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Vinayak Damodar Savarkar Biography in Hindi | विनायक दामोदर सावरकर का जीवन परिचय

Vinayak Damodar Savarkar Biography in Hindi | विनायक सावरकर का जन्म महाराष्ट्र (तत्कालीन नाम बम्बई) प्रान्त में नासिक के निकट भागुर गाँव में हुआ था। उनकी माता जी का नाम राधाबाई तथा पिता जी का नाम दामोदर पन्त सावरकर था।

Vinayak Damodar Savarkar Biography in Hindi | विनायक दामोदर सावरकर का जीवन परिचय
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Vinayak Damodar Savarkar Biography in Hindi | विनायक दामोदर सावरकर का जीवन परिचय

Vinayak Damodar Savarkar Biography in Hindi | विनायक दामोदर सावरकर का जीवन परिचय

  • नाम विनायक दामोदर सावरकर
  • जन्म 28 मे 1883
  • जन्मस्थान भगुर ग्राम
  • पिता दामोदर सावरकर
  • माता राधाबाई सावरकर
  • पत्नी यमुनाबाई
  • पुत्र विश्वास, प्रभात चिपलूनकर, प्रभाकर
  • शिक्षा बैचलर ऑफ आर्ट्स
  • व्यवसाय भारतीय स्वतंत्रता कार्यकर्ता और राजनीति
  • नागरिकता भारतीय

Vinayak Damodar Savarkar Biography in Hindi | विनायक सावरकर का जन्म महाराष्ट्र (तत्कालीन नाम बम्बई) प्रान्त में नासिक के निकट भागुर गाँव में हुआ था। उनकी माता जी का नाम राधाबाई तथा पिता जी का नाम दामोदर पन्त सावरकर था। इनके दो भाई गणेश (बाबाराव) व नारायण दामोदर सावरकर तथा एक बहन नैनाबाई थीं। जब वे केवल नौ वर्ष के थे तभी हैजे की महामारी में उनकी माता जी का देहान्त हो गया। इसके सात वर्ष बाद सन् १८९९ में प्लेग की महामारी में उनके पिता जी भी स्वर्ग सिधारे।

इसके बाद विनायक के बड़े भाई गणेश ने परिवार के पालन-पोषण का कार्य सँभाला। दुःख और कठिनाई की इस घड़ी में गणेश के व्यक्तित्व का विनायक पर गहरा प्रभाव पड़ा। विनायक ने शिवाजी हाईस्कूल नासिक से १९०१ में मैट्रिक की परीक्षा पास की। बचपन से ही वे पढ़ाकू तो थे ही अपितु उन दिनों उन्होंने कुछ कविताएँ भी लिखी थीं। आर्थिक संकट के बावजूद बाबाराव ने विनायक की उच्च शिक्षा की इच्छा का समर्थन किया। इस अवधि में विनायक ने स्थानीय नवयुवकों को संगठित करके मित्र मेलों का आयोजन किया।

शीघ्र ही इन नवयुवकों में राष्ट्रीयता की भावना के साथ क्रान्ति की ज्वाला जाग उठी। सन् १९०१ में रामचन्द्र त्रयम्बक चिपलूणकर की पुत्री यमुनाबाई के साथ उनका विवाह हुआ। उनके ससुर जी ने उनकी विश्वविद्यालय की शिक्षा का भार उठाया। १९०२ में मैट्रिक की पढाई पूरी करके उन्होने पुणे के फर्ग्युसन कालेज से बी.ए. किया।

आरम्भिक जीवन :

पुणे में उन्होंने ̔अभिनव भारत सोसाइटी ̕का गठन किया और बाद में स्वदेशी आंदोलन का भी हिस्सा बने। कुछ समय बाद वह तिलक के साथ ̔स्वराज दल ̕में शामिल हो गए। उनके देश भक्ति से ओप-प्रोत भाषण और स्वतंत्रता आंदोलन के गतिविधियों के कारण अंग्रेज सरकारने उनकी स्नातक की डिग्री ज़ब्त कर ली थी। वर्ष 1906 जून में बैरिस्टर बनने के लिए वे इंग्लैंड चले गए और वहां भारतीय छात्रों को भारत में हो रहे ब्रिटिश शासन के विरोध में एक जुट किया।

उन्होंने वहीं पर ̔आजाद भारत सोसाइटी का गठन किया। सावरकर ने अंग्रेजों से भारत को मुक्त कराने के लिए हथियारों के इस्तेमाल की वकालत की थी और इंग्लैंड में ही हथियारों से लैस एक दल तैयार किया था। सावरकर द्वारा लिखे गए लेख ̔इंडियन सोशियोलाजिस्ट' और ̔तलवार'̕ नामक पत्रिका में प्रकाशित होते थे। वे ऐसे लेखक थे जिनकी रचना के प्रकाशित होने के पहले ही प्रतिबंध लगा दिया गया था।

