान छोटे व सीमांत हैं, जिन्हें MSP सुनिश्चित नहीं होने के चलते परेशानी हो सकती है। ऐसे किसानों के पास संसाधनों का घोर अभाव होता है। वो खराब होने वाली अपनी उपज कहीं और जाकर बेच पाएं, इसमें संदेह ही है। ये अलग बात है कि सरकार MSP व्यवस्था नहीं खत्म करने की बात किसानों को बार बार समझा रही है।

केंद्र के कृषि कानून में क्रांतिकारी बात ये है कि अब बड़े कॉरपोरेट खरीदार सीधे तौर पर बिना किसी नियंत्रण के किसानों से खरीद कर पाएंगे। इन कॉर्पोरेट्स के लिए किसी तरह के रजिस्ट्रेशन की बाध्यता नहीं होगी। किसानों की आशंका है कि कॉर्पोरेट खरीदार इनकी मजबूरी का फायदा उठाकर बाद में शोषण पर उतारू हो सकते हैं। किसानों के पास MSP पर उपज बेचने का विकल्प तो होगा। वहीं इससे बाहर किसान अगर बिक्री करना चाहें तो उस पर सरकार का कोई नियंत्रण नहीं होगा। किसानों की दलील है कि नई व्यवस्था में धीरे धीरे न्यूनतम समर्थन मूल्य की प्रासंगिकता ही खत्म हो जाएगी। इसके बाद कॉर्पोरेट की लूट का इन्हें शिकार होना पड़ सकता है।

क्या मौजूदा व्यवस्था से खुश हैं किसान?

किसानों से बात करें तो वे मौजूदा मंडी व्यवस्था से भी खुश नहीं हैं। मंडियों में किसानों को लंबा इंतजार करना पड़ता है क्योंकि पर्याप्त सरकारी मंडियों का अभाव है। जानकार बताते हैं कि पूरे देश में करीब 7000 मंडियां हैं, जबकि इसकी दरकार 42000 के करीब की है। नई मंडियां तो बनाई नहीं जा रही, बल्कि पुरानी मंडियों को खत्म किया जा रहा है। साथ ही किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य से भी वंचित होना पड़ रहा है। जानकार ये भी दलील देते हैं कि 1970 से लागू MSP व्यवस्था अगर इतनी ही अच्छी थी तो किसान आज भी पिछड़े क्यों हैं? माना जाता है कि देश के महज 6 फीसदी किसानों को ही MSP का फायदा मिल पाता है। जबकि 85 फीसदी सीमांत किसानों को औने पौने भाव पर अपनी उपज बेचनी होती है।

केंद्र के नए किसानों के लिए बने कानून से किसानों को सीधे प्रसंस्करणकर्त्ताओं, थोक विक्रेताओं, बड़े खुदरा कारोबारियों, निर्यातकों के साथ सीधे तौर पर जुड़ने का मौका मिलेगा। इसके खिलाफ दलील दी जा रही है कि इस तरह की व्यवस्था में कान्ट्रैक्ट फार्मिंग को बढ़ावा मिलेगा। पूंजीपति या ठेकेदार किराये पर जमीन लेकर खेती करवाएंगे और कंपनियों का लेबल लगाकर सीधे उत्पाद ऊंची कीमतों पर बेच सकेंगे। बिचौलियों की जगह बड़े पूंजीपतियों का कारोबार फलने फूलने लगेगा। हालत ये सकती है कि किसान अपनी जमीन पट्टा पर देकर नौकरी करने लगेगा। ज्यादातर किसान कम पढ़े लिखे हैं जो कॉर्पोरेट मैनेजर्स से मोल भाव नहीं कर पाएंगे।

नए कृषि कानूनों से फायदा?

किसानों के लिए लाए नए कानूनों में कई लोकप्रिय बातें भी हैं। मसलन युद्ध, अकाल, असाधारण मूल्य वृद्धि और प्राकृतिक आपदा जैसी परिस्थितियों में इन कृषि उपजों की कीमतों को सरकार कंट्रोल कर सकती है। एक बार किसान किसी व्यापारी से कॉन्ट्रैक्ट कर लेता है तो उसे उपज पहुंचाने की जरूरत नहीं होगी। बल्कि कारोबारी खुद खेत से उपज उठवाएगा। माना जाता है कि नए कृषि कानून संशोधन से कृषि क्षेत्र में निवेश, किसानों की आय दोगुनी करने और ईज़ ऑफ डूइंग बिज़नेस (Ease of Doing Business) को बढ़ावा मिलेगा।

क्या चाहते हैं किसान?

किसानों की मांग है कि प्रस्तावित कृषि संशोधन कानून में ये संशोधन किया जाय कि किसी भी हाल में उपज न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम कीमत पर नहीं खरीदी जा सकेगी। किसानों के मन में डर है कि धीरे धीरे सरकार एपीएमसी (APMC) मंडियों को खत्म कर देगी। लिहाजा किसानों की सुरक्षा के लिए कानून में मंडी व्यवस्था को बेहतर करने के प्रावधान शामिल करने पर जोर दिया जा रहा है। किसानों को ये भी डर है कि जब बड़े किसान मंडियों को छोड़ बाहर कारोबार करेंगे तो मंडी व्यवस्था कमजोर पड़ जाएगी और सीमांत किसानों को इसका नुकसान उठाना पड़ सकता है।

सरकार ने सफाई में क्या कहा?

केंद्र सरकार बार बार किसानों को समझाने की कोशिश कर रही है। किसानों को बताया जा रहा है कि सरकार की तरफ से निर्धारित किये रेट पर उपज बेचने का विकल्प कभी खत्म नहीं किया जाएगा। मंडी व्यवस्था जारी रहेगी। सरकार की दलील है कि नए संशोधनों के चलते आम किसानों को बड़ा फायदा मिलने वाला है। सरकार की दलीलों पर किसानों का उल्टा सवाल है। किसान कहते हैं कि उनके पास भंडारण की सुविधा नहीं है। मंडिया कमजोर हुई तो कॉरपोरेट के दबाव में उनकी मर्जी और रेट पर ही उन्हें उपज बेचना होगा। ऐसे में हो सकता है आने वाले समय में उनका शोषण हो। वहीं सरकार इसका विकल्प भी सुझा रही है। सरकार का प्रोत्साहन है कि छोटे और सीमांत किसान अपना संगठन बना लें। साथ ही कोल्ड स्टोरेज को दुरुस्त किया जाएगा। सरकार की राय है कि किसान संगठित होकर कॉरपोरेट और बड़े व्यापारियों से बेहतर रेट के लिए बार्गेन कर सकते हैं।

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