मुझे "शशि थरूर" का पीछा करने के लिए चैनल खोलना है, फाइनेंसर चाहिए -रवीश कुमार
BY Jan Shakti Bureau6 Aug 2017 12:24 PM GMT
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Jan Shakti Bureau6 Aug 2017 12:24 PM GMT
वेब डेस्क। रवीश कुमार ने सोशल मीडिया पर अपने एक पोस्ट में लिखा है कि, ''किसी के पास पैसे हैं, मुझे सिर्फ शशि थरुर का पीछा करने के लिए चैनल खोलना है। नाम होगा थरूर का पीछा।'' रवीश वर्तमान गोदी मीडिया पर तीखे वार करते हुए आगे लिखते हैं कि, ''इसके संपादक का नाम होगा, थरूर इन चीफ। राजनीतिक संपादक का नाम होगा चीफ थरूर चेंजर। ब्यूरो चीफ का नाम होगा ग्राउंड थरूर चेजर। रिपोर्टर का नाम होगा, ग्राउंड जीरो थरूर चेंजर। कम से कम सौ ग्राउंड जीरो थरूर चेजर होंगे। जो संवाददाता बाथरूम में घुसकर शौच करते वक्त थरूर की बाइट ले आएगा उसे ज्यादा इंक्रिमेंट मिलेगा।
लाखों शिक्षा मित्र, बीटीसी अभ्यर्थी, किसान, महँगे अस्पतालों के शिकार लोग ,थानों अदालतों से परेशान लोग इंतजार कर रहे हैं कि उनकी आवाज सरकार तक मीडिया पहुँचा दे। सरकार से पूछा जा सके कि कब ठीक होगा, क्यों हुआ ये सब। टीवी ने सबसे पहले और अब आपके हिन्दी अखबारों ने भी जनता के लिए अपना दरवाजा बंद कर दिया है। 2010 के साल से इसकी प्रक्रिया शुरू हुई थी जब मीडिया को सरकार ने ठेके देने शुरू कर दिए। अब यह शबाब पर है। मुझे हैरानी होती है कि आप अब भी मीडिया के लिए इतने पैसे खर्च कर रहे हैं। जबकि सारे चैनल आपकी बेबसी का मजाक उड़ा रहे हैं। उन्हें पता है कि वो आपकी आदत में शामिल हो गए।
आप जाएंगे कहां और आप भी चैनल-चैनल बदलकर दिल बहला रहे हैं। ये चैनल वो चैनल की बात नहीं है दोस्तों। सब चैनल की बात है। ध्यान से सुनिये और लिखकर जेब में रख लीजिए। मुझे पता है कि मुझे इसका नुकसान उठाना पड़ेगा, पड़ भी रहा है फिर भी बोल देता हूं। ये टीवी गरीबी विरोधी तो है ही, लोकतंत्र विरोधी भी हो गया है। ये जनता की हत्या करवा रहा है। आपकी आवाज को आपकी देहरी पर ही दबा रहा है ताकि सत्ता और सरकार तक पहुंचे ही न। टीवी ने लोकतंत्र का मतलब ही बदल दिया है। जनता का, जनता के द्वारा और जनता के लिए नहीं। नेता का, नेता के द्वारा और नेता के लिए हो गया है।
भारत के लोकतंत्र से प्यार करते हैं तो अपने घरों से टीवी का कनेक्शन कटवा दीजिए। आजादी के सत्तर साल में गोदी मीडिया की गुलामी से मुक्त कर लीजिए खुद को। आम जनता तरस रही है। वो सरकार तक खुद को पहुंचाना चाहती है ताकि उस ओर भी ध्यान जाए। टीवी के खेल को समझना अब सबके बस की बात नहीं है। हम लोग तो गम ए रोजगार के लिए फंसे हैं यहां, आप तो नहीं फंसे हैं। आप क्यों अपना पैसा और वक्त बर्बाद कर रहे हैं। इसलिए कि फ्री डिश में कुछ भी आता है। बताने के भी जोखिम हैं पर बता दे रहा हूं।
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