इसी दौरान उनकी पुस्तक ̔द इंडियन वार ऑफ़ इंडिपेंडेंस 1857' तैयार हो चुकी थी परंतु ब्रिटिश सरकार ने ब्रिटेन और भारत में उसके प्रकाशित होने पर रोक लगा दी। कुछ समय बाद उनकी रचना मैडम भीकाजी कामा की मदद से हॉलैंड में गुपचुप तरीके से प्रकाशित हुयी और इसकी प्रतियां फ्रांस पहुंची और फिर भारत भी पहुंचा दी गयीं। सावरकर ने इस पुस्तक में 1857 के ̔सिपाही विद्रोह' को ब्रिटिश सरकार के खिलाफ स्वतंत्रता की पहली लड़ाई बताया था।

राजनीतिक जीवन :

सावरकर के क्रांतिकारी अभियान की शुरुवात तब हुई जब वे भारत और इंग्लैंड में पढ़ रहे थे। वहा वे इंडिया हाउस से जुड़े हुए थे और उन्होंने अभिनव भारत सोसाइटी और फ्री इंडिया सोसाइटी के साथ मिलकर स्टूडेंट सोसाइटी की भी स्थापना की। उस समय देश को ब्रिटिशो ने अपनी बेडियो में जकड़ा हुआ था इसी को देखते हुए देश को आज़ादी दिलाने के उद्देश्य से उन्होंने द इंडियन वॉर का प्रकाशन किया और उनमे 1857 की स्वतंत्रता की पहली क्रांति के बारे में भी प्रकाशित किया लेकिन उसे ब्रिटिश कर्मचारियों ने बैन (Bann- बर्खास्त) कर दिया।

क्रांतिकारी समूह इंडिया हाउस के साथ उनके संबंध होने के कारण 1910 में उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया था। जेल में रहते हुए जेल से बाहर आने की सावरकर ने कई असफल कोशिश की लेकिन वे बाहर आने में असफल होते गये। उनकी कोशिशो को देखते हुए उन्हें अंडमान निकोबार की सेलुलर जेल में कैद किया गया लेकिन फिर 1921 में उन्हें रिहा भी किया गया था।

जेल में भी सावरकर शांत नही बैठे थे, वहा बैठे ही उन्होंने हिंदुत्व के बारे में लिखा। 1921 में उन्हें प्रतिबंधित समझौते के तहत छोड़ दिया था की वे दोबारा स्वतंत्रता आन्दोलन में सहभागी नही होंगे। बाद में सावरकर ने काफी यात्रा की और वे एक अच्छे लेखक भी बने, अपने लेखो के माध्यम से वे लोगो में हिंदु धर्म और हिंदु एकता के ज्ञान को बढ़ाने का काम करते थे।

सावरकर ने हिंदु महासभा के अध्यक्ष के पद पर रहते हुए भी सेवा की है, सावरकर भारत को एक हिंदु राष्ट्र बनाना चाहते थे लेकिन बाद में उन्होंने 1942 में भारत छोडो आन्दोलन में अपने साथियो का साथ दिया और वे भी इस आन्दोलन में शामिल हो गये। उस समय वे भारतीय राष्ट्रिय कांग्रेस के उग्र आलोचक बने थे और उन्होंने कांग्रेस द्वारा भारत विभाजन के विषय में लिये गये निर्णय की काफी आलोचना भी की.उन्हें भारतीय नेता मोहनदास करमचंद गांधी की हत्या का दोषी भी ठहराया गया था लेकिन बाद में कोर्ट ने उन्हें निर्दोष पाया।

30 जनवरी 1948 को गांधीजी की हत्या के बाद पुलिस ने नाथूराम गोडसे के साथ उनको भी गिरफ्तार किया था क्योंकि गोडसे भी हिन्दू महासभा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का कार्यकर्ता था | सावरकर को 5 फरवरी 1948 को गिरफ्तार कर मुंबई जेल भेज दिया गया | उनको हत्या की साजिश में शामिल होने का इल्जाम लगा था | हालंकि नाथूराम गोडसे ने हत्या की पुरी योजना के लिए खुद को जिम्मेदार ठहराया |17 जनवरी 1948 को फांसी से पहले नाथूराम गोडसे अंतिम बार सावरकर से मिले | सावरकर को सबूतों के आभाव में रिहा कर दिया गया |

अब जेल से रिहा होने के बाद फिर से वो अपने हिंदुत्व अभियान में लग गये थे | उनके कई अनुयायी बन गये थे | 8 नवम्बर 1963 को सावरकर की पत्नी यमुना का देहांत हो गया | 1 फरवरी 1966 से सावरकर ने भोजन पानी त्यागकर आत्मार्पण शुर कर दिया और अपनी मौत से पहले उन्होंने एक लेख लिखा जिसका शीर्षक "आत्महत्या नही आत्मार्पण " था जिस्म उन्हों बताया कि उनके जीवन का उद्देश्य पूर्ण हो चूका है इसलिए अब उनके पास समाज की सेवा करने की ताकत नही है इसलिए मौत का इंतजार करने के बजाय अपना जीवन खत्म कर देना बेहतर है |

सावरकर ने हिन्दू धर्म की व्याख्या करते हुए कहा- "जो इस पुण्य भूमि को अपना मानता है, वही हिन्दू है ।" उन्होंने हिन्दू धर्म को सामाजिक कुरीतियों एवं बुराइयों से मुक्त कराने हेतु आवाहन किया । वे सभी सम्प्रदायों को हिन्दू मानते थे । सावरकर का मत था कि देश का नाम भारतवर्ष थोड़े समय का है । वास्तविक नाम सिन्धुस्तान है ।

हिन्दू धर्म की उदारवादी सोच की व्याख्या करते हुए उन्होंने लिखा- "इस नाम को धार्मिक रंग देना एक भूल है । यह विशुद्ध राष्ट्रीय नाम है । जो हिन्दुत्व की विशेषताएं हैं, वही हमारी राष्ट्रीय विशेषताएं हैं । प्रत्येक व्यक्ति को अपने राष्ट्र के प्रति गौरव एवं स्वाभिमान होना चाहिए ।" हिन्दू की व्याख्या को वे विस्तृत व मानवतावादी मानते हुए देश को हिन्दुत्ववादी राष्ट्र बनाने की महत्त्वाकांक्षा रखते थे ।

सावरकर एक प्रख्यात समाज सुधारक थे। उनका दृढ़ विश्वास था, कि सामाजिक एवं सार्वजनिक सुधार बराबरी का महत्त्व रखते हैं व एक दूसरे के पूरक हैं। 1966 में वीर सावरकर के निधन पर भारत सरकार ने उनके सम्मान में एक डाक टिकट भी जारी किया है।

उस समय हमारे देश मे राजनैतिक अस्थिरता प्रारंभ होने लगी थी तथा लालबहादुर शास्त्री की मृत्यु के उपरांत इंदिरा गांधी देश की नयी प्रधानमंत्री बनी थीं। अपने राजनैतिक विद्रोहियों को जवाब देने के लिये ही वीर सावरकर को यह सम्मान दिया गया था।

अहिंसा के पुजारी के रूप में शायद यह हमारा ही एकमात्र देश भारत ही ऐसा हो सकता है जहां राष्ट्रपिता की हत्या के दो आरोपी फांसी की सजा पायें और एक को राष्ट्रीय सम्मान से नवाजा जाय। इनके नाम पर ही पोर्ट ब्लेयर के विमानक्षेत्र का नाम वीर सावरकर अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा रखा गया है। वीर सावरकर पहले क्रांतिकारी थे जब उनका 26 फरवरी 1966 को उनका स्वर्गारोहण हुआ तब भारतीय संसद में कुछ सांसदों ने शोक प्रस्ताव रखा तो यह कहकर रोक दिया गया कि वे संसद सदस्य नही थे जबकि चर्चिल की मौत पर शोक मनाया गया था।

वीर सावरकर पहले क्रांतिकारी राष्ट्रभक्त स्वातंत्र्य वीर थे जिनके मरणोपरांत 26 फरवरी 2003 को उसी संसद में मूर्ति लगी जिसमे कभी उनके निधन पर शोक प्रस्ताव भी रोका गया था. वीर सावरकर ऐसे पहले राष्ट्रवादी विचारक थे जिनके चित्र को संसद भवन में लगाने से रोकने के लिए कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गाँधी ने राष्ट्रपति को पत्र लिखा लेकिन राष्ट्रपति डॉ. अब्दुल कलाम ने सुझाव पत्र नकार दिया और वीर सावरकर के चित्र अनावरण राष्ट्रपति ने अपने कर-कमलों से किया… वीर सावरकर ने 10000 से अधिक पन्ने मराठी भाषा में तथा 1500 से अधिक पन्ने अंग्रेजी में लिखा है।

उन्होंने अनेक ग्रंथों की रचना की, जिनमें 'भारतीय स्वातंत्र्य युद्ध', मेरा आजीवन कारावास' और 'अण्डमान की प्रतिध्वनियाँ' (सभी अंग्रेज़ी में) अधिक प्रसिद्ध हैं। जेल में 'हिंदुत्व' पर शोध ग्रंथ लिखा। 1909 में लिखी पुस्तक 'द इंडियन वॉर ऑफ़ इंडिपेंडेंस-1857' में सावरकर ने इस लड़ाई को ब्रिटिश सरकार के ख़िलाफ़ आज़ादी की पहली लड़ाई घोषित की थी।

वीर सावरकर न सिर्फ़ एक क्रांतिकारी थे बल्कि एक भाषाविद , बुद्धिवादी , कवि , लेखक और ओजस्वी वक़्ता थे. सावरकर ने ही सर्वप्रथम विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार कर उनकी होली जलाई थी. सावरकर भारत के पहले और दुनिया के एकमात्र लेखक थे जिनकी किताब को प्रकाशित होने के पहले ही ब्रिटिश और ब्रिटिशसाम्राज्यकी सरकारों ने प्रतिबंधित कर दिया था

हालांकि इतने महान क्रांतिकारी का जीवन हमेशा संघर्षों के बीच रहा. 1948 ई. में महात्मा गांधी की हत्या में उनका हाथ होने का संदेह किया गया. इतनी मुश्क़िलों के बाद भी वे झुके नहीं और उनका देशप्रेम का जज़्बा बरकरार रहा और अदालत को उन्हें तमाम आरोपों से मुक्त कर बरी करना पड़ा. किसी क्रांतिकारी स्वतंत्रता सेनानी के लिए बहुत शर्मिदंगी की बात थी कि उसके ऊपर अपने ही देश के सेनानी को मारने का आरोप लगे. खैर सत्ता की चाह में तुच्छ लोगों के मंसुबे कभी कामयाब नहीं हुए और सावरकर जी की छवि आज भी स्वच्छा और एक बेहतरीन स्वतंत्रता सेनानी की है.

सावरकर एक प्रख्यात समाज सुधारक थे. उनका दृढ़ विश्वास था, कि सामाजिक एवं सार्वजनिक सुधार बराबरी का महत्त्व रखते हैं व एक दूसरे के पूरक हैं. सावरकर जी की मृत्यु 26 फ़रवरी, 1966 में मुम्बई में हुई थी. आज वीर सावकर के जीवन से प्रेरित होकर उनपर कई फिल्में बन चुकी हैं.

विचार :

1. ज्ञान प्राप्त होने पर किया गया कर्म सफलतादायक होता है, क्योंकि ज्ञान – युक्त कर्म ही समाज के लिए हितकारक है. ज्ञान – प्राप्ति जितनी कठिन है, उससे अधिक कठिन है – उसे संभाल कर रखना . मनुष्य तब तक कोई भी ठोस पग नहीं उठा सकता यदि उसमें राजनीतिक, ऐतिहासिक,अर्थशास्त्रीय एवं शासनशास्त्रीय ज्ञान का अभाव हो.

2. देशभक्ति का अर्थ यह कदापि नहीं है कि आप उसकी हड्डियाँ भुनाते रहें. यदि क्रांतिकारियों को देशभक्ति की हुडियाँ भुनाती होतीं तो वीर हुतात्मा धींगरा, कन्हैया कान्हेरे और भगत सिंह जैसे देशभक्त फांसी पर लटककर स्वर्ग की पूण्य भूमि में प्रवेश करने का साहस न करते. वे 'ए' क्लास की जेल में मक्खन, डबलरोटी और मौसम्बियों का सेवन क्र, दो-दो माह की जेल –यात्रा से लौट क्र अपनी हुडियाँ भुनाते दिखाई देते.

3. इतिहास, समाज और राष्ट्र को पुष्ट करनेवाला हमारा दैनिक व्यवहार ही हमारा धर्म है. धर्म की यह परिभाषा स्पष्ट करती है कि कोई भी मनुष्य धर्मातीत रह ही नहीं सकता. देश इतिहास, समाज के प्रति विशुद्ध प्रेम एवं न्यायपूर्ण व्यवहार ही सच्चा धर्म है.

4. मन सृष्टि के विधाता द्वारा मानव-जाति को प्रदान किया गया एक ऐसा उपहार है, जो मनुष्य के परिवर्तनशील जीवन की स्थितियों के अनुसार स्वयं अपना रूप और आकार भी बदल लेता है.

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